अजमेर शरीफ दरगाह का ऐतिहासिक महत्व
अजमेर शरीफ दरगाह, सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार, भारत में सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। 12वीं शताब्दी में स्थापित, यह दरगाह राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित है और लाखों श्रद्धालुओं का आस्था का केंद्र है। इसे “गरीब नवाज़” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि संत ने जीवनभर गरीबों और जरूरतमंदों की मदद की।
यह स्थल हिंदू, मुस्लिम और अन्य धर्मों के अनुयायियों को आकर्षित करता है। दरगाह परिसर में प्रवेश करने वालों का मानना है कि यहां मांगी गई मुरादें पूरी होती हैं। इसके अलावा, मुगल सम्राट अकबर और जहांगीर जैसे ऐतिहासिक शासकों ने भी यहां श्रद्धांजलि अर्पित की थी, जो इसकी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता को दर्शाता है।
अजमेर दरगाह विवाद: ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित दावे
हिंदू संगठनों का दावा
हिंदू संगठनों ने लंबे समय से दावा किया है कि अजमेर शरीफ दरगाह वास्तव में एक प्राचीन संकट मोचन शिव मंदिर था।
- 2022 में महाराणा प्रताप सेना नामक संगठन ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इस स्थल की जांच की मांग की थी।
- संगठन ने दरगाह की खिड़कियों पर बने स्वस्तिक के निशान को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया।
- संगठन के संस्थापक राजवर्धन सिंह परमार ने इसे “संकट मोचन शिव मंदिर” बताया था।
1911 में प्रकाशित “Ajmer: Historical and Descriptive” पुस्तक का हवाला
रिटायर्ड जज हरविलास शारदा द्वारा 1911 में लिखी गई पुस्तक “Ajmer: Historical and Descriptive” को इस याचिका में आधार बनाया गया है।
- पुस्तक में यह दावा किया गया है कि दरगाह का निर्माण हिंदू और जैन मंदिरों के मलबे से किया गया।
- इसमें दरगाह के गर्भगृह में स्थित एक तहखाने का उल्लेख है, जिसमें कथित तौर पर शिवलिंग मौजूद है।
- दरगाह के 75 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे के निर्माण में जैन मंदिर के अवशेषों का उपयोग होने का भी वर्णन है।
- लेखक ने दावा किया कि यह मंदिर अजमेर पर शासन करने वाले पृथ्वीराज चौहान के वंशजों द्वारा निर्मित था।
याचिकाकर्ता और अदालत का पक्ष
यह याचिका हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा अजमेर सिविल कोर्ट में दायर की गई थी।
- याचिका में मांग की गई है कि अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित किया जाए।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा स्थल का सर्वेक्षण कराने और हिंदुओं को वहां पूजा-अर्चना की अनुमति देने की भी अपील की गई है।
- अदालत ने अजमेर दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय, और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कार्यालय को नोटिस जारी किए हैं।
शिवलिंग और पूजा का दावा
याचिका में कहा गया है कि दरगाह के तहखाने में शिवलिंग है, जिसकी परंपरागत पूजा एक ब्राह्मण परिवार द्वारा की जाती थी।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और दावों की जांच
ऐतिहासिक रूप से, यह दावा विवादास्पद है। इतिहासकारों का मानना है कि दरगाह की स्थापना के पहले इस क्षेत्र में हिंदू मंदिर या अन्य संरचनाएं हो सकती हैं, लेकिन इसके कोई ठोस प्रमाण अब तक नहीं मिले हैं।
दूसरी ओर, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि दरगाह के निर्माण से पहले के दौर की पुरानी संरचनाओं के अवशेष हो सकते हैं, जिन्हें जांच के माध्यम से समझा जा सकता है। अदालत का यह निर्णय ऐसे विवादों में तथ्यात्मक जांच के महत्व को रेखांकित करता है।
वर्तमान स्थिति और प्रतिक्रियाएं
- मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया: मुस्लिम संगठनों और धार्मिक नेताओं ने इस दावे को खारिज किया है। उन्होंने इसे सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने की कोशिश बताया और सरकार से इस मामले में निष्पक्षता बनाए रखने की अपील की।
- हिंदू संगठनों का पक्ष: हिंदू सेना और अन्य संगठनों ने इस मुद्दे को धर्म और इतिहास से जोड़कर देखा। उनका कहना है कि हिंदू स्थलों को पुनः स्थापित करना भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान का हिस्सा है।
- सरकार और प्रशासन का रुख: इस मामले पर प्रशासन ने तटस्थ रुख अपनाया है। अदालत के आदेश के तहत पुरातात्त्विक जांच की प्रक्रिया शुरू की जाएगी, जो आगे का रास्ता तय करेगी।
पुरातात्त्विक जांच का महत्व
अदालत द्वारा ASI को दिए गए आदेश ऐतिहासिक स्थलों के सत्यापन के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह जांच निम्नलिखित पहलुओं पर केंद्रित होगी:
- स्थल की गहराई में संरचनाओं के अवशेषों की खोज।
- प्राचीन काल के निर्माण कार्यों की पहचान।
- स्थापत्य शैली और सामग्री का विश्लेषण।
यह जांच न केवल इस विवाद को हल करेगी, बल्कि भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को समझने में भी मददगार होगी।
भारत में ऐसे अन्य विवाद
यह मामला भारत में धार्मिक स्थलों से जुड़े विवादों की एक श्रृंखला का हिस्सा है। अन्य प्रमुख विवाद हैं:
- राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद: दशकों तक चलने के बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।
- काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मस्जिद विवाद: वाराणसी में चल रहे इस विवाद में पुरातात्त्विक सर्वेक्षण किए गए हैं, जिनमें शिवलिंग जैसे अवशेष मिलने का दावा किया गया।
- मथुरा का शाही ईदगाह विवाद: यह मामला श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के स्थान को लेकर चल रहा है।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
ऐसे विवाद भारत की धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक संरचना को चुनौती देते हैं। यह जरूरी है कि इन मुद्दों को सुलझाने के लिए वैज्ञानिक और न्यायिक प्रक्रिया अपनाई जाए।
निष्कर्ष
अजमेर शरीफ दरगाह विवाद एक संवेदनशील मुद्दा है, जो भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को प्रभावित कर सकता है। पुरातात्त्विक जांच और न्यायालय के निष्कर्ष इस विवाद को सुलझाने में अहम भूमिका निभाएंगे। इस बीच, समाज के सभी वर्गों को मिलकर शांति और सौहार्द बनाए रखने की दिशा में प्रयास करना चाहिए।