हरिद्वार में भारत माता मंदिर के संस्थापक और निवृत्तमान शंकराचार्य महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि मंगलवार की सुबह ब्रह्मलीन हो गए है। सनातन परंपरा के महान संत पद्मभूषण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने हरिद्वार के अपने निवास स्थान राघव कुटीर में ब्रह्मलीन हुए। वह पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। हरिद्वार स्थित भारत माता मंदिर ट्रस्ट में उन्होंने 87 साल की उम्र में अपने प्राण त्याग दिए। अब उनकी समाधि राघव कुटीर में दी जाएगी। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी श्रद्धांजलि और शोक प्रकट करते हुए कहा है कि — स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी अध्यात्म और ज्ञान के प्रतीक थे। अब वह हमारे बीच नहीं रहे इसका मुझे बेहद दुख है। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों और दलितों को समर्पित कर किया था। स्वामी जी के दिव्य आत्मा को श्रद्धांजलि ॐ शांति।
आगरा में जन्में थे सत्यमित्रानंद
भारत माता मंदिर के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी का जन्म 19 सिंतबर, 1932 को आगरा में हुआ था। उनका जन्म भले ही आगरा में हुआ था, लेकिन उनका पूरा परिवार उत्तर प्रदेश के सीतापुर का रहने वाला था। बचपन से ही स्वामी जी की रुचि संन्यास और अध्यात्म में थी, जिसकी वजह से उन्होंने अपना सांसारिक जीवन बहुत कम उम्र में त्याग दिया था। बचपन में लोग उन्हें अंबिका प्रसाद पांडेय के नाम से पहचानते थे। उनके पिता का नाम शिवशंकर पांडेय था जो कि राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित थे। सत्यमित्रानंद गिरि जी जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि के गुरु थे।
साल 2015 में मिला पद्मभूषण पुरस्कार
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने हरिद्वार में साल 1983 में भारत माता मंदिर की स्थापना की थी। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में 65 से अधिक देशों की यात्रा की। आध्यात्म चेतना के धनी स्वामी जी को साल 2015 में पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। जब वह मात्र 26 साल के थे तब वह 29 अप्रैल, 1960 को भानपुरा पीठ के शंकराचार्य बना दिए गए थे। ऐसा कहा जाता है कि करीब 9 साल तक धर्म और मानव सेवा करने के बाद उन्होंने साल 1969 में खुद शंकराचार्य के पद को त्याग दिया था।