
ड्राइवर पिता ने बेटे को पहलवान बनाने के लिए सब कुछ किया था कुर्बान, एक भाई ने सुशील की खातिर छोड़ दी थी कुश्ती
21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में गुरुवार को भारत ने रेसलिंग में दो गोल्ड, एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल जीता। भारत के गोल्डन मैन व ओलंपिक में सिल्वर व ब्रॉन्ज मेडल विजेता सुशील कुमार ने महज 80 सेकेंड में अपने प्रतिद्वंदी पहलवान को चित करके फाइनल मुकाबला जीत लिया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के जोहानस बोथा के खिलाफ 80 सेकंड में 10 अंक हासिल कर लिए। इसके बाद टेक्निकली सुपरवीजनिली ग्राउंड पर उन्हें विजेता घोषित कर दिया गया। इससे पहले सेमीफाइनल में सुशील ने कोन्नूर इवांस को हराया था। सुशील ने पहले मैच में कनाडा के जेवोन बालफोर को 11-0 से हराया। सुशील ने दूसरे मुकाबले में पाकिस्तान के असद बट को 10-0 से पटखनी दी। सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के कोन्नूर इवांस फाउल कर गए और सुशील कुमार खिताबी मुकाबले में पहुंच गए थे।

सुशील ने गोल्ड कोस्ट में स्वर्ण पदक जीतने के साथ ही कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड की हैट्रिक भी लगाई है। इससे पहले उन्होंने 2014 ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में 74 किग्रा फ्रीस्टाइल में गोल्ड जीता था। 2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में भी उन्होंने 66 किग्रा फ्रीस्टाइल में गोल्ड जीता था। इस तरीके से उन्होंने एक अद्भूत करिश्मा कर दिखाया। इसके अलावा सुशील कुमार 2003, 2005, 2007 और 2009 में हुई कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप में भी गोल्ड जीत चुके हैं।

सुशील कुमार सोलंकी का जन्म 26 मई 1983 को दिल्ली के ही छोटे से गाँव बपरोला में हुआ। घर में शुरू से ही उन्हें पहलवानी का माहौल मिला। तीन भाईयों में सबसे बड़े सुशील कुमार बचपन से ही अपने पिता के दीवान सिंह के नक्शेकदम पर चल पड़े। एक छोटे से कमरे में उनके सपने बुनने शुरू हो गए। लेकिन इन सबके बीच में बाधा बनी घर की आर्थिक स्थिति। पिता डीटीसी में बस चलाकर किसी तरह से पूरे परिवार का गुजारा करते थे। घर की आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण सुशील कुमार के एक भाई संदीप कुमार ने हमेशा के लिए कुश्ती से अलविदा कह दिया। इसके बाद सुशील कुमार ने अपनी कुश्ती जारी रखी। उनके पिता ने किसी भी तरह से अपने वेतन से सुशील कुमार की डायट पूरा की। उन्होंने अपने पिता के सपने को पूरा किया और भारत की झोली में एक के बाद एक पदक डाले।

सुशील कुमार की मेहनत आखिरकार रंग लाई और सुशील सबसे पहले सुर्खियों में तब आए, जब उन्होंने 1998 में पोलैंड में ‘वर्ल्ड कैडेट गेम्स’ में स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद फिर उनके पदक जीतने का सिलसिला शुरू हो गया। उन्होंने 2000 में एशियाई जूनियर कुश्ती चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद तो उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए। कुश्ती में उनके बेहतरीन योगदान को देखते हुए उन्हें 2006 में अर्जुन पुरस्कार दिया गया। 2007 में उनकी रैंकिंग सातवीं थीं, लेकिन उन्होंने 2008 के बीजिंग ओलंपिक में खेलने की पात्रता हासिल कर ली और अंतत: कांस्य पदक जीतने में भी कामयाबी पाई। इस बेहतरीन कामयाबी के बाद उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल पुरस्कार ‘राजीव गांधी खेल रत्न’ (2009 के लिए) से सम्मानित किया गया। वे कुश्ती विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले (मॉस्को, 2010) भारत के इकलौते पहलवान हैं। 2012 लंदन ओलंपिक में 66 किग्रा कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीतकर कुश्ती के इतिहास में ऐसा कारनामा करने पहले भारतीय पहलवान बने।

कहते हैं हर सफल आदमी के पीछे एक महिला का हाथ होता है। जब सुशील कुमार ने लंदन ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रचा था उनकी इस कामयाबी के पीछे भी एक महिला ही छुपी हुई है। ये महिला हैं सुशील कुमार की पत्नी सावी सोलंकी। जब सुशील कुमार अपने प्रतिद्वंदी से दो-दो हाथ कर रहे थे तब उनकी हौसलाफजाई करने वाले हॉल में मौजूद लोगों में उनकी पत्नी सावी भी थी। सावी ने हर मुकाबले में उनका जमकर उत्साह बढ़ाया। सुशील कुमार की शादी के उस समय एक साल ही हुआ था लेकिन महज दो महीने ही साथ गुजारे हैं। सुशील कुश्ती की प्रैक्टिस में काफी व्यस्त रहते हैं और वो घर-परिवार के लिए कम वक्त ही निकाल पाते थे। उन्होंने कहा, 'ये उनकी कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि वो कुश्ती में अब वही जगह रखते हैं जो कि क्रिकेट में सचिन और शतरंज में विश्वनाथन आनंद रखते हैं।' सावी सोलंकी सुशील कुमार के गुरू सतपाल महाराज की बेटी है। इस तरीके से सुशील कुमार एक गुरू के दामाद भी है।

सुशील कुमार के बारे में एक खास बात कि वह पूरी तरह से हिन्दू परम्परा और शिक्षाओं का पालन करते है। इसका असर उस समय भी देखने को मिला जब उन्होंने शराब या किसी नशे से जुड़े ब्रॉड का विज्ञापन करने से मना कर दिया था। उनको एक ब्रांड के लिए 50 लाख का ऑफर मिला था लेकिन उन्होंने उसको ठुकरा दिया था। इसका कारण यह था कि वह शराब से जुड़ा एक बड़ा ब्रांड था |
