नोटबंदी के 8 साल: काले धन पर वार या आम आदमी पर भार?

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8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को अमान्य घोषित किया, जिसे भारत में “नोटबंदी” के रूप में जाना जाता है। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से काले धन, नकली मुद्रा, और भ्रष्टाचार को समाप्त करना था। इसके अलावा, इसे कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और आतंकवाद व माओवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए भी महत्वपूर्ण बताया गया था।

प्रमुख उद्देश्य और उनके परिणाम

  1. काले धन पर चोट: नोटबंदी का सबसे बड़ा लक्ष्य काले धन को समाप्त करना था, लेकिन 99% से अधिक पुराने नोट बैंकों में जमा हो गए। इसने सवाल खड़े किए कि क्या वाकई काला धन प्रणाली से बाहर निकाला गया।
  2. कैशलेस अर्थव्यवस्था: नोटबंदी के बाद डिजिटल भुगतान में निश्चित रूप से वृद्धि हुई, लेकिन भारत जैसे बड़े और ग्रामीण-आधारित देश में नकदी का प्रचलन आज भी उच्च है।
  3. आतंकवाद और नकली नोट: शुरुआती कुछ महीनों में आतंकवाद की वित्तीय स्थिति पर असर दिखा, लेकिन लंबे समय तक इसका ठोस प्रमाण नहीं मिल पाया।

आम जनता पर प्रभाव

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नोटबंदी के बाद आम जनता को कई प्रकार के नुकसान झेलने पड़े। इनमें सबसे बड़ा प्रभाव नकदी की कमी से हुआ, जिससे छोटे कारोबार, मजदूर और ग्रामीण अर्थव्यवस्था सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।

  1. रोज़गार और आय का नुकसान: नोटबंदी के तुरंत बाद करीब 15 करोड़ दैनिक मजदूरों की आजीविका प्रभावित हुई। कई उद्योग, विशेषकर छोटे और मध्यम उद्योग (SMEs), नकदी की कमी के कारण बंद हो गए, जिससे लाखों लोगों की नौकरियां गईं​ ।
  2. किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों में संकट: ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सेवाओं और डिजिटल भुगतान का अभाव था, जिससे किसानों को अपनी फसल बेचने और आवश्यक चीजें खरीदने में मुश्किलें आईं। इससे कृषि उत्पादकता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ा​।
  3. धार्मिक और सामाजिक आयोजन पर असर: शादियों, धार्मिक आयोजनों और छोटे व्यापारिक लेनदेन जो नकदी पर आधारित थे, ठप हो गए। इससे आम लोगों को अपने परिवार के महत्वपूर्ण अवसरों को स्थगित या रद्द करना पड़ा​।
  4. व्यवसाय बंद और छोटे व्यापारी प्रभावित: छोटे व्यापार, जो पूरी तरह से नकदी पर निर्भर थे, तुरंत ठप हो गए। उनमें से कई आज भी पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के अनुसार, नोटबंदी के कारण करीब 15 लाख नौकरियों का नुकसान हुआ​ ।
  5. बैंकों के बाहर लंबी कतारें: नकदी निकालने और पुराने नोट जमा करने के लिए बैंकों के बाहर लोगों को घंटों लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ा। इस दौरान 100 से अधिक लोगों की मौत की खबरें आईं​ ।

ये सभी घटनाएं दिखाती हैं कि नोटबंदी का सीधा और गंभीर प्रभाव आम जनता पर पड़ा, खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों पर। इसके अलावा, देश की जीडीपी में लगभग 1.5% की गिरावट देखी गई।

2023 में 2000 रुपये के नोट की वापसी:

2023 में रिजर्व बैंक ने 2000 रुपये के नोट को वापस लेने का फैसला लिया, जिसे 2016 में नोटबंदी के बाद मुद्रा की कमी को पूरा करने के लिए जारी किया गया था। इस बार, नोटबंदी के विपरीत, सरकार और आरबीआई ने इसे अधिक सुचारू रूप से किया, और नोटों के आदान-प्रदान के लिए पर्याप्त समय दिया गया।

2000 रुपये के नोट का हटाया जाना अब देश की मुद्रा प्रबंधन नीति का हिस्सा बताया गया है, जिसका मकसद सिर्फ बेहतर गुणवत्ता के नोट सुनिश्चित करना है। इससे बाजार में बहुत अधिक हलचल नहीं हुई क्योंकि इसका प्रचलन पहले से ही सीमित हो चुका था।

निष्कर्ष:

नोटबंदी के शुरुआती उद्देश्य और इसके परिणामों में काफी भिन्नता रही है। हालांकि डिजिटल भुगतान में वृद्धि और कुछ हद तक नकली मुद्रा पर नियंत्रण देखने को मिला, लेकिन काले धन पर निर्णायक प्रहार और दीर्घकालिक आर्थिक लाभ अस्पष्ट रहे। 2023 में 2000 रुपये के नोट का हटाया जाना इस बात का संकेत है कि सरकार और आरबीआई अब अपनी नीतियों को अधिक व्यवस्थित और कम नाटकीय ढंग से लागू कर रहे हैं।

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