सब्सक्राइब करें
INDIA की इन लोक कलाओं में सांस लेता है भारत
महलों, मंदिरों और मजारों से अलग भारत में एक और खूबसूरत दुनिया बसती है, रंग-बिरंगी लोक कलाओं की।
इस लेख को शेयर करें

  • मधुबनी

    Indiawave timeline Image

    मुधुबनी बिहार की लोककला है। इसकी कलाकृतियों में रंगों का इस्तेमाल करके पौराणिक गाथाओं को चित्रों के रूप में उतारा जाता है। कहा जाता है कि मधुबनी पेंटिंग्स राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से बनवााई थीं। मिथिला क्षेत्र के कई गांवों की महिलाएं आज भी इस कला में पारंगत हैं। अपने असली रूप में तो ये पेंटिंग गांवों की मिट्टी से लीपी गई झोपड़ियों में देखने को मिलती थीं, लेकिन अब इसे दीवारों, कपड़े और पेपर के कैनवास पर भी बनाया जाने लगा है। डिजाइनों को बनाने के लिए रंग भी कलाकार प्राकृतिक तरीके से तैयार करते हैं। इंसान और देवी देवताओं के चित्र के साथ पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और ज्यामितीय आकारों की भी मधुबनी कला में खास जगह है। 


  • वरली

    Indiawave timeline Image

    महाराष्ट्र के ठाणे जिला वरली जाति के आदिवासियों का ठिकाना है। इस आदिवासी जाति की कला ही वरली लोक कला के नाम से जानी जाती है। वरली कलाकृतियां खासकर शादी ब्याह के शुभ अवसरों पर बनाई जाती है। इसके बिना विवाह को अधूरा समझा जाता था। प्रकृति की प्रेमी यह जनजाति अपना प्रकृति प्रेम वरली कला में बड़ी गहराई से दिखाती थी। त्रिकोण आकृतियों में ढले आदमी और जानवर, रेखाओं में बने हाथ पैर व ज्यामिति की तरह बिन्दु और रेखाओं से बने इन चित्रों को महिलाएं घर में मिट्टी की दीवारों पर भी बनाती थीं। इसकी खासियत ये है कि इसमें सीधी रेखा कहीं नजर नहीं आएगी। बिन्दु से बिन्दु ही जोड़ कर रेखा खींची जाती है। विवाह, पुरुष, स्त्री, बच्चे, पेड़-पौधे, पशुपक्षी और खेतों को खासकर इन डिजाइनों में बनाया जाता है। 

  • लघु चित्रकारी

    Indiawave timeline Image

    भारत में लघु चित्रकारी की कला की शुरुआत मुगलों ने की थी। इस खास शैली में तैयार किए गए विशेष लघु चित्रों को राजपूत अथवा राजस्‍थानी लघु चित्र कहा जाता है। ये राजस्थान जिले की पहचान बताता है। मोटी-मोटी रेखाओं से बनाए गए चित्रों को बड़े ही तरीके से गहरे रंगों से सजाया जाता है। ये लघु चित्रकार अपने चित्रकारों के लिए कागज, लकड़ी की तख्तियों, चमड़े, संगमरमर, कपड़े और दीवारों का इस्तेमाल करते हैं। इसमें राजदरबार के दृश्‍य और राजाओं की शिकार की खोज के दृश्‍यों का चित्रण किया जाता है। लघु चित्रकारी में फूल, जानवर, राजदरबार, नृत्‍य, शिकार, संगीत, प्रेमी-प्रेमिकाएं, कृष्‍ण लीला, भागवत पुराण और अन्‍य कई त्‍योहारों के चित्रों को बनाया जाता है। 

  • तंजावर कला

    Indiawave timeline Image

    तमिलनाडु में तंजावुर नाम का एक छोटा सा नगर तंजावर कलाशैली के कारण पूरी दुनिया में जाना जाता है। ये चित्र लकड़ी,कांच या कागज पर बनाए जाते हैं। यह कला चोल साम्राज्य में ऊंचाई पर पहुंची। इसके बाद आने वाले शासकों के संरक्षण में यह कला आगे और बढ़ती गई। शुरू में ये चित्र सिर्फ राज भवनों तक सीमित थे, लेकिन बाद में ये घरों की साज सज्जा में भी इस्तेमाल होने लगे। इसमें देवी देवताओं के चित्रों का ज्यादा महत्व दिया गया। श्री कृष्ण की विभिन्न मुद्राओं में चित्र बनाए गए हैं, जो उनके जीवन की अवस्थाओं को व्यक्त करते हैं। तंजौर चित्रकारी की मुख्य खासियत उनकी बेहतरीन रंग की सज्जा, रत्नों और कांच से गढ़े गए सुंदर आभूषणों की सजावट है।

  • पट्टचित्र

    Indiawave timeline Image

    ओडिशा के ज्यादातर गांवों के लोगों में बस दो ही चीजें बसती हैं, आस्था और कला। एक अगर यहां के लोगों के लिए सांस की तरह है तो दूसरी आत्मा है। यहां की कलाकृतियों में भगवान जगन्नाथ व दूसरे देवी देवताओं से जुड़ी पौराणिक कहानियां देखने को मिलती हैं। इस कला को पट्टचित्र कहते हैं। इस कला की शुरुआत 12वीं सदी में हुई थी। इन कलाकृतियों को बनाने के लिए जिस कैनवास का इस्तेमाल होता है वह नारियल के पेड़ की लकड़ी से बना होता है। चित्रों में रंग भरने के लिए यहां के चित्रकार फूल, पत्तियों से बने प्राकृतिक रंगों को तैयार करते हैं। चित्रकार पेंटिंग्स में भगवान कृष्ण की कहानियों को इस तरह उतारते हैं कि उन्हें देखकर कोई भी पूरी कहानी जान सकता है।

  • टेराकोटा

    Indiawave timeline Image

    आजकल आपको ज्यादातर घरों में टेराकोटा के बने पॉट्स और खिलौने रखे मिल जाएंगे लेकिन क्या आपको पता है कि ये कला 2600 से 1700 ईसापूर्व पुरानी है यानि सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान की। मध्य प्रदेश के झाबुआ में ये कला खूब प्रचलित है। मध्य प्रदेश के आदिवासियों के घरों में… दरवाजों पर आपको इस कला के नमूने देखने को मिल जाएंगे। इसके अलावा गुजरात में टेराकोटा के जानवर और सजावटी सामान,  हरियाणा में इसके हुक्का मिलेंगे तो देश के लगभग हर हिस्से में वॉल हैंगिंग, गुलदस्ते, कप, वॉटर पॉट्स और लैंप्स और बाकी सजावटी सामान बनते और बिकते दिखेंगे।

  • कठपुतली

    Indiawave timeline Image

    कठपुतली का खेल दुनिया के सबसे पुराने खेलों में से एक माना जाता है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में लिखे गए महाकवि पाणिनी के अष्टध्याई ग्रंथ में एक पुतला नाटक है जो कहीं न कहीं कठपुतलियों की कहानी ही कहता है। राजस्थान में कठपुतली नाच आपको जगह – जगह देखने को मिल जाएगा। पहले तो सिर्फ काठ यानि लकड़ी की ही कठपुतलियां बनाई जाती थीं लेकिन अब कपड़े और कार्डबोर्ड से भी इन्हें बनाया जाता है। इनके अलग-अलग हिस्सों को इस तरह जोड़ा जाता है कि उनसे बंधी डोर खींचने पर वे हिस्से अलग-अलग हिल सकें। इन्हें चलाने की कला सीखने में भी काफी समय लग जाता है। एक शख्स एक बार में 6 डोरें ही चला सकता है।

सब्सक्राइब न्यूज़लेटर