
भारतीय संविधान के रचयिता और समाजसुधारक डॉ भीमराव अंबेडकर का आज जन्मदिन है। बाबासाहब के नाम से भी जाने जाने वाले अंबेडकर जीवन भर समानता को लेकर संघर्ष करते रहे।
भारतीय संविधान के रचयिता और समाजसुधारक डॉ भीमराव अंबेडकर का आज जन्मदिन है। बाबासाहब के नाम से भी जाने जाने वाले अंबेडकर जीवन भर समानता को लेकर संघर्ष करते रहे। वो एक माने जाने राजनीतिज्ञ व कानूनविद् थे। उन्होंने समाज में फैली कई बुराईयां जैसे छुआछूत व जातिभेदभाव को दूर करने के लिए भरसक प्रयास किए।
डॉ अंबेडकर का अपना पूरा जीवन देश में मानवतावादी बौद्धशिक्षा को बढ़ावा देने में समर्पित हुआ । हालांकि वो बचपन से बौद्ध मत के नहीं थे लेकिन आगे चलकर उन्होंने बौद्ध धर्म से प्रभावित हेाकर उसका अनुसरण कर लिया ।
देश आज उनकी 127वीं जयंती मना रहा है, इस मौके पर हम आपको उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बता रहे हैं जिनके बारे में आपको नहीं पता होगा:

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था हालांकि उनका परिवार मराठी था और मूल रूप से महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के
आंबडवे गांव से था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और मां भीमाबाई थीं। अंबेडकर अपने माता पिता के 14वीं संतान थे। सकपाल भीमराव का सरनेम था व आंबडवे उनके गाँव का नाम। समाज के उच्च वर्ग के भेदभाव और गलत व्यवहार को दूर करने के लिए उन्होंने अपने नाम के आगे से सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया।

डॉ अम्बेडकर एक कुशाग्र बुद्धि के छात्र, वकील व स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने हजारों महार जाति के लोगों को बौद्ध धर्म स्वीकार करवाया। ये धर्म परिवर्तन सिर्फ जातीय भेदभाव के विरोध का प्रतीक था।

इंडियन आर्मी से रिटायरमेंट के बाद भीमराव के पिता के साथ महाराष्ट्र के सतारा में जाकर रहने लगे थे। भीमराव की स्कूली शिक्षा वहीं के एक लोकल स्कूल में हुई। वहां पर उन्हें जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ा। अपनी क्लास में सबसे कोने में जाकर जमीन पर बैठते थे। उनके टीचर उनकी किताबें व कॉपी तक नहीं छूते थे। इन सभी कठिनाईयों के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1908 में मैट्रिक की परीक्षा पास की।

सन् 1913 में भीमराव अंबेडकर के पिता का देहांत हो गया। उसी वर्ष बड़ौदा के महाराजा ने उन्हें स्कॉलरशिप दी और आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेज दिया। जुलाई 1913 में भीमराव अंबेडकर न्यूयार्क पहुंच गए । 1913 में अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से उन्होंने राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएशन किया। 1916 में उन्हें एक शोध के लिए पीएचडी से सम्मानित किया गया।

अंबेडकर लंदन से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट करना चाहते थे लेकिन स्कॉलरशिप खत्म हो जाने की वजह से उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़कर वापस भारत आना पड़ा। इसके बाद वे कभी ट्यूटर बने तो कभी कंसल्टिंग का काम शुरू किया लेकिन सामाजिक भेदभाव की वजह से उन्हें सफलता नहीं मिली। फिर वे मुंबई के सिडनेम कॉलेज में प्रोफेसर नियुक्त हो गए। 1923 में उन्होंने 'The Problem of the Rupee' नाम से अपना शोध पूरा किया और लंदन यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टर्स ऑफ साइंस की उपाधि दी। 1927 में कोलंबंनिया यूनिवर्सिटी ने भी उन्हें पीएचडी दी।

1947 में जब भारत आजाद हुआ तो देश के पहले प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू ने डॉ भीमराव अम्बेडकर को आमंत्रित किया। उन्हें बंगाल से संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था, और उन्हें मंत्रिमंडल में कानून मंत्री के रूप में शामिल होने का प्रस्ताव दिया। उन्हें संविधान के लिए एक समिति में तैयार करने का काम सौंपा गया और बाद में डॉ अम्बेडकर को इस मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया। फरवरी 1948 में डॉ अम्बेडकर ने भारतीय संविधान का ड्राफ्ट प्रस्तुत किया और 26 नवंबर, 1 9 4 9 को इसे लागू कर दिया गया।

1950 में बौद्ध विद्वानों और भिक्षुओं के सम्मेलन में भाग लेने के लिए अम्बेडकर श्रीलंका गए। वहां से प्रभावित हेाकर वापसी के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म पर एक किताब लिखने का फैसला किया और खुद भी बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। अंबेडकर ने 1955 में भारतीय बौद्ध महाशक्ति की स्थापना की। उनकी किताब 'द बुद्ध एंड हिज़ धम्म' मरणोपरांत प्रकाशित हुई थी।

24 मई 1956 को बुद्ध जयंती के उपलक्ष्य पर उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकारने का फैसला किया। 4 अक्टूबर 1956 को उन्होंने अपने कई अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को स्वीकार लिया। उसी दिन, डॉ अंबेडकर ने एक सार्वजनिक समारोह आयोजित किया जिसमें उनके करीब पांच लाख समर्थकों ने बौद्ध धर्म को स्वीकारा। नागपुर में अपने भाषण में डॉ अम्बेडकर ने कहा कि बौद्ध धर्म न केवल इस देश को सेवा देता है, बल्कि पूरे विश्व की सेवा कर सकता है। विश्व शांति के लिए बौद्ध धर्म अपनाना जरूरी है, आज आपको यह वचन देना होगा कि आप, बुद्ध के अनुयायी हैं, आप सिर्फ अपने हित के लिए काम नहीं करेंगे बल्किअपने देश और पूरी दुनिया के विकास को लेकर चलेंगे।

अपनी आखिरी किताब 'द बुद्ध एंड हिज़ धम्म' को पूरा करने के तीन दिन बाद 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार मुंबई में बौद्ध रीति-रिवाज के साथ किया गया। उनके अंतिम संस्कार के समय उन्हें साक्षी मानकर करीब 10 लाख समर्थकों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
