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पांच पैसे में रिकार्ड तोड़ राकेट छुड़ाए
दिवाली से एक दिन पहले ही जगमग दीयों के बीच रह-रह कर पटाखों की आवाजें आ रही थीं। अब्बा कुछ पैसे दे दो ना बस एक बार दे दो फिर नहीं मांगूगा… सात साल का बच्चा अपने पिता से पटाखें खरीदने के लिए पैसों की जिद कर रहा था। पिता समझा रहा था कि बेटा सिर्फ पांच पैसे ही दे पाऊंगा क्योंकि हम दोनों ने आज सिर्फ पांच पैसे ही तो ज्यादा कमाये हैं। कोई बात नहीं अब्बा पांच पैसे ही दे दो आज दिवाली मना लेने दो… बस इतना कह कर बेटा पांच पैसे लेकर सामने पटाखों की दुकान पर चला गया और बेटे को जाते देख पिता के चेहरे पर मुस्कान तैर गई और वह अपने बचे हुए अखबार समेटने में जुट गया। मुठ्ठी में पांच का सिक्का दबाये यह बालक जब पटाखों की दुकान पर गया तो पटाखों के दाम सुन कर उसके चेहरा मुरझा गया। बच्चे को राकेट उड़ाने का बहुत शौक था। इसलिए वह राकेट खरीदने पटाखों की दुकान पर गया था लेकिन दुकानदार ने दुत्कारते हुए कहा कि पांच पैसे में अच्छा वाला राकेट नहीं आ सकता। बच्चे ने कहा.. तो आप खराब वाले राकेट ही दे दो। दुकान दार बच्चे की मासूमियत पर थोड़ा पसीजा और बेपरवाह अंदाज में बोला वो कोने में खराब पटाखों का ढेर है जितना चाहे ले जा। बच्चा खराब पटाखों का पूरा का पूरा ढेर पांच पैसे दे कर उठा लाया। दुकानदार बच्चे की नासमझी और अपनी अकलमंदी पर खुश था वहीं बालक को खराब पटाखों का ढेर भी ढेर सारी खुशियां दे रहा था।
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अब उसे न तो भूख प्यास सता रही थी और न ही पटाखों का शोर अब चिढ़ा रहा था। खराब पटाखों के ढेर में जूझते- जूझते कब शाम ढलने लगी पता नहीं चला। पिता की आवाज भी न सुनाई दी उसे क्योंकि उसे तो आज की रात कुछ कर गुजरने का जुनून था। कुछ ही देर में रात आ गई और दिवाली की रात जो दीयों से सज चुकी थी। पूरे इलाके में पटाखों का शोर जोरों पर था लेकिन लोग हैरान थे कि मुस्लिम आबादी वाले गांव के एक टूटे फूटे घर के आंगन से छूटने वाले राकेटों का सिलसिला थम ही नहीं रहा था। यह घर उसी बच्चे का था जो अपने घर खराब पटाखों का ढेर पांच पैसे में उठा लाया था। यह बालक कोई और नहीं बल्कि डाक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम थे। मिसाइलमैन के नाम से जाने -जाने वाले डॉक्टर अबुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति बने थे। पूर्व राष्ट्रपति कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम में एक गांव के गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था।
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आठ साल की उम्र से ही कलाम सुबह 4 बचे उठते थे और नहा कर गणित की पढ़ाई करने चले जाते थे। सुबह नहा कर जाने के पीछे कारण यह था कि प्रत्येक साल पांच बच्चों को मुफ्त में गणित पढ़ाने वाले उनके टीचर बिना नहाए आए बच्चों को नहीं पढ़ाते थे। ट्यूशन से आने के बाद वो नमाज पढ़ते और इसके बाद वो सुबह आठ बजे तक रामेश्वरम रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर न्यूज पेपर बांटते थे।
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अब्दुल कलाम ने 1954 में अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई साइंस सब्जेक्ट में त्रिचि के सेंट जोसेफ कॉलेज से पूरी की। इसके बाद 1957 में उन्होंने एमआईटी मद्रास से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग से स्पेशलाइजेशन किया। देश को अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बनाने वाले पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल SLV-3 को बनाने का श्रेय अब्दुल कलाम को ही जाता है। 1980 में इसी लॉन्च व्हीकल से रोहिणी सैटेलाइट को पृथ्वी की कक्षा में रखा गया था।
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कलाम ने दो दशक तक इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन) में काम किया और इसके बाद डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) का काम संभाल लिया। उन्होंने अग्नि मिसाइल और पृथ्वी मिसाइल के निर्माण और ऑपरेशनल कार्यों में अपना भरपूर योगदान दिया था। इसी कारण उन्हें मिसाइल मैन कहा जाने लगा था। एक समय था जब इसरो में एक के बाद एक कई परीक्षण असफल हो रहे थे। उस समय डॉ. कलाम ने उन सारी असफलताओं की जिम्मेदारी अपने सर ले ली, लेकिन जब इसरो को अपार सफलता मिली तब उन्होंने इसका क्रेडिट न लेते हुए अपने साथी वैज्ञानिकों को मीडिया से बात करने के लिए भेजा।
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डॉ. कलाम ने पोखरन पोखरन-2 परमाणु परीक्षण का संचालन भी किया था। इसी के बाद भारत को वर्ल्ड के न्यूक्लियर क्लब में एंट्री मिल गई थी। उसके पहले केवल अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस के पास ये शक्ति थी। भौतिकी और रक्षा क्षेत्र में सफलतापूर्वक अपनी छाप छोड़ने के बाद कलाम ने ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य के लिए भी काम किया। सात सालों (1992-99) तक कलाम प्रधानमंत्री के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ के सचिव रहे थे।
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2002 में भारत का राष्ट्रपति बनने के बाद उन्हें एक स्कूल के कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया। यहां उन्हें लगभग 400 छात्रों को संबोधित करना था लेकिन जैसे ही उनका भाषण शुरू हुआ लाइट चली गई लेकिन इसकी शिकायत करने के बजाय उन्होंने छात्रों से कहा कि वे उनके चारो तरफ इकट्ठे हो जाएं और ऐसे ही उनके बात सुनें।
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शायद आपको जानकर हैरानी होगी कि एक मुस्लिम होने के बावजूद कलाम भगवत गीता और कुरान का पाठ एक साथ किया करते थे। यही नहीं वह वीणा बजाने में भी एक्सपर्ट थे। कलाम शुद्ध शाकाहारी थे और उन्हें अपनी मां के हाथ का बने चावल और सांभर, नारियल की चटनी के साथ बहुत पसंद थे।
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27 जुलाई 2015 को शिलॉन्ग आईआईएम में लेक्चर देते हुए उन्हें दिल का दौरा पड़ा। आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर कुछ नहीं कर सके। 83 वर्ष के कलाम साथ छोड़ चुके थे ।