हर छह साल में एक बार कुंभ मेले का और 12 साल में एक बार महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। पहले कुंभ को अर्धकुंभ और महाकुंभ को सिंहस्थ कुंभ के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इनका नाम बदल दिया गया है। देश का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाने वाला ये मेला प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में लगता है। कुंभ मेले के अखाड़ों को लेकर हर कोई उत्सुक रहता है। अभी तक तो हर साल कुंभ में 13 अखाड़ों की पेशवाई होती थी, लेकिन इस साल में किन्नर अखाड़ा भी जुड़ गया है। यानि इस बार प्रयागराज में होने वाले कुंभ में 14 अखाड़े शामिल हो रहे हैं। जानिए इन अखाड़ों से जुड़ी कुछ खास बातें...
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श्रीअटल अखाड़ा
ये देश का सबसे पुराना अखाड़ा है
श्री अटल अखाड़ा देश का सबसे पुराना अखाड़ा है। इसे 569 में गोंडवाना क्षेत्र में स्थापित किया गया। यह अखाड़ा गणेश जी को अपना ईष्ट देव मानता है। इसकी मुख्य पीठ पाटन में है लेकिन आश्रम कनखल, हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में भी हैं।
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श्रीआह्वान अखाड़ा
श्रीआह्वान अखाड़े देश का दूसरा सबसे पुराना अखाड़ा है। इसकी स्थापना 646 में हुई थी और 1603 में इसका संयोजन दोबारा किया गया। दत्तात्रेय और भगवान गणेश दोनों को ये अपना ईष्ट मानते हैं। इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है। इसका आश्रम ऋषिकेश में भी है। इस समय स्वामी अनूप गिरी और उमराव गिरी इस अखाड़े के प्रमुख संतों में से हैं।
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श्रीमहानिर्वाण अखाड़ा
लोगों की मानें तो इस अखाड़े की स्थापना 671 में बैजनाथ धाम में हुई थी, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि इसका जन्म हरिद्वार में नील धारा हुआ। इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं। अखाड़े के इतिहास के अनुसार, 260 में महंत भगवानंद गिरी के नेतृत्व में 22 हजार नागा साधुओं ने कनखल स्थित मंदिर को आक्रमणकारी सेना के कब्जे से छुड़ाया था।
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श्रीनिरंजनी अखाड़ा
श्रीनिरंजनी अखाड़ा की स्थापना गुजरात के मांडवी में 826 में हुई थी। शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिक के ये अखाड़ा अपना ईष्ट मानता है। प्रयागराज, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्वर, उदयपुर और उज्जैन में इस अखाड़े की शाखाएं हैं। इनमें दिगंबर, साधु, महंत व महामंडलेश्वर होते हैं।
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श्रीआनंद अखाड़ा
मध्यप्रदेश के बेरार में 855 में श्रीआनंद अखाड़े की स्थापना हुई थी। इसका केंद्र भी वाराणसी है और इसकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन में हैं।
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श्रीनागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा
पीर शिवनाथजी ने गोरखनाथ अखाड़े की स्थापना अहिल्या-गोदावरी संगम पर 866 में की थी। इनमें बारह पंथ हैं और भगवान गोरखनाथ इनके ईष्ट देव हैं। यह संप्रदाय योगिनी कौल नाम से प्रसिद्ध है और इनकी त्र्यंबकेश्वर शाखा त्र्यंबकंमठिका नाम से प्रसिद्ध है।
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श्रीपंचाग्नि अखाड़ा
इस अखाड़े की स्थापना 1136 में हुई थी। इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है। इनके सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रहमचारी, साधु व महामंडलेश्वर शामिल हैं। परंपरानुसार इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में हैं।
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श्रीजूनादत्त या जूना अखाड़ा
इस अखाड़े की स्थापना उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में 1145 में हुई थी। श्रीजूनादत्त, जूना या भैरव अखाड़े के नाम से जाना जाने वाला ये अखाड़ा रूद्रावतार दत्तात्रेय को अपना ईष्ट मानता है। हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास इस अखाड़े का आश्रम और इसका केंद्र वाराणसी में हनुमान घाट पर है। यह नागा साधुओं का अखाड़ा है। इस अखाड़े के नागा साधु जब शाही स्नान के लिए संगम की ओर बढ़ते हैं तो हर कोई इनके दर्शन करने के लिए लालायित रहता है। इस अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज हैं।
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श्रीवैष्णव अखाड़ाबालानंद अखाड़ा
दारागंज के श्रीमध्यमुरारी में 1595 में श्रीवैष्णव अखाड़ाबालानंद अखाड़े की स्थापना हई थी। धीरे-धीरे इनमें निर्मोही, निर्वाणी, खाकी आदि तीन संप्रदाय बने। इनका अखाड़ा त्र्यंबकेश्वर में मारुति मंदिर के पास था। इनका शाही स्नान 1848 तक त्र्यंबकेश्वर में ही होता था, लेकिन 1848 में शैव व वैष्णव साधुओं में पहले स्नान कौन करे इस मुद्दे पर झगड़े हुए। श्रीमंत पेशवाजी ने यह झगड़ा मिटाया। उस समय उन्होंने त्र्यंबकेश्वर के नजदीक चक्रतीर्था पर स्नान किया। 1932 से ये नासिक में स्नान करने लगे। आज भी यह स्नान नासिक में ही होता है।
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निर्मोही अखाड़ा
निर्मोही अखाड़े की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। इस अखाड़े के मठ और मंदिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार में हैं। माना जाता है कि प्राचीन काल में लोमश नाम के ऋषि थे, जिनकी आयू अखंड है कहते है जब एक हजार ब्रह्मा समाप्त होते हैं तो उनके शरीर का एक रोम गिरता है। आचार्य लोमश ऋषि के ने भगवान शंकर के कहने पर गुरू परंपरा पर तंत्र शास्त्र पर आधारित सबसे पहले आगम अखाड़े की स्थापना की। इस अखाडे के साधू बहुत ही रहस्यमयी होते है, पूजा-ध्यान करते हुऐ वो भूमि का त्याग कर अधर मे होते हैं।
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श्रीनिर्मल पंचायती अखाड
निर्मल अखाड़ा की स्थापना सन 1784 में हुई थी। श्रीदुर्गासिंह महाराज ने इसकी स्थापना की। इनकी ईष्ट पुस्तक श्री गुरुग्रन्थ साहिब है। इनमें सांप्रदायिक साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की संख्या बहुत है। इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।
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श्रीउदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा
निर्वाणदेव जी ने हरिद्वार कुम्भ मेले के शुभ अवसर पर समस्त उदासीन भेष केा एकत्रित किया और विक्रम संवत 1825 माघ शुक्ल पंचमी को गंगा तट राजघाट, कनखल में श्री पंचायती अखाड़ा उदासीन की स्थापना की। आचार्य श्रीचन्द्रदेव जी के बाद उदासीन सम्प्रदाय को निर्वाणजी ने कार्य करने की शकित, प्रगति, साहस तथा व्यवस्था प्रदान की। जिसके फलस्वरूप अखाड़ा साहितियक, धार्मिक जनसेवा के कार्यो में मुक्त हस्त से सहयोग देता रहा है। यहीं तक नहीं, राष्ट्रीय संकट के समय प्रान्तीय एवं केन्द्र सरकारों को भी सहायता राशि प्रदान करता रहा है। इनमें उदासीन साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की संख्या ज्यादा है। इस अखाड़े की शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, भदैनी, कनखल, साहेबगंज, मुलतान, नेपाल व मद्रास में हैं।
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श्रीउदासीन नया अखाड़ा
बड़ा उदासीन अखाड़ा के कुछ साधुओं ने अलग होकर 1910 में इस अखाड़े की स्थापना की। इनके प्रवर्तक मंहत सुधीरदासजी थे। इनकी शाखाएं प्रयाग हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।
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किन्नर अखाड़ा
कुंभ में 13 अखोड़ों को ही पेशवाई का अधिकार प्राप्त था। इस बार प्रयाग कुंभ में पहली बार किन्नर अखाड़े को शामिल किया गया। इस अखाड़े में करीब 2500 साधु और संन्यासियों के पहुंचने का अनुमान है। किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी हैं।