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मैथिली शरण गुप्त: जिनकी कविताओं ने लोगों में जगाया देशभक्ति का जुनून
राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की जयंती पर पढ़िए उनके जीवन से जुड़े कुछ किस्से
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हिंदी साहित्य को बुलंदियों तक पहुंचाने में कई सारे कवियों और लेखकों ने अपना योगदान दिया है लेकिन कुछ कवि ऐसे भी थे जिनकी रचनाओं ने न केवल हिंदी काव्य की परिभाषा बदल दी बल्कि लोगों में साहित्य के प्रति रूचि भी जगाई। ऐसे ही महान राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त थे जिनकी कृतियों में सरलता के साथ-साथ आपको एक नई विधा देखने को मिलेगी। राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रीय एकता और राष्ट्ररक्षा का अद्भुत उदाहरण आपको गुप्त जी की कविताओं में देखने को मिलेगा। इसी योगदान के लिए हिंदी साहित्य ने उन्हें 'राष्ट्र कवि' की उपाधि दी गई और ये उपाधि उन्हें राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने दी थी। 

  • पिता से मिली लिखने की प्रेरणा

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    हिंदी साहित्य को बुलंदियों तक पहुंचाने वाले कवि।

    मैथिलीशरण गुप्त का जन्म मध्य प्रदेश के चिरगाँव (झाँसी) में  3 अगस्त 1886 को हुआ था। पिता रामचरण और माता काशी देवी की ये तीसरी संतान थे। इनके पिता का व्यापार था लेकिन उसमें भारी घाटा होने से घर की आर्थिक स्थिति कोई खास नहीं थी। वे स्थानीय जिला बोर्ड के सदस्य भी थे और महाराजा ओरछा उन्हें अपने सम्मानित व्यक्तियों में रखते थे।  श्री रामचरण जी भक्ति-भाव की कविताएं लिखते थे। उनसे ही प्रेरित होकर मैथिली शरण भी कविताएं लिखने लगे। मैथिली शरण की शादी सन् 1895 में मात्र 9 वर्ष में हो गई थी और कुछ वर्षों बाद ही पत्नी की मृत्यु हो गई। 

  • यशोधरा में दिखा अद्भुत काव्य सृजन

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    यशोधरा में दिखा मार्मिक वर्णन

    भगवान बुद्ध के राजवैभव, पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को त्याग कर निर्वाण के लिए निकल पड़ने की कहानी को मैथिली शरण ने जितने मार्मिक तरीके से लिखी है। उसका कोई जोड़ नहीं है। यशोधरा के त्याग और दुख को उनकी कलम ने जिस भावपूर्व तरीके से लिखा है उसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता, 'सखि वो मुझसे कहकर जाते' पंक्तियों में ये वियोग अच्छी तरह से दिखाई देता है। इसके अलावा 'जयद्रथ-वध' और ‘भारत भारती' उनकी महान कृतियों में शामिल हैं। 

  • भारत भारती से मिला राष्ट्रकवि का सम्मान

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    भारत भारती से मिली उपलब्धि

    गुप्त जी की रचनाओं में राष्ट्रप्रेम, एकता और त्याग आपको अच्छे तरीके से दिखाई देगा। भारत भारती रचना की सफलता के बाद ही 1930 में महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि दी। भारत भारती में उन्होंने भारत के इतिहास और राष्ट्रीयता के गौरव का बखान तो किया है लेकिन ये रचना समाज में फैली तमाम कुरीतियों पर एक प्रहार भी थी। धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव पर उन्होंने अपने लेखन से ऐसी चोट मारी की एक क्रांति सी आ गई। 59 वर्षों में गुप्त जी ने हिंदी को लगभग 74 रचनाएं दी, जिनमें दो महाकाव्य,17 गीतिकाव्य, 20 खंड काव्य,  चार नाटक और गीतिनाट्य शामिल हैं। 


    हैं। उनके इसी विलक्षण क्षमता को देखकर महादेवी वर्मा ने उनकी प्रशंसा करते हुए लिखा है , ‘अब तो भगवान के यहां वैसे साँचे ही टूट गए जिनसे दद्दा जैसे लोग गढ़े जाते थे।’


    जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं।

    वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।''


    ये पंक्तियां पढ़कर किसी के ह्दय में भी राष्ट्रप्रेम भरने के लिए काफी हैं। आजादी के आंदोलन के समय गुप्त जी की इन कविताओं ने युवाओं के अंदर नई ऊर्जा का संचार किया। 

  • खड़ी बोली के महान कवि

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    पदम विभूषण से भी नवाजा गया

    गुप्त जी को खड़ी बोली में महारत हासिल था। उन्हें हिंदी साहित्य में खड़ी बोली से जुड़े कई प्रयोग किए। इनकी प्रारंभिक रचानाएं ब्रज भाषा में थी। गुप्त जी के बारे में हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा था, गुप्त जी ने काव्य में खड़ीबोली का बड़ा सफल प्रयोग किया है। उनकी भाषा में संस्कृत के भी उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिलते थे, साकेत इसका साक्ष्य है। उन्होंने भाषा के कई रूपों को अपने साहित्य में जगह दी। तत्सम शब्दों का प्रयोग भी अपनी कृतियों में खूब किया। मैथिलीशरण जी ने अपने जीवन में तमाम सामाजिक मुद्दों पर अपनी रचनाएं लिखीं। आजादी के आंदोलन के बाद जब देश हिंदू मुस्लिम मतभेद से जूझ रहा था तब उनकी लिखी 'काबा और कर्बला' ने लोगों के अंतर्मन को झकझोर दिया। 40 वर्षों तक साहित्य साधना करने वाले मैथिलीशरण जी को सरकार ने देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पदम विभूषण से भी नवाजा। 

  • सरस्वती पत्रिका से हुई लेखन की शुरुआत

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    लेखन के शुरुआती दौर में मैथिलीशरण गुप्त ने सरस्वती जैसी पत्रिकाओं में कविताएं लिखीं। इनकी पहली प्रमुख कृति “रंग में भंग” 1910 में प्रकाशित हुई थी। इनकी प्रमुख काव्यगत कृतियां हैं  रंग में भंग, भारत-भारती, जयद्रथ वध, विकट भट, प्लासी का युद्ध, गुरुकुल, किसान, पंचवटी, सिद्धराज, साकेत, यशोधरा, अर्जुन-विसर्जन, काबा और कर्बला, जय भारत, द्वापर, नहुष, वैतालिक, कुणाल। इनकी कृति भारत भरती सन् 1912 में प्रकाशित हुई थी, जो एक राष्ट्रवादी कविता है, जिसमें भारतीय इतिहास, संस्कृति और परंपराओं को बड़े ही विस्तृत रूप में लिखा गया है। 12 दिसंबर,1964 को हिंदी साहित्य ने अपने इस महान लेखक को खो दिया लेकिन उनकी बेमिसाल रचनांए आज भी हमारे दिलों में अमर हैं।





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