कभी लॉन्चिंग पैड नहीं था, आज दुनिया में बोलती है इसरो की तूती

मंगल ग्रह तक भारत का नाम पहुंचाने वाले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की कामयाबी में बुधवार को एक और अध्याय जुड़ गया। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने एक ही रॉकेट के माध्यम से रिकॉर्ड 104 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण करके इतिहास रच दिया है। इस लॉचिंग से भारत ने अतंरिक्ष बाजार में एक नई होड़ शुरू कर दी है।
रूस को भारत ने पछाड़ा
अभी तक रूस विश्व में सबसे सस्ती सैटेलाइट लॉचिंग करता था लेकिन भारत ने आज एक साथ 104 उपग्रह लॉन्च कर रूस को भी पीछे छोड़ दिया। कभी बैलगाड़ी से शुरू हुआ सफर आज दुनिया के शीर्ष मुकाम पर पहुंच गया है।
1969 में हुई इसरो की शुरुआत
इसरो की स्थापना 15 अगस्त 1969 को डॉ. विक्रम साराभाई ने की थी। आजादी के बाद आर्थिक तंगी से जूझ रहे देश में विकास की नई संभावनाएं तलाशने के लिए कुछ युवा वैज्ञानिकों ने वीणा उठाया। इसरो का सफर भी उतना ही यादगार है जितना की आज का दिन। आपको जानकर हैरत होगी की वैज्ञानिकों ने पहले रॉकेट को साइकिल पर लादकर प्रक्षेपण स्थल तक पहुंचाया था।
चूंकि इस मिशन का दूसरा रॉकेट काफी बड़ा और भारी था, जिसे इसरो के वैज्ञानिकों ने बैलगाड़ी की मदद से रॉकेट को लॉचिंग पैड तक पहुंचाया। इससे भी रोमांच करने देने वाली घटना ये थी कि भारत के पास लॉचिंग पैड भी नहीं था। भारत ने पहले रॉकेट के लिए नारियल के पेड़ों को लांचिंग पैड बनाया था। आज इसरो के विश्व के सबसे बेहतरीन लॉचिंग पैड उपलब्ध हैं।
चर्च से हुई इसरो की शुरुआत
डा. विक्रम साराभाई और डा. अब्दुल कलाम का बड़ा योगदान
इसरो को इस मुकाम तक पहुंचाने में दो लोगों का सबसे बड़ा योगदान है पहला नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डा. विक्रम साराभाई थे और दूसरा नाम डा. अब्दुल कलाम का है। उस समय की कई ऐसी तस्वीरें आपको देखने को मिल जाएंगी। भारत ने पहला स्वदेशी उपग्रह एसएलवी-3 को 18 जुलाई 1980 को लांच किया था। इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर पूर्व राष्ट्रपति कलाम थे।
भारत ने 2008 में चंद्रयान को अंतरिक्ष में भेजा
रूस के बाद भारत विश्व का दूसरा देश था जिसने 1990 में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) तैयार कर लिया था। भारत ने पहली बार पीएसएलवी के जरिए 1993 में पहला उपग्रह कक्षा में स्थापित किया।
इसके बाद भारत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा भारत ने 2008 में चंद्रयान को अंतरिक्ष में भेजा। इसरो का यह मिशन भी सफल रहा इस मिशन की सबसे खास बात यह थी कि इस विश्व का सबसे सस्ता चंद्रमा पर भेजा जाने वाला यान था। इस बात का अंदाजा इस बात से ही लगया जा सकता है कि नासा ने अपने चंद्र मिशन को इससे 40 गुना अधिक लागत में चंद्रमा पर भेजा था।
भारत के चंद्रयान के नाम एक खूबी तब जुड़ गई जब उसने चांद पर पानी खोज निकाला।
इस सफलता के बाद इसरो यहीं नहीं रुकने वाला था। इसरो ने एक कदम और बढ़ाकर मंगल पर यान भेजने का निश्चय किया। इस मिशन में भी इसरो सफल रहा। इस मिशन की सबसे बड़ी बात यह थी कि इसरो पहले प्रयास में इसे सही सलामत मंगल तक पहुंचाने में सफल रहा। जबकि अमेरिका, रूस और यूरोपीय स्पेस एजेंसियों को कई प्रयासों के बाद मंगल ग्रह पहुंचने में सफलता मिली।
राष्ट्रपति ने कहा हमें पूरी टीम पर गर्व है
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को पीएसएलवी-सी 37 और एक ही बार में 104 अन्य उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण पर बधाई दी है। राष्ट्रपति ने अंतरिक्ष विभाग के सचिव तथा इसरो के अध्यक्ष श्री ए एस किरण कुमार को भेजे संदेश में कहा है, 'मैं अपनी ओर से आपको और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की पूरी टीम को पीएसएलवी-सी 37 और एक ही बार में 104 अन्य उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण पर बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।
यह दिन हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में एक बड़े दिन के रूप में जाना जाएगा। राष्ट्र को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर गर्व है। इस प्रदर्शन ने एक बार फिर भारत की बढ़ती अंतरिक्ष क्षमताओं को दर्शाया है। मैं अपनी ओर से आपकी टीम के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, प्रौद्योगिकीविदों और अन्य सभी इस महान मिशन से जुड़े सहयोगियों को बधाई देता हूं। मैं इसरो से यह आग्रह करता हूं कि यह हमारे अंतरिक्ष क्षमताओं की प्रगति के लिए प्रयास जारी रखेंगे। मैं भविष्य के लिए भी महान सफलता की कामना करता हूं।'
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