
हिंदी साहित्य व तीसरे सप्तक के प्रसिद्ध कवि व लेखक केदारनाथ सिंह का कल रात निधन हो गया। केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
हिंदी साहित्य व तीसरे सप्तक के प्रसिद्ध कवि व लेखक केदारनाथ सिंह का कल रात निधन हो गया। यूपी के बलिया जिले के चकिया गांव में 1934 को जन्मे केदारनाथ सिंह को 2013 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था। बीमारी के चलते वो 13 मार्च से ही एम्स में भर्ती थे। एम्स से मिली जानकारी के अनुसार, उन्हें संक्रमण की शिकायत भी थी। डॉक्टरों का कहना है कि 86 वर्षीय केदार नाथ काफी समय से बीमारी से जूझ रहे थे।

केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई, 1934 को हुआ था। 1956 में उन्होंने बीएचयू से हिंदी साहित्य में एमए और 1964 में पीएचडी किया। कविता लेखन के साथ ही साथ वे कई कॉलेजों मे हिंदी भाषा के प्रोफेसर भी रहे। वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र में बतौर आचार्य और अध्यक्ष भी काम कर चुके हैं। वे एक अच्छे कवि के साथ-साथ एक अच्छे शिक्षक भी थे, उनसे पढ़ने वाले छात्रों का कहना है कि निराला की प्रसिद्ध और कठिन माने जाने वाली कविता राम की शक्तिपूजा को उनसे बेहतर हिंदी का कोई अन्य प्रोफेसर नहीं पढ़ा सकता था।

बनारस से रहा विशेष जुड़ाव
केदारनाथ सिंह का बनारस और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से अलग ही रिश्ता था। अपनी शुरूआती शिक्षा को छोड़कर उन्होंने अपनी सारी पढ़ाई बनारस में ही की। यहीं उन्हें त्रिलोचन और नामवर सिंह जैसे दिग्गज साहित्यकारों का साथ मिला। जीवन की तरह उनकी कविता में बनारस, उसकी स्मृतियां और छवियां बार-बार प्रकट होती रहीं। बनारस पर लिखी उन्की कुछ पंक्तियां ये हैं-
'इस शहर में वसंत
अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है।।

केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार पाने वाले वह हिंदी साहित्य के 10वें लेखक थे। इसके अलावा उन्हें मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। कवि केदारनाथ सिंह 1959 में प्रकाशित चर्चित कविता संग्रह तीसरा सप्तक के लोकप्रिय कवि थे। अज्ञेय ने उनकी कविताओं को इसमें जगह दी थी।

प्रमुख रचनाएं
कविता संग्रह : अभी बिल्कुल नहीं, जमीन पक रही है, यहां से देखो, बाघ, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएं, तालस्टाय और साइकिल
आलोचना : कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान, मेरे समय के शब्द, मेरे साक्षात्कार
संपादन : ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएं, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका), शब्द (अनियतकालिक पत्रिका)

केदारनाथ सिंह को अपने गांव से काफी लगाव था, प्रेम उनकी रचनाओं में भी देखने को मिलता है। उन्होंने अपने गांव के नदी-नालों को, खेत-खलिहानों को, पोखरों व तालाबों को भी अपनी कविताओं में जगह दी। अपने गांव चकिया में आते ही केदारनाथ जी बचपन के दिनों में खो जाते थे। गांव के 'पंडीजी' उनके बाल सखा तो थे ही, बनारस में उनके छात्र जीवन में सहगामी भी रहे। गांव में आते ही केदारनाथ सिंह गंवई केदार बन जाते थे। वे गांव में जब भी आते, दरवाजे पर बैठकर गांव-गिराव का हालचाल लेते थे। साथ ही गांव के लोगों को देश-दुनिया की जानकारी से भी रूबरू कराते थे। इनकी कविताओं के अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, स्पेनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं। केदारनाथ सिंह ने कविता पाठ के लिए दुनिया के अनेक देशों की यात्राएं की थी।
