इन गांवों के लोग आजादी के बाद से ही लॉकडाउन में बिता रहे हैं जिंदगी
कोरोना (Coronavirus) की वजह से भारत में लॉकडाउन (Lockdown) की कड़ी बढ़ती ही जा रही है। भारत में लॉकडाउन (Lockdown) का पहिया बढ़ता ही जा रहा है। भारत (India) में लॉकडाउन (Lockdown) को लागू हुए दो महीने बीतने ही वाले हैं। इन दो महीनों में लोगों को कैसी परेशानियों का सामना करना पड़ा है, यह किसी छिपा हुआ नहीं है। लॉकडाउन (Lockdown) की वजह से सरकार से लेकर आम आदमी तक परेशान हुए। वहीं, भारत-बांग्लादेश की सीमा (India Bangladesh Border) पर बसे गांव के लोगों को बहुत ही दिक्कतों का सामाना करना पड़ रहा है। सीमा पर बसे ऐसे सैकड़ों गांव (Villages) है, जिनकी कई पीढ़ियां दशकों से लॉकडाउन (Lockdown) जैसी स्थिति में ही रह रहे हैं।
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भारत और बांग्लादेश की सीमा (India Bangladesh Border) पर बसे सैकड़ों गांव 'नो मैस लैंड' पर हैं, एक तरफ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लगी कंटीले तारों की बाड़ के दूसरी ओर गांव (Villages) बसा हुआ है। यहां के लोग भारत-बांग्लादेश (India Bangladesh Border) के गृह मंत्रालय द्वारा बनाए गए मानकों के अनुसार ही तय समय पर बाड़ में बने गेट के जरिए ही आवाजाही कर सकते थे, लेकिन अब कोरोना (Coronavirus) की वजह से उनके गांव (Villages) से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई हैं। इस समय अगर किसी भी व्यक्ति को बेहद इमरजेंसी होती है, तो ऐसी स्थिति में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के लोग उनको बाहर आने की अनुमति देते हैं। देश में ऐसा सामना करीब बंगाल और बांग्लादेश की सीमा (India Bangladesh Border) पर बसे ऐसे 254 गांवों के लगभग 70 हजार लोगों को करना पड़ रहा है। यहां पर लोगों को पूरे साल 365 दिन लॉकडाउन (Lockdown) जैसी स्थिति में ही रहना पड़ता है।
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रेडक्लिफ आयोग की गलती का खामियाजा भुगत रहे लोग
रेडक्लिफ आयोग ने सीमा बंटवारे के समय ऐसी कुछ ऐसी गलतियां की है, जिसका खामियाजा सरहद पर रहने वाले लोग भुगत रहे हैं। नियमों के मुताबिक ‘नो मैस लैंड’ में कोई आबादी नहीं होनी चाहिए, लेकिन इस सीमा (India Bangladesh Border) पर भारत के सैकड़ों गांव (Villages) बसे हुए हैं। यहां पर रहने वाले लोगों का रहन-सहन, बोली और संस्कृति में काफी हद तक समानता की एक-दूसरे देश जैसी दिखती है, जिसकी वजह से यह पता लगाना मुश्किल है कि कौन भारतीय है और कौन बांग्लादेशी। गलत तरीके से बंटवारा होने और भौगोलिक स्थिति एक जैसी होने की वजह से कई मामलों में न तो सीमा सुरक्षा बल (BSF) के जवान हस्तक्षेप कर पाते हैं और न ही बॉर्डर गार्डस बांग्लादेश (BGB) के जवान। इन गांवों (Villages) में रहने वाले लोग सीमा (India Bangladesh Border) के दोनों तरफ स्थित बाजारों में आते-जाते हैं, लेकिन इनकी स्थिति कैदियों की तरह ही रहती है।
रेडक्लिफ को नहीं मालूम थी भौगोलिक परिस्थिति
कभी भारत (India) का हिस्सा रहा पूर्वी बंगाल आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान के रूप में जाना जाने लगा था। उस समय अंतरराष्ट्रीय सीमा (India Bangladesh Border) के बंटवारे की जिम्मेदारी रेडक्लिफ आयोग को सौंपी गई थी। सीमा (India Bangladesh Border) के बंटवारे की जिम्मेदारी संभालने वाला आयोग इससे पहले कभी भी भारत नहीं आया था। ऐसा कहा जाता है कि इस आयोग का प्रमुख रेडक्लिफ पहले न तो कभी भारत आया था, न ही उसे यहां के बारे में कुछ पता था। यही वजह रही कि भारत-बांग्लादेश की सीमा (India Bangladesh Border) का बंटवारा बहुत ही अजीबोगरीब तरीके से हुआ। बहुत ही गलब ढंग से बंटवारा होने की वजह से परेशानियों का सामना आज भी यहां पर रहने वाले लोगों को उठाना पड़ रहा है।
सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना पश्चिम बंगाल (West Bangal) और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) की अंतरराष्ट्रीय सीमा (India Bangladesh Border) पर तो सैकड़ों गांव (Villages) ऐसे हैं जिनका आधा हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान में चला गया और बाकी आधा भारत में रह गया। यह ऐसी बड़ी समस्या जिसका निदान अभी तक नहीं हो पाया है। बांग्लादेश की सीमा (India Bangladesh Border) पर कंटीले तारों की बाड़ लगाए जाने के बाद लगभग दस जिलों में करीब 254 गांवों (254 Villages) में करीब 70 हजार लोग बाड़ के दूसरी ओर ही रह गए हैं। यह बाड़ समय-समय पर ही खुलते हैं। अगर समय से कोई नहीं आ पाया, तो वह उधर ही रह जाता है। इस तरह से यहां पर पिछले सात दशकों से हजारों लोग लॉकडाउन (Lockdown) जैसी हालत में जिंदगी गुजार रहे हैं।
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दस जिलों में फैली है सीमा
भारत (India) अपनी सबसे बड़ी थल सीमा बांग्लादेश (India Bangladesh Border) के साथ में साझा करता है। भारत से लगी बांग्लादेश (India Bangladesh Border) की 4,096 किलोमीटर है। इसमें से अकेले बंगाल राज्य की सीमा 2,216 किमी (India Bangladesh Border) है। बंगाल के उत्तर से दक्षिण तक फैले दस जिलों में बांग्लादेश की सीमा (India Bangladesh Border) जुड़ी हुई है। सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाए जाने के बाद यहां पर 254 गांवों (254 Villages) के 70 हजार लोग बाड़ के दूसरी ओर ही रह गए। 70 हजार लोग 70 दशक के बाद भी ऐसे ही लॉकडाउन (Lockdown) जैसी जिंदगी ही बिता रहे हैं। बात अगर जलपाईगुड़ी जिले के हल्दीबाड़ी इलाके की जाए, तो यहां पर कई कुएं ऐसे हैं जिनका आधा हिस्सा बांग्लादेश (Bangladesh) में है। ऐसे ही सड़कों और मकानों का भी हाल है। टमाटर की पैदावार के लिए मशहूर इस इलाके में बहुत से घरों का मुख्यद्वार भारत में खुलता है तो पिछला दरवाजा बांग्लादेश (Bangladesh) में। बंगाल (Bangal) में ऐसे गांव (Villages) कोलकाता से सटे उत्तर 24-परगना जिले से लेकर दक्षिण दिनाजपुर और कूचबिहार तक में सीमा (India Bangladesh Border) पर बसे हुए हैं।
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पढ़ाई के लिए बांग्लादेश के मदरसा पर निर्भर
डीडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार भारत-बांग्लादेश की सीमा (India Bangladesh Border) पर बसे गांव (Villages) के लोगों को सिर्फ आवाजाही ही नहीं बल्कि पढ़ाई लिखाई में भी सामना करना पड़ रहा है। कोई रहता भारत (India) में है, लेकिन पढ़ने के लिए वह बांग्लादेश (Bangladesh) में जाता है। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण दिनाजपुर जिले में हिली कस्बा सीमा पर बसा हुआ है। आधा भारत (India) के जिले में तो आधा हिस्सा बांग्लादेश (Bangladesh) के दिनाजपुर जिले में हैं। 'नो मैंस लैंड' पर बसे इस जिले के गांवों (Villages) में 11 हजार से ज्यादा लोग रहते इधर-उधर रहते हैं। हिली कस्बा के इलाके के में ही पूर्व में गोविंदपुर गांव बसा हुआ है। यहां पर बच्चों की पढ़ाई के लिए कभी प्राइमरी स्कूल चलता था, लेकिन समय के साथ में वह भी बंद हो गया है। स्कूल बंद होने की वह से अब यहां के छात्र-छात्राओं को पढ़ने के लिए बांग्लादेश (Bangladesh) के दाउदपुर स्थित मदरसे में जाना पड़ रहा है। बता दें दक्षिण दिनाजपुर वही जिला है जहां पर आजादी से पहले ट्रेन दार्जिलिंग जिले के लिए इसी रूट से जाती थी। इस रूट से ट्रेन से सफर करने में कम समय लगता था।
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इन गांवों में बसी है अजीब प्रेम कहानी
प्रेम एक ऐसा शब्द है जिसके बीच में आने वाली सभी सरहदें खुद-बा-खुद टूट जाती है। शायद यही वजह है कि भारत-बांग्लादेश की सीमा (India Bangladesh Border) पर बसे गांवों (Villages) में प्रेम के आगे सरहद छोटी पड़ गई है। 'नो मैंस लैंड' पर बसे इन गांवों (Villages) में आपको सैकड़ों कहानियां मिल जाएंगी। यहां पर हर गांव (Villages) में कुछ ऐसे जरूर मिल जाएंगे, जिनकी शादी बांग्लोदश (Bangladesh) में रहने वाली युवती के साथ हुई हैं। नियमों के अनुसार भी यहां से शादी करने पर कोई पाबंदी नहीं हैं। यही नहीं, यहां पर धर्म के बीच में भी कभी सरहद बाधा नहीं बनी है। दिनाजपुर जिले के मोहम्मद अली बताते हैं, "हम जुम्मे के दिन नमाज पढ़ने के लिए बांग्लादेश में स्थित मस्जिद में जाते हैं।” ऐसे ही नदिया के मोहम्मद इलिया बताते हैं, "सरहद पर बसे होने के कारण हमारे जीवन में कई समस्याएं हैं, लेकिन हम लोगों ने इन्हीं के बीच में जीना सीख लिया है। हां, सरहद (India Bangladesh Border) पर सख्ती होने की वजह से इस समय गांवों (Villages) में बाहरी लोगों की आवाजाही नहीं है, इसकी वजह से हम लोग कोरोना (Coronavirus) जैसी महामारी से बचे हुए हैं। हम लोग आजादी के बाद ही लॉकडाउन (Lockdown) में रह रहे हैं, शायद यही वजह है कि दर्जनों पाबंदियों के बाद में हम लोगों का जन-जीवन सामान तरह से चल रहा है।”
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पांच साल पहले हुई कोशिश ठंडे बस्ते में डाल दी गई
भारतीय सीमा (India Bangladesh Border) में कंटीले तारों की बाड़ में बना गेट इस समय कोरोना (Coronavirus) की वजह से बंद चल रहा है। अब कोरोना (Coronavirus) की वजह से जारी लॉकडाउन (Lockdown) की वजह से किसी को इधर-उधर जाने की अनुमति नहीं मिल रही है। वैसे, इस समस्या का निदान करने के लिए कुछ काम आगे पीएम मोदी (PM Modi) की सरकार में बढ़ा था। साल 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी (PM Modi) की कोशिशों के बाद थल सीमा (India Bangladesh Border) समझौते के समय भी इन गांवों को स्थानांतरित करने का मुद्दा उठा था। लेकिन इसमें इतनी समस्याएं होने की वजह से यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया है। नियमों के मुताबिक 'नो मेंस लेंड' में कोई नहीं रह सकता है, लेकिन मौजूदा समय में कोई भी अपने घरों और खेतों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। नदिया जिले के झोरपाड़ा गांव के बीचो-बीच इच्छामती नदी बहती है। इसी गांव (Village) के रहने वाले अनिरुल कहते हैं कि यहां तो हम खेती से गुजर-बसर कर लेते हैं, लेकिन मुआवजा नहीं मिलने पर हम अपने पुरखों की जमीन और जगह कैसे छोड़ सकते हैं।
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