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जलियांवाला बाग हत्याकांड: इतिहास में दर्ज इस नरसंहार के आज 101 साल हुए पूरे
13 अप्रैल 1919 आज ही का दिन था जो इतिहास के पन्नों में एक अत्याचार की दास्तां के रूप में दर्ज हो गया।
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13 अप्रैल 1919 आज ही का दिन और बैसाखी का पर्व था जो इतिहास के पन्नों में एक अत्याचार की दास्तां के रूप में दर्ज हो गया। अमृतसर के जलियांवाला बाग में बूढे, बच्चे, महिलाएं, आदमी सभी लोग मौजूद थे और ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेज सैनिकों ने इन निहत्थों पर गोलियां चला दीं। इस कांड में कई लोगों की मौत हुई, बहुत से लोग घायल हुए और तब से ये दिन नरसंहार की वो कहानी हर साल ही बयां करता है। 

  • बैसाखी मनाने इकट्ठा हुए थे लोग

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    निहत्थों पर हुई थी गोलीबारी

    अमृतसर के स्वर्णमंदिर के पास में जलियांवाला बाग नाम का एक छोटा सा गार्डेन है जो आज भी 1919 की दास्तां को याद कराता है। वो रविवार का दिन था कई सारे सिक्ख व हिंदू नए कपड़े पहनकर बैसाखी मनाने आए थे लेकिन किसी को भी ये अंदाजा नहीं था कि इतनी बड़ी घटना भी हो सकती है। स्वर्ण मंदिर में दर्शन के बाद धीरे-धीरे लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठा हो रहे थे। ये बाग चारों ओर से घिरा हुआ था और अंदर जाने का सिर्फ एक ही रास्ता था। जनरल डायर के सैनिक बाग के उसी रास्ते पर तैनात हुए और अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। हजारों की संख्या में मौजूद निहत्थे लोग मौत के घाट बिना किसी कारण उतार दिए गए।


  • कुएं से निकाली गई लाशें

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    भगदड़ में भी गई थी लोगों की जानें

    गोलियों की आवाज सुनकर कई लोगों ने बाग के कुएं में छलांग लगा दी। बाद में इसमें से कई बच्चों, बुर्जुगों व महिलाओं की लाशें निकाली गईं। लोगों की वहां से उस समय भागने की हर तरकीब नाकामयाब थी क्योंकि भागने के रास्ते पर सैनिक पहले से बंदूक लिए तैनात थे। 10 से 15 मिनट में 1650 राउंड गोलियां चलवा दीं गईं और भागती हुई भीड़ इसका शिकार हुई। कई लोग की जान तो भगदड़ की वजह से चली गई। 


  • जनरल डायर ने सफाई में कहा था

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    पूरे बाग में हर जगहें सिर्फ लाशें बिछी थीं।

    डिस्आर्डर इन्क्वायरी कमिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जनरल डायर ने अपनी सफाई में कहा था कि उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए ऐसा किया। उन्होंने ये भी माना कि वो चाहते तो इस भीड़ किसी और तरीके से भी हटा सकते थे लेकिन अगर वो ऐसा न कर पाते तो लोग उनपर हंसते उन्हें मूर्ख कहते इसलिए उन्होंने ये किया। इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि डायर ने तब तक गोलीबारी कराई जब तक गोलियां खत्म नहीं हुईं। उस समय 1650 राउंड गोलियां चलाई गई थीं। पूरे बाग में हर जगह सिर्फ लाशें ही लाशें थीं। इस फायरिंग में लगभग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुताबिक 1,000 से ज़्यादा लोग शहीद हुए थे, जिनमें से 120 की लाशें कुएं में से निकाली गई थीं। 

  • डायर को देना पड़ा इस्तीफा

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    डायर ने 1920 में इस्तीफा दे दिया

    इस हत्याकांड पर पूरी दुनिया में लोगों ने अफसोस जताया और इसकी आलोचना की। दबाव में आकर भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्‍टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन का निर्माण किया। कमीशन ने पूरे मामले की छानबीन कर रिपोर्ट प्रस्तुत की और उसके बाद डायर का डिमोशन कर उसे कर्नल बना दिया गया, और साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया। इस पूरे कांड के बाद में ब्रिटिश सरकार ने डायर के खिलाफ निंदा प्रस्‍ताव पारित किया और 1920 में डायर को इस्‍तीफा देना पड़ा। 1927 में जनरल डायर की ब्रेन हेम्रेज से मौत हो गई थी।

  • भगत सिंह पर पड़ा था गहरा असर

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    पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे थे भगत सिंह

    इस घटना ने वैसे तो पूरे देश को हिलाकर रख दिया था लेकिन जलियांवाला बाग हत्‍याकांड का भगत सिंह पर कुछ ज्यादा ही गहरा असर पड़ा था।  कहते हैं कि जब भगत सिंह को इस पूरे घटना की जानकारी हुई तो वह अपने स्‍कूल से 19 किलोमीटर पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे गए थे। इस घटना के बाद ही उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए नौजवान सभा की नींब रख दी। ये कहना गलत नहीं होगा कि उनको क्रांतिकारी बनाने में इस घटना का ही बड़ा योगदान रहा। 

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