
‘एक देश में एक निशान, एक विधान और एक प्रधान’ के संकल्पों को पूरा करने को लेकर अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का आज जन्मदिवस है। कश्मीर से धारा 370 खत्म करने के लिए उन्होंने अपने प्राण लुटा दिए थे। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का देशहित में बहुत बड़ा योगदान है। स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान की ऐतिहासिक श्रृंखलाएं रही हैं। उनके जन्मदिवस पर पेश है उनसे संबंधित कुछ खास बातें।
6 जुलाई को बंगाली परिवार में हुआ जन्म
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 ई. को एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बाबा गंगा प्रसाद मुखर्जी एक ख्याति प्राप्त चिकित्सक था। श्यामा प्रसाद के पिता आशुतोष मुखर्जी न्यायाधीश और कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति जैसे बड़े पदों पर रहे। बेहद सरल श्यामा प्रसाद मुखर्जी धार्मिक संस्कारों का पालन पर हमेशा ही अडिग रहते थे।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने साल 1923 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। इसके बाद वह 1924 में कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत करने लगे। वकालत के दौरान ही वह लिंकन्स इन' में अध्ययन करने के लिए 1926 में लंदन गए और 1927 में बैरिस्टर बन गए। अपनी योग्यता की वजह से वह महज 33 साल की उम्र में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बना दिया गए। सबसे कम उम्र में उनके वाइस चांसलर बने का रिकॉर्ड आज भी कायम है। वह वाइस चांसलर के पद पर 1938 तक रहे।

राजनीति में प्रवेश
वाइस चांसलर के पद पर रहने के दौरान उन्होंने बंगाल की राजनीतिक स्थित देखी और खुद राजनीति में उतरने का फैसला किया। वह कांग्रेस के टिकट पर एमएलसी बने, लेकिन एक साल बाद ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया। बता दें सरकार अधिनियम 1935 के तहत 1937 में प्रांतीय चुनाव सम्पन्न हुए थे। इसमें बंगाल में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था। 1944 में वह हिंदू महासभा में शामिल हुए और अध्यक्ष बना दिए गए। साल 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद जवाहर लाल नेहरू की सरकार में उन्हें उद्योग मंत्री बना दिया गया।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी बहुत कम समय के लिए उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री थे। उन्होंने छोटे से कार्यकाल में ऐसी नींव रखी जो आधुनिक ओद्योगिक की तरफ एक बहुत बड़ा कदम था। उनके नेतृत्व में भावी भारत के उद्योग को एक नई दिशा देने का काम किया गया। उन पर पुस्तक लिखने वाले प्रशांत कुमार चटर्जी ने अपनी लिखा है कि औद्योगिक निर्माण के लिए उन्होंने बहुत काम किया। उनके ही नेतृत्व में कई प्रतिमान स्थापित किए गए। नीतिगत स्तर पर उनके द्वारा किए गए प्रयास भारत के औद्योगिक विकास में अहम कारक बनकर उभरे। भिलाई प्लांट, सिंदरी फर्टिलाइजर सहित कई और औद्योगिक कारखानों की परिकल्पना मंत्री रहते हुए डॉ. मुखर्जी ने की थी, जो बाद में पूरी भी हुईं।

खादी ग्रामोद्योग की स्थापना कर दिया यह बढ़ावा
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के दौरान ही ऑल इंडिया हैंडीक्राफ्ट बोर्ड, ऑल इंडिया हैंडलूम बोर्ड, खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की थी। जुलाई 1948 में इंडस्ट्रियल फिनांस कॉरपोरेशन की स्थापना हुई। डॉ. मुखर्जी के कार्यकाल में देश का पहला भारत निर्मित लोकोमोटिव एसेंबल्ड पार्ट इसी दौरान बना और चितरंजन लोकोमोटिव फैक्ट्री भी शुरू की गई। ग्रामोद्योग आज युवाओं को रोजगार देने से लेकर उन्हें ऋण भी उपलब्ध करा रहा है।

आजाद भारत में वह उद्योग मंत्री बने लेकिन लियाकत अली खान से दिल्ली पैक्ट पर विवाद के बाद उन्होंने 6 अप्रैल 1950 को नेहरू मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा दे दिया। इसके बाद आरएसएस के गोलवलकर से परामर्श लेकर उन्होंने 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना की। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके पहले अध्यक्ष बनाए गए। अगले साल 1952 में हुए आम चुनाव में जनसंघ ने तीन सीटें जीतीं। यहीं से पार्टी के विजयी अभियान की शुरुआत हुई थी। आज देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा की राजनीतिक विचारधारा जनसंघ की ही विचारधारा पर चल रही है।

और धारा 370 को लेकर हो गए शहीद
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर को धारा 370 के तहत मिले विशेष दर्जा का विरोध किया। उनके विरोध करने का कारण धारा के तहत किया गया खास प्रावधान था। इसके तहत कोई भी भारत सरकार से बिना अनुमति लिए हुए जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता था। उन्होंने आंदोलन शुरू किया और कश्मीर के लिए रवाना हो गए। उन्होंने एक देश में दो विधान, एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान- नहीं चलेंगे नहीं चलेंगे जैसे नारे दिए। जम्मू-कश्मीर सरकार ने राज्य में उनके प्रवेश करने पर 11 मई 1953 को हिरासत में ले लिया। जेल में बंद रहने के दौरान ही 23 जून 1953 को जेल में उनकी रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई।
