हाल ही में पद्म अवार्ड की घोषणा हो चुकी हैं। इसमें एक बार फिर से भारत के अनमोल रत्नों को देश के प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिए चुना गया है। जिसमें पद्म विभूषण के लिए 4, पद्म भूषण के लिए 14 और पद्मश्री के लिए 94 हस्तियों को सम्मानित किया जाएगा। भारत के इन्हीं अनमोल रत्नों में एक ऐसा शख्स है जिनसे अपना पूरा जीवन नौनिहालों के उज्जवल भविष्य के लिए लगा दिया है। बच्चों के पढ़ाई की खातिर उस शख्स ने चाय भी बेची और अपनी कमाई को भी बच्चों का भविष्य बनाने में लगा दिया। इनका नाम है डी. प्रकाश राव। बच्चों के लिए अनोखा स्कूल चलाने वाले डी प्रकाश राव ओडिशा के कटक के रहने वाले हैं।
-
50 साल से कटक में चला रहे दुकान
बच्चों को पढ़ाते हुए डी. प्रकाश राव
डी. प्रकाश राव लगभग 50 सालों से चाय बेचने का काम कर रहे हैं। कटक शहर में चाय की दुकान चलाने वाले राव अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा समाज के लिए खर्च कर रहे हैं। बच्चों का उज्जवल भविष्य बनाने के लिए वह पिछले कई सालों से बच्चों पर खर्च कर रहे हैं। वे अपनी कमाई से गरीब बच्चों को शिक्षा और खाने का समान उपलब्ध करवाते हैं। वह अपनी कमाई का आधा हिस्सा बच्चों की बेहतरी पर खर्च करते हैं।
-
बख्शीबाजार में चला रहे दुकान
बच्चों को पढ़ाते हुए डी. प्रकाश राव
डी. प्रकाश राव कटक शहर के बख्शीबाजार में एक स्लम में रहते हैं। उनकी यहीं पर चाय की दुकान भी है। यहीं पर चाय की दुकान चलाने के दौरान उन्होंने बच्चों की बेहतरी के लिए काम करना शुरू किया।
-
7 साल की उम्र से बेच रहे चाय
बच्चों के साथ डी. प्रकाश राव
जब डी. प्रकाश राव 7 साल के थे तब से ही चाय का काम कर रहे हैं और लॉअर टॉर्सो पैरालाइसिस से पीड़ित हैं। समाज में जरूरतमंद लोगों को रक्त मिलता रहे इसलिए अब तक वह 200 से अधिक बार रक्त दान कर चुके हैं।
-
पीएम मोदी ने की तारीफ
डी. प्रकाश राव
डी. प्रकाश राव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते है। उनके इस कार्यों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मई, 2018 को रेडियो पर मन की बात करते हुए तारीफ की थी। प्रधानमंत्री ने बताया था कि पिछले 50 साल से चाय बेचने वाले प्रकाश राव अपनी आधी आमदनी 70 गरीब बच्चों की शिक्षा पर खर्च करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि वह हम सब के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं।
-
इस वजह से राव नहीं कर सकें पढ़ाई
अपनी दुकान पर डी. प्रकाश राव
गरीबी की वजह से डी. प्रकाश राव खुद पढ़ाई नहीं कर सके। प्रकाश बचपन से ही पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन उनके पिता जी उन्हें काम पर लगाए रहते थे। पिता ने दूसरे विश्व युद्ध में भी हिस्सा लिया था। वह 1976 से बख्शीबाजार में चाय की दुकान चला रहे हैं। उनके पिता जी यहीं पर पहले दुकान चलाते थे।
-
11वीं के बाद छोड़ दी पढ़ाई
अपनी दुकान पर डी प्रकाश राव
जब डी. प्रकाश राव ग्यारहवीं क्लास में थे तब उनके पिता को गंभीर बीमारी हो गई। इसकी वजह से पिता की जगह उन्हें दुकान संभालना पड़ा और उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। हालांकि बाद में उन्होंने 2000 में एक स्कूल खोला और झुग्गी झोपड़ियों के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।
-
तीसरी क्लास तक चलता है स्कूल
कार्यक्रम के दौरान डी. प्रकाश राव
शुरुआत में डी. प्रकाश राव पूरा खर्च स्वयं ही उठाते थे। उनका स्कूल तीसरी क्लास तक चलता है। इसके बाद धीरे-धीरे लोगों का साथ मिलने लगा और अब स्कूल को दूसरे लोग भी समय-समय पर आकर मदद करते रहते हैं। स्कूल में पढ़ने आने वाले बच्चों को दूध और फ्रूट भी मिलता हैं। डी. प्रकाश राव खुद ही बच्चों को पढ़ाते हैं।
-
खेल की दुनिया में कर रहे नाम
बच्चों के साथ डी. प्रकाश राव
डी. प्रकाश राव द्वारा संचालित स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे खेल की दुनिया में भी नाम कर रहे हैं। 2013 में गोवा में हुए नेशनल विंड सर्फिंग कंपीटिशन में डी. प्रकाश राव के स्कूल के महेश राव ने छह गोल्ड मेडल जीते थे।
-
यह मिला सम्मान
डी. प्रकाश राव
डी. प्रकाश राव को मानवाधिकार दिवस पर 2015 की दिसंबर में ओडिशा ह्यूमन राइट कमीशन ने सम्मानित किया था। उनके इस अनोखे काम पर स्कूल को लेकर कुछ डॉक्यूमेंट्रीज फिल्म भी बन चुकी हैं।