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पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा रहे हैं ये लोग, आपको भी प्रभावित करेगी इनकी मुहिम
5 जून 1973 से शुरू किया गया था पर्यावरण को बचाने का अभियान, इस बार की थीम है प्लास्टिक पॉल्यूशन
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लगातार पर्यावरण को पहुंचते खतरे को देखते हुए पूरी दुनिया में 5 जून 1973 से इसको बचाने का अभियान शुरू हुआ था। आज के ही दिन पूरी दुनिया में पर्यावरण के बचाए रखने के लिए जगह-जगह पर गोष्ठी, रैलियां व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है। इस साल मनाए जाने वाले पर्यावरण दिवस की थीम बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन रखी गई है। यानि दुनिया में बढ़ रहे प्लास्टिक पॉल्यूशन को कैसे खत्म किया जाए। प्लास्टिक को खत्म करने के लिए विभिन्न अभियान भी चलाए जा रहे हैं। आईये आपको हम मिलाते है पर्यावरण सरंक्षण के लिए काम  करने वाले कुछ लोगों से..... 

14:18 PM 5 Jun, 2018

पिछले दस साल ने प्लास्टिक प्रदूषण से बचा रही रिया

पूरी दुनिया इस समय प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए अभियान चला रही है। ऐसे ही दिल्ली की रहने वाली रिया सिंघल भी प्रदूषण को रोकने के लिए कुछ खास तरीका निजात किया है। उन्होंने प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की जंग में शामिल होने के लिए अपने करियर को दांव पर लगा दिया और इस काम में जुट गईं। औषध विज्ञान ने डिग्री करने वाली 27 वर्षीय रिया एक बड़ी दवाई कंपनी के लिए मार्केटिंग में काम करती थी। इसी दौरान रिया सिंघल ने 2009 में अपना खुद का व्यवसाय इकोवेयर (Ecoware) शुरू किया। यह कंपनी प्लेट, कप, कटोरे, ट्रे, छुरी-चम्मचें और अन्य उत्पाद बनाती है। इन सभी को पौधों के जैव ईंधन से बनाया जाता है और ये सभी 100 प्रतिशत प्राकृतिक रूप से नष्ट होने वाले (बायोडिग्रेडेबल) होते हैं। एक दशक के भीतर ही, इकोवेयर देश में टेबलवेयर की आपूर्ति करने वाली सबसे बड़ी कंपनी बन गई है। रिया कहती हैं कि उनका लक्ष्य प्राकृतिक पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के साथ ही साथ मानव स्वास्थ्य की रक्षा करना है। रिया के इन टेबलवेयर की खास बात है कि ये 90 दिन में ही मिट्टी में मिल जाते हैं। ये डिस्पोजल किसी भी तरह अपने पीछे कचरा नहीं छोड़ती, इसलिए इनसे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता। ये टेबलवेयर काफी मजबूत होते हैं। ये -20 डिग्री से लेकर 180 डिग्री तक के तापमान को सहन कर सकते हैं, जिसका मतलब है कि ये फ़्रीज़िंग के लिए उपयुक्त हैं और माइक्रोवेव में भी सुरक्षित रहते हैं। बता दें कि इस समय पानी की बोतलें, स्ट्रॉ, पॉलीस्टीरीन की प्लेटें जैसे एक बार उपयोग में आने वाले प्लास्टिक के उत्पाद हमारे आधुनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। इससे पर्यावरण को काफी खतरा हो रहा है। 

India Wave News
14:20 PM 5 Jun, 2018
प्लास्टिक मैन अब बनाते हैं प्लास्टिक कचरे की सड़क

प्लास्टिक मैन का नाम आते ही हर किसी को पद्मश्री से सम्मानित प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन याद आ जाते हैं। ये पिछले 15 साल से प्रदूषण से बचाने के लिए कुछ खास अभियान चला रे हैं। शहर के प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाकर वे न प्रदूषण को बचाते हैं बल्कि लोगों को चलने के लिए एक बेहतर सड़‍क भी देते हैं। इंजीनियरिंग कॉलेज (टीसीई), मदुरै में केमिस्ट्री के प्रॉफेसर राजगोपालन वासुदेवन ये काम पिछले 15 सालों से  कर रहे हैं। वासुदेवन प्लास्टिक मैन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर हैं और उनका अपने में ये अलग तरह का इनोवेशन है। इस इनोवेशन के लिए उन्हें 10 साल कड़ी मेहनत करनी पड़ी। उन्होंने सबसे पहले 2002 में अपनी तकनीक से थिएगराजार कॉलेज के परिसर में प्लास्टिक कचरे से रोड का निर्माण कराया, इसके बावजूद उन्हें अपनी तकनीक को मान्यता दिलाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हालांकि बाद में उन्होंने यह प्रोजेक्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता को इसके बारे में बताया। वे अब तक इस तकनीक से हजारों किलोमीटर तक सड़क बन चुका हैं। प्लास्टिक मैन के मन में ये आईडिया तब आया था जब एक बार टेलीविजन पर एक डॉक्टर प्लास्टिक के नुकसान के बारे में बता रहे थे। तब से उन्होंने कुछ करने की सोची।

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14:20 PM 5 Jun, 2018

90 वर्ष की उम्र में भी कर रहे हैं पर्यावरण का संरक्षण

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के मीन सिंह पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रहे हैं। 90 वर्षीय मीन सिंह ने बंजर भूमि पर आठ दशक में करीब एक लाख पौधे रोपे हैं। यह सब इसलिए की हिमाचल प्रदेश की भूमि पर हरियाली कायम रह सके और यहां की पीढ़ियां शुद्ध हवा ले सकें। सिरमौर जिला में भी वनमाफियाओं द्वारा पेड़ों की कटान की जा रही है। जिसकी वजह से यहां पर भी दिन-प्रतिदिन पेड़ों का औसत रकबा कम होता जा रहा है। पेड़ों के कटान की समस्या को देखते हुए उन्होंने किसी का विरोध नहीं किया बल्कि उन्होंने जिले में आरक्षित वनों की भूमि पर मीन सिंह ने पेड़ लगाकर पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण में लगा दिया। उन्होंने शुरू किया बंजर भूमि पर पौधों को लगाना। 1960 के दशक में उन्होंने वन विभाग में पौधरोपण का कार्य किया और उसके बाद प्रतिवर्ष निजी व सरकारी भूमि में पौधे रोपने का कार्य शुरू कर दिया। 

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14:22 PM 5 Jun, 2018
अपने घर में तैयार किया अजीब गार्डन

जिन प्लास्टिक की बोतलों का प्रयोग करके हम लोग प्रदूषण को बढ़ावा देने के लिए फेंक देते हैं। उन्हीं बोतलों को साधन राधाकृष्ण ने कुछ इस तरह से प्रयोग किया उनका पूरा घर हरियाली से छा गया। जी हां बैंगलुरू के रहने वाले राधाकृष्णन के घर में इस समय प्लास्टिक की बोतलों में नारियाल के सैकड़ों पेड़ उगाए गए है। उनकी पूरी बालकनी में सैकड़ों पेड़ बोतलों में रखे हुए है। वे कहते हैं कि जब हम मुंबई में थे तब भी हमारे पर बगीचे में ऐसे ही पौधे लगे हुए हुए थे। अब यहां पर भी अपने घर को गार्डन सिटी के रूप में विकसित कर लिया है। वे कहते हैं कि किराए के घर में रहने के बाद भी मैंने अपने घर को कुछ इस तरह से सजा रखा है। 

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14:22 PM 5 Jun, 2018

सफाई सेना दिल्ली में करती है इस तरह सफाई

दिल्ली की सड‍़कों से लेकर बड़े कारखानों तक में सफाई का काम इस समय सफाई सेना कर रही है। ये सफाई सेना का काम और कोई नहीं बल्कि 1995 में खुद का बिजनेस शुरू करने के लिए बिहार के जय प्रकाश चौधरी ने किया था। प्यार से संतु सर के नाम से पुकारे जाने वाले जय प्रकाश ने अनोखे तरीके का बिजेनस शुरू किया था। वर्ष 1995 में खुद का बिज़नेस शुरू करने के लिए उन्‍होंने 750 रुपए में साइकिल खरीदी थी। पिछले 24 साल से दिल्‍ली में रहकर जय प्रकाश पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए अद्भुत काम कर रहे हैं। साथ ही साथ बेहतर कमाई भी कर रहे हैं। 42 वर्षीय जय ‘सफाई सेना’ का संचालन करते हैं। यह घरों-दफ्तरों से निकले कूड़ा-करकट व कबाड़ इकट्ठा करने वालों का संगठन है। यह कचरे को छांटता है, बेचता और रिसाइकिल करता है। सफाई सेना मुख्‍य डंपिंग साइट्स से इकट्ठा करती है। प्‍लास्टिक कचरे को रिसाइकिल फ़ैक्‍टरियों को भेजती है, जबकि जैविक कचरे को खाद में तब्‍दील कर बेच देती है। एक साइकिल ख़रीदी और घर-घर से कबाड़ इकट्ठा करना शुरू कर दिया. उन्‍हें धातु के कबाड़ से अच्‍छी कमाई होती। धीरे-धीरे उनकी कमाई बढ़कर 150 रुपए प्रतिदिन हो गई। जल्‍द ही उन्‍हें चार दोस्‍तों का साथ मिला और उन्‍होंने राजा बाज़ार में ख़ुद का गोडाउन शुरू कर दिया। 2009 में उनकी कम्पनी जे.पी. इंजीनियरिंग नाम से खुद की कंपनी रजिस्‍टर करवाई। आज दिल्‍ली और गाजियाबाद में 12,000 से अधिक सदस्‍यों के साथ उनका प्रभाव जबर्दस्‍त है। कूड़ा इकट्ठा करने वाले स्‍थानीय लोग, गोडाउन के मालिक, व्‍यापारी और रिसाइकिल कंपनियां सभी सफाई सेना की सदस्‍य हैं। ये कचरे को जय की कंपनी के भोपुरा, गाजियाबाद स्थित मुख्‍य गोडाउन लाते हैं, जहां 70 कर्मचारी कचरा छांटते हैं। इसके बाद रिसाइकिल कंपनियों को बेच दिया जाता है। अल मेहताब उनकी आधिकारिक रिसाइकिल कंपनी है, जहां टनों से प्‍लास्टिक कचरा रिसाइकिल होता है। 

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14:23 PM 5 Jun, 2018
प्लास्टिक कचरे को रीसाइकल करने के लिए शुरू किया ये स्टार्टअप

2013 में बैनयन संस्था का जन्म हुआ। ये संस्था कोलंबिया बिजनेस स्कूल से डिग्री हासिल करने वाले मणि बाजपेई के मन में आया। एक इंजीनियर के रूप में अनुभव रखने वाले मणि बाजपेई ने पर्यावरण के संरक्षण के लिए इस कम्पनी का निर्माण किया। उन्होंने पानी की बोतलों से लेकर अन्य प्लास्टिक की चीजों को रीसाइकल करना शुरू किया। हैदराबाद में रहकर उन्होंने ये काम करना शुरू किया। उनकी कम्पनी एक साल में इस समय 1200 टन प्लास्टिक कचरा को रीसाइकल करती है। संस्थापक मणि वाजपेयी के मुताबिक बाकी देशों की तुलना में भारत में प्लास्टिक को ज्यादा बड़ी मात्रा में रीसाइकल भी किया जाता है। वे कहते हैं कि हालांकि अपने यहां पर अभी प्लास्टिक कचरे का प्रयोग कम है लेकिन इसके बाद भी भविष्य को लेकर सावधान रहना चाहिए। 

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14:23 PM 5 Jun, 2018

मुम्बई के अफरोज ने साफ की गंदी बस्तियां

पेशे से वकील मुम्बई के अफरोज शाह पर्यावरण संरक्षण की मुहिम चला रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्‍वच्‍छता अभियान में साथ देने वाले पर्यावरणविद अफरोज शाह ने सबसे गंदे मोहल्ले की सफाई का बीड़ा उठाया था। मुंबई के सबसे गंदे वर्सोवा समुद्र तट पर 2015 में सफाई आंदोलन की शुरुआत करने वाले अफरोज शाह ने सफाई की शुरुआत का यह बीड़ा 2015 में उठाया था जो बाद में जन आंदोलन बन गया। उन्होंने अक्टूबर 2015 में मुंबई के वर्सोवा बीच को साफ करने का अभियान शुरु किया था और 85 हफ्तों में ही शहर के सबसे गंदे बीच की सूरत बदल कर रख दी थी। इस सराहनीय कार्य के लिए अफरोज को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत ‘चैंपियन ऑफ द अर्थ’ पुरस्कार से सम्‍मानित किया जा चुका है। उन्‍होंने कहा, ‘मैंने जमीनी स्‍तर पर कड़ी मेहनत के साथ काम शुरू किया था लेकिन महसूस हुआ की लोगों की मानसिकता नहीं बदली। हार स्वीकार कर लेना सकारात्मक संकेत है। ये आपको सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे चीजें दोबारा चीजें बदली जाएं। हम इससे सीखेंगे और भविष्य में कुछ अच्छा करेंगे।‘

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