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जे. जयललिता का सफर: कॉलीवुड से राजनीति तक
जया से अम्मा तक...देश की सबसे लोकप्रिय लीडर का सफरनामा
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करीब 20 घंटे की अफवाहों के बाद आखिरकार रात करीब 12 बजे खबर आ गई कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता अब नहीं रहीं। रविवार रात दिल का दौरा पड़ने के बाद अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन न जयललिता के लाखों फैन्स की दुआ रंग लाई न डॉक्टरों की दवा। 68 साल की उम्र में जयललिता का देहांत हो गया। आइए, जानते हैं उनका टॉलीवुड से सियासत के रेड कार्पेट का पूरा सफर...

24 फरवरी, 1948

जन्म और नाम

जयललिता का जन्म आजकल मैसूर जिले के मेलुकोटू में जयाराम और वेदावल्ली के घर में हुआ था। यह जिला अब मैसूर में आता है। जन्म के वक्त बारवायत उनका नाम उनकी दादी कोमलावल्ली के नाम पर रख दिया गया। जब वह एक साल की हुईं, तो उनका नाम जयललिता रखा गया।

1950-1952
पिता और मां का साथ

उनके पिता जयाराम की मृ्त्यु हो गई। मां वेदावल्ली जयललिता और उके भाई जयकुमार को लेकर अपने मायके बेंगलुरु चली गईं। दो साल बाद जया की मां दोनों बच्चों को अपने घर छोड़कर मद्रास चली गईं। वहां उन्होंने पहले कुछ नाटकों में काम किया और फिर फिल्मों में संध्या नाम से काम करने लगीं। इसी नाम से वह काफी लोकप्रिय भी हो गईं।

1958-1964

मां और पढ़ाई

जयललिता भी अपनी मां के साथ रहने चली गईं। वहां उन्होंने एक मशहूर कॉन्वेंट स्कूल चर्च पार्क में दाखिला लिया और पढ़ाई में काफी अच्छा प्रदर्शन भी किया। 16 साल की उम्र में जब उन्हें कॉलेज की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिली, तब वह खुश तो बहुत थीं। वकील बनना चाहती थीं, लेकिन जिंदगी को शायद कुछ और ही मंजूर था।

ले चल मुझे तारों के पास , लगता नहीं है दिल यहां....

बचपना और प्यार

हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने अपने जीवन के कई पहलुओं पर बात की थी। उन्होंने बताया था कि वह एक आम लड़की की तरह सुनहरे सपने देखा करतीं थी। स्कूल के दिनों में उन्हें क्रिकेटर नारी कॉन्ट्रैक्टर और बॉलीवुड एक्टर शम्मी कपूर पर जबर्दस्त क्रश था। नारी कॉन्ट्रैक्टर को देखने के लिए वह अक्सर टेस्ट मैच देखने चली जाती थीं।

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प्रेम और सियासत

जयललिता के मुताबिक, उन्हें अपने जीवन में कभी भी ‘बिना शर्त प्रेम’ नहीं मिला. उनके मुताबिक फिल्मों और राजनीति दोनों ही जगह ‘मेल शॉविनिज़्म’ हावी है, लेकिन फिल्मों जहां महिलाओं के बगैर काम नहीं चल सकता वहीं राजनीति में कोई उन्हें आसानी से हाशिये पर नहीं डाल सकता।

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सियासत की जीत और हार

जयललिता ने अपने सियासी करियर की सबसे बड़ी लड़ाई एमजीआर की मौत के बाद जीती। एमजीआर के बाद पार्टी में जगह बनाना उनके लिए बेहद मुश्किल था। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि अगर वह एक्ट्रेस और नेता होने के बजाय शिक्षक या डॉक्टर होतीं तो उनके बारे में मनगढ़ंत और ओछी बातें नहीं की जातीं। हालांकि, वह मानती हैं कि उनकी सबसे बड़ी विरोधी मर्द से ज्यादा औरतें रहीं हैं।

1964-1969
फिल्मी सफर

जया का परिवार कर्ज में डूबा हुआ था। परिवार बचाने के लिए जया ने अपना वकील बनने का सपना भुला दिया और पैसों की जरूरत पूरी करने के लिए फिल्मी करियर की शुरुआत 1964 में तमिल फिल्म 'चिन्नडा गोम्बे' से कर दी। इसके बाद, वह चाहकर भी पलट कर नहीं देख सकीं। फिल्म ब्लॉकबस्टर हिट हुई और जया तमिल की नई स्टार। इसके बाद, वेन्निराडाई भी ब्लॉकबस्टर हिट रही। उसी साल उन्होंने तमिल के सबसे बड़े स्टार एमजी रामचंद्रन के साथ 'अइराथिल ओरुवन' में काम करने का मौका मिला और इसके बाद लोग इस जोड़ी को कभी भुला नहीं सके।

1970-1977

फिल्म और सियासत का मेल

1970 तक सब कुछ सुनहरे ख्वाब सा था। फिर एमजी रामचंद्रन ने अपनी लीडिंग लेडी के रूप में नई ऐक्ट्रेस को चुन लिया। 1971 में जया की मां संध्या भी गुजर गईं। जया टूटीं, लेकिन 1973 में उन्होंने एमजीआर के साथ आखिरी बार फिल्म एक फिल्म में काम किया। इसके एक साल पहले ही एमजीआर ने डीएमके से अलग होकर एआईडीएमके बनाई थी। जया भी स्टार बन चुकी थीं। टूटीं लेकिन 1977 तक वह सबसे बड़े ब्रांड एंडोर्स कर रही थीं। अपने करियर की चोटी पर थीं। उन्होंने इस दौरान 140 फिल्मों में काम किया, जिनमें 120 सुपरहट रहीं। 1977 में जया ने फिल्मों को अलविदा कह दिया।

1982-1989
इंग्लिश विंग्लिश और सियासत

1982 में पहली बार जया ने एमजीआर की पार्टी जॉइन की और पार्टी के ही एक कार्यक्रम  में अपनी पहली सियासी स्पीच दी। इसके एक साल बाद ही जया पार्टी की प्रचार सचिव बन चुकी थीं। 1984 में वह राज्यसभा के लिए नामित की गईं, क्योंकि एमजीआर को लगता था कि जया की इंग्लिश जबर्दस्त थी।

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1986-2016

मेकिंग ऑफ अम्मा

जयललिता एक नए सफर पर थीं। एमजीआर बीमार थे और चुनाव सिर पर। जया मैदान में प्रचार के लिए उतरीं और पार्टी को ऐसी शानदार जीत मिली, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। वह चाहती थीं कि उन्हें राज्य का अंतरिम मुख्यमंत्री बना दिया गया, जो कई सीनियर नेताओं को नागवार गुजरा। इसी दौरान जयललिता ने अपनी नई पार्टी बना ली। नाराज एमजीआर ने उन्हें पार्टी के हर पद से निष्कासित कर दिया। हालांकि, वह 1989 तक एआईडीएमके से ही राज्यसभा सांसद रहीं।

जब सदन में होने लगा जया का चीरहरण

89 में एमजीआर की मौत हुई और किले को लीडर की जरूरत थी। पार्टी में जया की वापसी हुई। दो गुट बन गए। एक एमजीआर की पत्नी जानकी का और दूसरा जया का। विधानसभा चुनाव हुए और जया के गुट ने 27 सीटें जीतीं, जबकि जानकी का गुट सिर्फ दो सीटें ला सका। तमिलनाडु के इतिहास में पहली बार कोई महिला अपोजिशन लीडर बनी। जे. जयाललिता। बजट सत्र चल रहा था। जया वेल में थीं और डीएमके के एक नेता ने उनपर हमला बोल दिया। उनके कपड़े तक उतारने के कोशिश हुई। जया ने कसम खाई कि वह सदन में मुख्यमंत्री बनकर ही लौटेंगी।

1991-1998

शुरू हुआ भ्रष्टाचार के मामलों सिलसिला

जया के साथ सहानुभूति थी। देश के तत्कालीन पीएम राजीव गांधी की हत्या हुई थी और तमिलनाडु में कांग्रेस के साथ मिलकर जयललिता ने शानदार जीत हासिल की और सीएम बनकर सदन में दाखिल हुईं। इसके बाद शुरू हुआ भ्रष्टाचार के मामलों सिलसिला। तमाम आरोप लगते-मिटते रहे, लेकिन जयललिता अम्मा बन चुकी थीं। 1998 में जयललिता तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों में से 18 जीतीं और अटल बिहारी बाजपेयी की केंद्र सरकार में शामिल हो गईं।

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बदनामी, जीत और अंत...

जयललिता अटल सरकार के साथ नहीं चल सकीं। उन्होंने कांग्रेस का साथ फिर लिया लेकिन हार मिली। 2000 में उन्हें प्लीजंट स्टे होटल केस और तानसी भूमि अधिग्रहण मामले में कोर्ट ने दोषी माना। 2001 में फिर भी एआईएडीएमके को भारी जीत मिली, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और जया सीएम को गद्दी छोड़नी पड़ी। दिसंबर 2001 में उन्हें दोनों मामलों में बरी कर दिया गया। मार्च 2002 में जया फिर मुख्यमंत्री बन गईं। यह सिलसिला चलता रहा। कोर्ट में केस होते रहे। कभी बेशुमार दौलत का मामला उछला तो कभी कुछ और।

27 सिंतबर 2014

जेल की सैर और इतिहास

आय से ज्यादा संपत्ति के एक केस बेंगलुरु के एक ट्रायल कोर्ट ने जयललिता को चार साल की सजा भी सुनाई गई। 100 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगा। एक महीना ही जेल में बीता था कि सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई। 2015 में संपत्ति के केस में कर्नाटक हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। 23 मई, 2015 को एक बार फिर अम्मा सीएम बनीं। फिर केस हुआ, लेकिन 2016 के चुनाव में अम्मा ने इतिहास बनाते हुए सत्ता की चाबी अपने पास ही रखी। 134 सीटों के साथ एक बार फिर अम्मा सीएम बनीं। 

सितंबर 2016- 5 दिसंबर 2016
और अंतिम सफर

22 सितंबर को जयललिता को चेन्नै के अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। तब शिकायत सिर्फ डीहाइड्रेशन और फीवर की थी। इसके बाद, उनके फेफड़ों का इलाज किया जाने लगा। एम्स और ब्रिटेन के कुछ डॉक्टरों की टीम लगी। 3 नवंबर को अपोलो अस्पताल ने कहा कि जयललिता पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी हैं, लेकिन 19 नवंबर को उन्हें आईसीयू में रखने की नौबत आ गई। 4 दिसंबर को एआईएडीएमके ने कहा कि अम्मा जल्दी ही घर लौटने को हैं, लेकिन उसी शाम उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 5 दिसंबर को दिनभर उड़ीं उनकी मौत की अफवाहों के बाद आखिरकार रात 11.30 बजे जयललिता को मृत घोषत कर दिया गया।

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