
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों ने राजनीतिक परिदृश्य को फिर से बदल दिया है। हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने हैट्रिक लगाते हुए बहुमत का आंकड़ा पार किया, जबकि जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) गठबंधन ने जीत हासिल की।
हरियाणा: बीजेपी की लगातार जीत
हरियाणा में बीजेपी ने एक बार फिर साबित किया कि जनता का विश्वास उस पर कायम है। सत्ता विरोधी रुझान और ‘किसान-पहलवान-जवान’ जैसे नारों के बावजूद, बीजेपी ने अपनी पकड़ को मजबूत रखा। चुनाव में कांग्रेस ने ताजपोशी का विश्वास दिखाया था, लेकिन उसे निराशा का सामना करना पड़ा। यहाँ गैर-जाटों की लामबंदी और अति दलितों का आरक्षण उपवर्गीकरण पर बीजेपी का समर्थन ने पार्टी को एक नई ऊर्जा दी।
जम्मू-कश्मीर: नेकां-कांग्रेस गठबंधन की बढ़त
जम्मू-कश्मीर में यह पहला विधानसभा चुनाव था, जो अनुच्छेद 370 और 35A के हटने के बाद हुआ। बीजेपी ने 60 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से 19 कश्मीर में और 41 जम्मू में थीं। पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशियों को भी टिकट दिए, लेकिन चुनावी नतीजे नेकां और कांग्रेस के गठबंधन के पक्ष में गए।
चुनावी समीकरण और गठबंधन की चुनौती
जम्मू-कश्मीर में मतदाताओं का वोट एकतरफा नेकां के पक्ष में गया। कश्मीर घाटी में बीजेपी के लिए राजनीतिक स्पेस सीमित रहा, जबकि जम्मू में उसे कांग्रेस, पीडीपी और नेकां के साथ राजनीतिक स्पेस साझा करने की मजबूरी रही।
राजनीतिक चुनौतियाँ और भविष्य
अब जम्मू-कश्मीर के नए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को शासन के लिए उपराज्यपाल की अनुमति लेनी होगी, जिससे शासन का स्वरूप पहले जैसा नहीं होगा। पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और अन्य महत्वपूर्ण निर्णय उपराज्यपाल के अधीन होंगे।
हरियाणा में बीजेपी की जीत ने यह साबित कर दिया है कि उसका प्रभाव राज्य में बरकरार है, जबकि जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस-नेकां गठबंधन ने स्थानीय मुद्दों पर भरोसा जीतकर सत्ता की कुंजी अपने हाथों में ले ली है। इन चुनावों के नतीजे आने वाले समय में दोनों राज्यों की राजनीतिक दिशा तय करेंगे।