
भारत में आईटी बाजार को नया रूप देने वाली टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) कम्पनी ने बीते सप्ताह इतिहास रच दिया है। टीसीएस भारत की पहली ऐसी कंपनी बन गई है, जिसकी मार्केट कैप 100 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई है। मार्केट कैप 6.80 लाख करोड़ रुपये के पार हो गया है। टाटा ग्रुप की यह आईटी सर्विस कंपनी ऐसा मुकाम हासिल करने वाली देश की पहली कंपनी बन गई है। शुक्रवार को भी कंपनी का मार्केट कैप 6.40 लाख करोड़ के पार चला गया था। टीसीएस का अब तक का सफर बहुत रोमांचक रहा है। इस बारे में टीसीएस के सीईओ और एमडी रह चुके एस. रामादोराई ने अपनी किताब 'द टीसीएस स्टोरी...एंड बियॉन्ड' व टीसीएस के विकिपीडिया पेज पर बताया गया है।
1960 में पढ़ी थी टीसीएस की नींव
सुई से लेकर बड़ी चीजों का उत्पादन करने वाले टाटा ग्रुप ने 1960 के दशक में टीसीएस की नींव डाली थी। तब जेआरडी टाटा के सामने मौखिक प्रस्ताव रखा गया कि टाटा समूह को डाटा प्रोसेसिंग की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। तब दुनिया की अलग-अलग कंपनियां इस पर काम शुरू कर चुकी थीं। जेआरडी ने तुरंत विचार किया और प्रस्ताव पास कर दिया। ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा सन्स ने इसमें 50 लाख के निवेश का ऐलान भी कर दिया। इसकी शुरुआत टाटा समूह के एक विभाग के तौर पर "टाटा कंप्यूटर सेंटर" के नाम से हुई। तब इसका मुख्य व्यवसाय अपने ही समूह की अन्य कंपनियों को कंप्यूटर सेवाएं प्रदान करना था।

टाटा एंड संस ने डाटा प्रोसेसिंग के क्षेत्र में नीव डाल दी इसके अब सबसे बड़ी चुनौती थी कि योजना को अमलीजामा कैसे पहनाया जाए। 1968 तक नाम फाइनल हो चुका था - टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज। फकीर चंद कोहली को इसका इंचार्ज बना दिया गया था। एमआईटी से निकले कोहली अब तक टाटा इलेक्ट्रिक (अब टाटा मोटर्स) में सेवाएं दे रहे थे। कोहली को यह बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि वे टीसीएस को जमीनी स्तर पर खड़ा करें। खास बात यह है कि किताब में कोहली को एक 'उदार तानाशाह' करार दिया गया है।

रामादोराई छोड़कर आए थे 12 हजार डॉलर की नौकरी
टीएसएस कम्पनी की जिम्मेदारी संभालने के बाद कोहली का साथ देने के लिए कम्पनी में 1969 में रामादोराई की इंट्री हुई। तब रामादोराई ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से पढ़ाई खत्म की ही थी और कुछ समय के लिए अमेरिका के नेशनल कैश रजिस्ट्रार में काम किया था। रामादोराई वहां से 12 हजार डॉलर की नौकरी छोड़कर आए थे और टीसीएस में उन्हें एक हजार रुपए महीने की तनख्वाह पर प्रोग्रामर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। टीसीएस में जॉब करने के लिए रामादोराई अपनी पत्नी महालक्ष्मी की शर्त के कारण आए थे और युवा रामादोराई, कोहली के मार्गदर्शन में देश में कम्प्युटर क्रांति लाने के पथ पर चल पड़ा।

टीसीएस को शुरुआती काम टाटा ग्रुप की दूसरी कंपनियों से ही मिला। ऑर्डर कम पड़े तो कंपनी ने ईरान का रुख किया, जहां टाटा समूह ने पॉवर स्टेशन्स के लिए अपना नया प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसके बाद एक मौका ऐसा आया, जब कंपनी के कामकाज का तरीका पूरी तरह बदल गया। 1973 में इंदिरा गांधी सरकार ने फॉरेन एक्सचेंज रेग्युलेशन एक्ट (फेरा) लागू किया था। इससे देश में विदेशी उपकरणों के आयात की सीमा तय हो गई थी। साथ ही देश में कोई भी मल्टीनेशनल्स कंपनी ज्वाइंट वेंचर में 40 फीसदी से ज्यादा होल्डिंग नहीं रख पाएगी।

जब आईबीएम को हटना पड़ा पीछे
आईटी सर्विस में विश्व की अग्रणी मानी जाने वाली आईबीएम कम्पनी को इंदिरा गांधी सरकार द्वारा नियम बनाए जाने के कारण पीछे हटना पड़ा। बस यही से टीसीएस को ग्रोथ करने का मौका मिला। इसका फायदा उठाते हुए टीसीएस ने तेजी से उड़ान भरनी शुरू कर दी। यह टीसीएस के लिए बहुत बड़ी खबर रही, क्योंकि अब तक भारतीय प्रोग्रामर्स आईबीएम मैनफ्रेम्स पर ही काम कर रहे थे। अब टाटा ने तेजी से अपने सॉफ्टवेयर बनाने शुरू कर दिए।

आईबीएम के पीछे हटने के बाद कम्पनी ने सॉफ्टवेयर बनाना शुरू कर दिया। अपना पहला सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट प्रोजेक्ट1974 में आरम्भ किया। इसके लिए Burroughs से करार किया गया, जो उस समय माइक्रो-प्रोग्रामिंग और सॉफ्टवेयर आर्किटेक्चर में सबसे आगे थी। यहीं से भारत की ग्रेट इंडियन आउटसॉर्सिंग स्टोरी शुरू हुई। टीसीएस ने अपने लोगों को अमेरिका भेजा, ताकि वे यह सीख पाएं कि भारत में आईबीएम के क्लाइंट्स को टीसीएस पर कैसे शिफ्ट किया जाए। जब कंपनी ने हॉस्पिटल इन्फोर्मेशन सिस्टम को बुर्होज़ (Burroughs) मीडियम सिस्टम्स कोबोल (COBOL) से बुर्होज़ स्मॉल सिस्टम्स कोबोल में बदल दिया। इस प्रोजेक्ट को पूरी तरह से टीसीएस मुंबई में आई.सी.एल. 1903 कंप्यूटर पर अंजाम दिया गया।

90 के दशक में टीसीएस की दुनिया में बन गई पहचान
1968 में स्थापित हुई टीसीएस कम्पनी की पहचान दुनिया में 90 के दशक बनी। अपने काम की वजह से टीसीएस दुनिया में जाना पहचाना नाम हो गया। 1984 में टीसीएस ने मुम्बई स्थित सान्ताक्रुज़ इलेक्ट्रोनिक्स एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग जोन में अपना एक दफ्तर स्थापित किया। कंपनी फायनेंशियल सर्विसेस में एक्सपर्ट हो गई थी। सितंबर 1996 में रामादोराई को कंपनी की मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाया गया। कंपनी को आगे बढ़ाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई।

कम्पनी की पहचान दुनिया में बनने का यह फायदा रहा कि कम्पनी का व्यापार भी बढ़ता गया। टीसीएस 2002 में देश की पहली $1-बिलियन सॉफ्यवेयर कंपनी बनी। 2010 में टीसीएस 2500 करोड़ की कंपनी बन गई। उसके बाद 50,000 करोड़ का आंकड़ा इसने वर्ष 2013 में और 7500 करोड़ 2014 में पार कर लिया था। अब टाटा कंसल्टेंसी सर्विस का मार्केट कैप 6.80 लाख करोड़ रुपये के पार हो गया है।

एन चंद्रशेखरन ने टीसीएस को बढ़ाया
टाटा सन्स के मौजूदा चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने टीसीएस को बहुत आगे तक बढ़ाया है। चंद्रशेखरन लंबे समय तक टीसीएस के चेयरमैन रहे और उन्हीं की अगुआई में टीसीएस टाटा ग्रुप की नंबर वन कंपनी बनने के साथ ही देश की सबसे वैल्यूएबल कंपनी भी बनी। TCS के फॉर्मर वाइस चेयरमैन एस रामादोराई ने 1993 में चंद्रा का हुनर पहचाना और 1996 में उन्हें अपना एग्जिक्यूटिव असिस्टेंट बनाया। रामादोराई ने बताया, ‘चंद्रा के बारे में कई लोगों, क्लाइंट और सहकर्मचारी से अच्छा फीडबैक मिला था। जनवरी, 1987 में टीसीएस जॉइन करने के बाद उन्होंने तेजी से अपनी पहचान बनाई। चंद्रा के शुरुआती बॉस में एक और टीसीएस के फॉर्मर CFO एस महालिंगम ने बताया, शुरू से ही उन्हें एक लीडर माना जाता था।

टीसीएस बढ़ते कदमों को दुनिया ने भी लोहा माना और कम्पनी को वर्ष 2007 में एशिया की सबसे बड़ी कम्पनी के रूप में आंगा गया। भारत की अन्य आईटी कम्पनियों की तुलना में टीसीएस का कार्यक्षेत्र बहुत ही बड़ा है और कम्पनी 44 से अधिक देशों में कार्य कर रही है। इस कम्पनी का व्यापार अमेरिका ने अन्य दुनिया के बड़े शहरों में है। कम्पनी के आंकड़ों पर गौर करें तो कम्पनी के पास लगभग 2,54,000 कर्मचारी देश और विदेश में सेवा दे रहे हैं।

इस वजह से बढ़ा मार्केट कैप
वित्त वर्ष 2018 की चौथी तिमाही में कंपनी के स्टॉक में 6.5% की तेजी आई, जिससे कंपनी का मार्केट कैप भी बढ़ा। टीसीएस के स्टॉक भी 52 हफ्ते के नए हाई 3399.90 रुपये पर शुक्रवार को पहुंच गया था। वित्त वर्ष 2018 की चौथी तिमाही में कंपनी का मुनाफा 5.71% बढ़ा था। कंपनी को कुल 6904 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। पूरे साल में टीसीएस का मुनाफा 4.5% बढ़ा है।

ऊर्जा से टेलीकॉम का सफर तय कर चुकी दिग्गज रिलायंस इंडट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) 100 अरब डॉलर का आंकड़ा 2007 में ही छू चुकी है। टीसीएस के अलावा यह अकेली ऐसी कंपनी है जिसने 100 अरब डॉलर का आंकड़ा पार किया हो। आरआईएल देश के सबसे धनवान व्यक्ति मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी है। शुक्रवार को कारोबार बंद होने तक कंपनी का कुल बाजार पूंजीकरण मूल्य 88.8 अरब डॉलर का था। पिछले एक दशक में डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य 40 फीसदी तक कमजोर हुआ है, जिसकी वजह से आरआईएल के बाजार पूंजीकरण पर असर पड़ा है।

पिछले साल आरआईएल ने छोड़ा था पीछे
पिछले साल अप्रैल में मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) मार्केट कैप के मामले में देश की सबसे मूल्यवान कंपनी बनी थी। इस वक्त आरआईएल का बाजार पूंजीकरण मूल्य 4,60,518.80 करोड़ रुपए हो गया, लेकिन वह इस क्लब से बेहद दूर है। आपको बता दें, पिछले साल ही आरआईएल ने मार्केट कैप के मामले में टाटा कंसल्टेंसी (टीसीएस) को पीछे छोड़ा था। लेकिन, अब टीसीएस के आसपास भी नहीं है। टीसीएस का मार्केट कैप 6,62,726.36 करोड़ के स्तर को पार कर गया है।

एप्पल का मार्केट कैप दुनियाभर में सबसे ज्यादा है। एप्पल का मार्केट कैप 49.9 लाख करोड़ रुपये का है, जो कि टीसीएस के कैप से करीब 8 गुना ज्यादा है। 38.3 लाख करोड़ रुपये मार्केट कैप से साथ गूगल की कंपनी एल्फाबेट दूसरे पायदान पर है। देश की ऑटोमेशन इंडस्ट्री में टाटा ने ही पिछले एक साल में इस तरह की ग्रोथ हासिल की है। इसमें बड़ा योगदान टाटा के लॉन्च किए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम का रहा।
