कोरोना वायरस के खतरे से पूरी दुनिया परेशान है। देश में अभी तक 6000 से ज्यादा लोग कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं। इसको रोकने को लेकर भारत में एक प्रभावी पहल हुई है। अब कारोना के मरीजों और संदिग्धों पर जिओ फेंसिंग के जरिए नजर रखी जा रही है। आइए जानते हैं क्या है ये तकनीक और कैसे कोरोना के नियंत्रण में निभा रही है प्रमुख भूमिका।
8 राज्यों में हो रहा जिओ फेंसिंग का इस्तेमाल
इस समय देश में तमाम लोगों को कोरोना की वजह से आइसोलेशन में रखा गया है। इसमें बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें संदिग्ध होने के चलते अपने ही घरों में आइसोलेशन में रखा गया है। ऐसे लोगों अगर बाहर घूमते हैं तो कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा होता है। देश में अभी सरकार ने 8 राज्यों के संदिग्धों पर नजर रखने के लिए जिओ फेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल किया है। अगर ऐसे किसी भी शख्स की लोकेशन में बदलाव दिखता है तो तुरंत जिम्मेदार संस्था को सूचित कर दिया जाएगा। इस बारे में जानकारी सूचना एवं प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दी है। जिओ फेंसिंग से ऐसे लोगों की लोकेशन के बारे में तुरंत जानकारी मिल जाएगी। इससे प्रभावित क्षेत्रों के बारे में भी सूचना दर्ज रहेगी।
100 मीटर के दायरे से बाहर निकले तो उल्लंघन
सरकार के अनुसार जिओ फेंसिंग में मोबाइल आधारित तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। आमतौर पर ये जीपीएस और मोबाइल टॉवर की तकनीक पर काम करती है। लेकिन भारत में सबके पास जीपीएस आधारित मोबाइल न होने के कारण इसका प्रयोग किया जा रहा है। इसमें मोबाइल के तीन टॉवर के डाटा का इस्तेमाल किया जाएगा। इस तकनीक से व्यक्ति पर 100 मीटर के दायरे तक नजर रखी जा सकती है। अगर व्यक्ति 100 मीटर के दायरे से बाहर जाता है तो उसे नियमों के उल्लंघन का दोषी माना जाएगा। अभी देश में तमाम ऐसे लोग हैं जो देश से बाहर से आए हैं, उन्हें आइसोलेशन में रखा गया है। उनके ऊपर सरकार नजर रख रही है। इससे कोरोना का संक्रमण बढ़ने से रोकने में काफी मदद मिल रही है।
इस तरह करती है काम
जिओ फेंसिंग को आसान तरीके से समझे तो ये एक ऐसी टेक्नोलॉजी है, जिससे इंसान के मूवमेंट पर नजर रखी जा सकती है। ये दो तरीके से काम करती है। एक ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और और दूसरा रेडियो फ्रीक्वेंसी आईडेंटिफिकेशन। हम अपने स्मार्ट मोबाइल में फोटो के साथ जिओ टैगिंग का प्रयोग करते हैं। इसमें हम मोबाइल से खींची गई फोटो के स्थान को फोटो की डिटेल में ही सेव कर सकते हैं। मोबाइल ये काम जीपीएस की मदद से करता है। वहीं रेडियो फ्रीक्वेंसी आईडेंटिफिकेशन में ये काम जीपीएम की मदद से न करके मोबाइल के सिम में आ रहे सिग्नल की मदद से करते हैं। जैसा की आपको बता है कि मोबाइल का सिम सिग्नल को आसपास के एरिया में लगे टॉवर से ग्रहण करता है। जिओ फेंसिंग में जैसे ही कोई संदिग्ध का टॉवर बदलेगा उसकी लोकेशन का पता भी चल जाएगा। पुलिस अपराधियों के मोबाइल सर्विलांस पर लगाने के लिए इसी तकनीक का प्रयोग करती है।
तमिलनाडु में आयोग्य वॉयस कॉल का उपयोग
देश में कोरोना वायरस को बढ़ने से रोकने के लिए हर प्रदेश की सरकार अलग-अलग आवश्यक कदम उठा रही हैं। तमिलनाडु की सरकार इस समय अपने राज्य के लोगों को कोरोना वायरस के बारे में जागरू करने के लिए आयोग्य वॉयस कॉल सेवा का प्रयोग कर रही है। ये आरोग्य सेतु एप्लीकेशन का ही प्रकार है, हालांकि इसमें जीपीएस का प्रयोग नहीं होता। वहां सरकार साधारण मोबाइल इस्तेमाल करने वालों के लिए ये तकनीक अपना रही है। इसमें कोई भी व्यक्ति 9499912345 पर मिस्ड कॉल देकर कोरोना से जुड़ी हुई जानकारी हासिल कर सकता है। इस सेवा के जरिए व्यक्ति किसी संदिग्ध के संपर्क में आने पर अपनी जांच भी करने के लिए आवेदन कर सकता है।