ठाणे के बदलापुर में नर्सरी की दो बच्चियों के साथ यौन शोषण के आरोपी अक्षय शिंदे के एनकाउंटर पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को सवाल उठाए। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले के आरोपी अक्षय शिंदे की मुठभेड़ की घटना को टाला जा सकता था। उसकी मौत की जांच निष्पक्ष तरीके से होनी चाहिए।
बॉम्बे हाईकोर्ट के सवाल, राज्य सरकार का जवाब
कोर्ट: जो अफसर अक्षय शिंदे को ले जा रहा था वो ठाणे पुलिस की क्राइम ब्रांच से था?
राज्य सरकार:जी।
कोर्ट:जिस समय घटना हुई, वो जगह खाली थी या फिर आसपास कॉलोनी और मकान थे?
राज्य सरकार: दाईं ओर पहाड़ियां थीं और बाईं तरफ एक छोटा सा कस्बा था। जैसे ही यह घटना हुई उसके तुरंत बाद अक्षय और घायल पुलिसवाले को अस्पताल ले जाया गया।
कोर्ट: किस अस्पताल ले गए, वो कितनी दूर था?
राज्य सरकार: कलवा के करीब शिवाजी हॉस्पिटल! करीब 25 मिनट का रास्ता था। सबसे करीब अस्पताल यही था।
कोर्ट:जब इतने गंभीर अपराध के आरोपी को ले जा रहे थे तो लापरवाही कैसे हो सकती है। SOP क्या है, क्या उसे हथकड़ी लगी थी?
राज्य सरकार: लगी थी, उसने पानी मांगा था।
कोर्ट:क्या आपने पिस्टल के फिंगर प्रिंट लिए थे?
राज्य सरकार:FSL ने फिंगर प्रिंट लिए थे।
कोर्ट:आप कह रहे हैं कि आरोपी ने 3 गोलियां चलाई थीं, पुलिस जवान को एक गोली लगी, बाकी 2 कहां गई? आमतौर पर सेल्फ डिफेंस में हम पैर या हाथ पर गोली मारते हैं!
राज्य सरकार:अफसर ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, उसने खाली रिएक्ट किया।
कोर्ट:हम कैसे मान लें कि गाड़ी में 4 अफसर थे और एक आरोपी को संभाल नहीं पाए?
राज्य सरकार:यह ऑन द स्पॉट रिएक्शन था।
कोर्ट:क्या इसे टाला नहीं जा सकता था पुलिस ट्रेन होती है? आम आदमी भी यह जानता है कि सेल्फ डिफेंस में पैर पर गोली मारी जाती है। अफसर की डेजिग्नेशन क्या है, जिसने आरोपी को गोली मारी?
राज्य सरकार: वो एक असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर (API) है।
कोर्ट: तब अफसर नहीं कह सकता कि उसे रिएक्ट कैसे करना है इसकी जानकारी नहीं थी! उसे पता होना चाहिए कि फायर कहां करना है। जैसे ही आरोपी से ट्रिगर दबाया 4 लोग आसानी से उस पर काबू पा सकते थे। वो कोई बहुत मजबूत आदमी नहीं था। यह स्वीकार करना बहुत मुश्किल है। इसे एनकाउंटर नहीं कहा जा सकता है।
राज्य सरकार:नतीजे तक पहुंचने के लिए कुछ स्वतंत्र एजेंसियों से जांच करानी चाहिए। स्टेट सीआईडी और एसीपी इसकी जांच कर रहे हैं।
कोर्ट: क्या आपने पुलिस अफसर के फिंगर प्रिंट लिए? आप सभी अफसरों के फिंगर प्रिंट लीजिए, हम हर एंगल से इस केस को देख रहे हैं। फोरेंसिक टीम का इंतजार करने की बजाय आपको अपने तरीके से फिंगर प्रिंट लेने चाहिए थे। CCTV फुटेज कहां है?
राज्य सरकार:हमने रास्ते में ही सरकारी और निजी बिल्डिंगों के फुटेज सुरक्षित रखने को कह दिया था।
कोर्ट: हमें एक और चीज चाहिए। फोरेंसिक टीम से कहिए कि पता लगाए कि आरोपी को गोली दूर से मारी गई थी या पॉइंट ब्लैंक रेंज से? उसे गोली कहां लगी? भले ही इसमें पुलिसवाले इन्वॉल्व हों, लेकिन हम मामले की निष्पक्ष जांच चाहते हैं। हम शक नहीं कर रहे लेकिन हमें सच्चाई चाहिए। क्या कोई FIR आरोपी के पिता ने दाखिल की है।
राज्य सरकार: नहीं।
कोर्ट: हथियारों को सही तरह से सीज कर दिया है ना?
राज्य सरकार: जी, ये FSL को भेज दिए गए हैं।
कोर्ट: पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से ऐसा लगता है कि गोली पॉइंट ब्लैंक रेंज से मारी गई है। क्या आरोपी को कोई हथियार दिया था? आप कह रहे हैं कि उसने पिस्टन छीनी थी?
राज्य सरकार: कोई हथियार नहीं दिया गया था। उसने पिस्टन छीनी नहीं थी, हाथापाई के दौरान गिर गई थी।
कोर्ट: हम चाहते हैं कि आरोपी को जेल से निकालने से लेकर उसे अस्पताल में मृतक घोषित किए जाने तक के CCTV फुटेज सुरक्षित रखे जाएं।
अगर वो भाग जाता तो विपक्ष पूछता कि पुलिस के होथों में बंदूक नहीं, शोपीस थे क्या: एकनाथ शिंदे
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इंडिया टुडे के कॉन्क्लेव में कहा कि पुलिस ने अक्षय शिंदे पर सेल्फ डिफेंस में गोली चलाई। शिंदे ने कहा कि अगर वो भाग जाता तो विपक्ष पूछता कि पुलिस के हाथों में बंदूक नहीं, शो पीस थे क्या! कहते कि हमने उसे भागने क्यों दिया? उन्होंने कहा कि इस एनकाउंटर में पुलिसवाला घायल हुआ, हमें पुलिस का सपोर्ट करना चाहिए। अक्षय शिंदे की 4 बीवियां थीं, एक भाग गई और उसने पुलिस में केस दर्ज कराया। उसने अक्षय पर अप्राकृतिक शारीरिक संबंध का आरोप लगाया और कहा कि वो राक्षस है। सीएम शिंदे बोले कि बदलापुर में जिन बच्चियों का रेप हुआ, वो आरोपी की बेटियों की उम्र की थीं। कल्पना कीजिए कि उन पर क्या गुजरी होगी। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी!
शिंदे जैसे अपराधियों का बचाव समाज में कई शिंदे पैदा कर सकता है
महाराष्ट्र के अक्षय शिंद को एनकाउंटर में ढेर किए जाने की घटना पर सोशल मीडिया से लेकर राजनीति की दुनिया तक खूब कलेजा पीटा जा रहा है। व्यंग्य कसा जा रहा है कि देश की सारी अदालतें बंद कर दीजिए और पुलिस को ही फैसला करने का अधिकार सौंप दीजिए। क्या पुलिस सभी आरोपियों का एनकाउंटर करने लगी है! ऐसा होता तो क्या हमारे देश के कारागृह क्षमता से अधिक कैदियों का भार ढो रहे होते! सवाल यह भी है कि क्या उन लोगों का कोई मानवाधिकार नहीं होता, जिनकी इज्जत ये नीच लूटते हैं!
दरअसल, हमारे देश में अब हर चीज के विरोध का नया चलन शुरू हो गया है। कुछ लोग बस इसी ताक में रहते हैं कि कोई घटना घटे और उन्हें अपनी राजनीति को चमकाने का मौका मिल जाए। अक्षय शिंदे के लिए हंगामा काट रहे लोग क्या बताएंगे कि बदलापुर की उन दो मासूम बच्चियों का जीवन क्या अब वैसा ही रह गया है जैसा उनके यौन उत्पीड़न से पहले था? उनके मानसिक पटल पर इस घटना का कैसा प्रभाव पड़ा होगा! राजनीतिक दलों के साथ-साथ मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने वालों को यह सोचना होगा कि वे किसी अपराधी की वकालत करते हुए पीड़ित व्यक्ति व उसके परिवार के साथ नाइंसाफी तो नहीं कर रहे! शिंदे जैसे अपराधियों का बचाव कई नए शिंदे समाज में पैदा कर सकता है। पुलिस देश के कानून के आगे जवाबदेह है और अदालत को अपनी कार्रवाई का औचित्य भी साबित करेगी।