ISRO की बड़ी उपलब्धि, पृथ्वी पर बनाई चंद्रमा की सतह

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के बारे में हम सभी जानते हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित करने वाली देश की इकलौती सरकारी संस्था के कामों की चर्चा पूरी दुनिया में होती है। इसरो ने एक बार फिर देशवासियों को खुद पर गर्व करने का मौका दिया है। दरअसल भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी (Indian Space Agency) ने चांद की सतह पर पाई जाने वाली मिट्टी को धरती पर बनाया है, जिसे अब इसका पेटेंट भी मिल चुका है।
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20 साल भारत के पास रहेगी तकनीक
इसरो ने इस मिट्टी को भारत में बनाने व इसके सर्वाधिकार सुरक्षित के उद्देश्य से इसके पेटेंट के लिए 5 मई 2014 को आवेदन किया था। यह पेटेंट 20 साल यानी वर्ष 2040 तक मान्य रहेगा। इस मिट्टी को बनाने का उद्देश्य पृथ्वी पर रहकर ही चंद्रमा के बारे में विभिन्न परीक्षण करने थे। चंद्रमा की सतह पर होने वाले परिवर्तन पर इस मिट्टी की वजह से काफी प्रभाव पड़ता है। अब इसरो इस मिट्टी के जरिए अपनी प्रयोगशाला में चंद्रमा की कृत्रिम सतह तैयार करेगा। जिस पर वह अपने यानों की लैंडिंग का अभ्यास भी कर सकता है। साथ ही इस सतह पर लैंडर और रोवर को संचालित करने संबंधी प्रयोग किया जा सकते हैं।
चंद्रयान के बाद शुरू की मिट्टी बनाने की कोशिश
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने चंद्रयान (Chandrayaan) को पहली बार वर्ष 2008 में चंद्रमा पर भेजा था। जिसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर पानी के अलावा हीलियम गैस की खोज करना था। इस सफल अभियान के बाद भारत चंद्रमा की सतह पर झंडा फहराने वाला विश्व का चौथा देश बन गया था। इसके बाद से भारत ने चंद्रमा की सतह जैसे मिट्टी को पृथ्वी पर ही बनाने का प्रयास शुरू कर दिया था। इसके बाद भारत ने 2014 में इसका पेटेंट करने के लिए आवेदन कर दिया था। अब पेटेंट मिलने के बाद कोई और देश इस तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर सकेगा। भारत अकेला राष्ट्र होगा जो दुनिया में चंद्रमा की सतह जैसी मिट्टी का निर्माण करेगा।

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वैज्ञानिक प्रयोग करने में मिलेगी मदद
इस बारे में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के यूआर सैटेलाइट सेंटर (URSC) के डाइरेक्टर रह चुके एम अन्नादुरई ने एक न्यूज एजेंसी को बताया था कि पृथ्वी से 384400 किलोमीटर दूर स्थित चंद्रमा की सतह हमारी पृथ्वी की सतह से बिलकुल अलग है। उसकी सतह काली है और वहां बड़े बड़े गड्ढे हैं। चंद्रमा की मिट्टी काफी महीन है। हम ऐसी मिट्टी बनाकर अपने लैंडर और रोवर को इस पर चलाना चाहते थे। इसके लिए हमने कृत्रिम मिट्टी बनाने की सोची। अभी केवल अमेरिका ही है जो दूसरे देशों को वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए चंद्रमा की मिट्टी बेचता है, लेकिन यह काफी महंगी होती है। हमें करीब 70 टन मिट्टी की आवश्यकता था। इस लिए हमने खुद इस कृत्रिम मिट्टी का निर्माण किया। इसमें सफलता पाने के बाद हमने इसका पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया था, जो अब हमें मिल चुका है।
तमिलनाडु की चट्टान में मिली समानता
भारतीय वैज्ञानिकों के अनुसार चंद्रमा की सतह पर पाई जाने मिट्टी की संरचना तमिलनाडु के सालेम में मौजूद एनॉर्थोसाइट की चट्टानों के समान है। हमें इन चट्टानों का अध्ययन किया। जिसके बाद हमें चंद्रमा की मिट्टी और चट्टानों की मिट्टी के बीच समानता पता चली। इसके बाद हमें इसे बेंगलुरु लाए और और वहां उसे चांद की सतह पर मौजूद मिट्टी की तरह बनाने का प्रयोग किया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार यह मिट्टी बिलकुल चंद्रमा की सतह की मिट्टी से मेल खाती है। हमने इसे अपोलो 16 द्वारा लाई गई मिट्टी के सैम्पल से भी मिलाया है, जो गुणवत्ता में बिलकुल वैसी ही है।
करीब 4 साल का वक्त लगा
इसरो को इस तरह की मिट्टी बनाने में करीब 4 साल का वक्त लगा। इसके लिए उनके वैज्ञानिकों ने काफी मेहनत की है। इस मिट्टी को बनाने की तकनीक खोजने वाले वैज्ञानिकों में एसए कन्नण, आई वेणुगोपाल, वी चंद्रबाबू, शामराओ की प्रमुख भूमिका थी। वहीं इस पर रिसर्च करने वाली टीम में एम चिन्नामुथु तिरुचिरपल्ली के नेशनल इस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के मुथुकुमारन, तमिलनाडु की पेरियार यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ जियोलॉजी से एस अरिवझगन, सीआर परमशिवम, एस अनबझगन आदि शामिल थे। इस मिट्टी को बनाने से वैज्ञानिकों को अपने प्रयोगों में काफी मदद मिलेगी।
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चंद्रयान 2 की असफलता ने किया प्रेरित
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को पिछले साल सबसे बड़ा झटका लगा था जब उसका बहुउद्देशीय चंद्रयान 2 (Chandrayaan 2) लैंडिंग में असफल हो गया था। 7 सितंबर को चंदमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में लैंडिंग कराते वक्त ये नष्ट हो गया था। अगर ये लैंडिंग सफल हो जाती तो भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारने वाला विश्व का पहला देश बन जाता। 978 करोड़ रुपये लागत वाले इस चंद्र मिशन पर पूरे विश्व की नजर थी, लेकिन आखिरी समय में उसका संपर्क टूट गया था। इसकी लैंडिंग देखने खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) भी इसरो के केन्द्र पहुंचे थे, जहा असफल होने के बाद उन्होंने वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास बढ़ाने की पूरी कोशिश की थी।
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