एक PCO की बदौलत आए माइक्रोमैक्स फोन, बनी 21000 करोड़ की कंपनी

राहुल...नाम तो सुना ही होगा! नाम का तो पता नहीं, पर आपने यह डायलॉग जरूर सुना होगा। राहुल शर्मा के साथ भी कुछ ऐसा ही है। राहुल को भले ही आप न जानते हों लेकिन इनकी कंपनी के बारे में जरूर जानते होंगे। माइक्रोमैक्स कंपनी के फाउंडर एंड सीईओ राहुल की कहानी किसी परिकथा सी लगती है, लेकिन है एकदम सही।
राहुल के पिता दिल्ली में टीचर थे और राहुल टीचर्स कॉलोनी में अपने परिवार के साथ रहते थे। राहुल ने कभी सोचा नहीं था कि उनकी जिंदगी एक दिन अचानक आसामान छू लेगी और किस्मत कुछ यूं मेहरबान होगी कि बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत एक्टर्स में शुमार एक अदाकारा उनसे शादी भी कर लेगी।
राहुल की जिंदगी में इतना बड़ा जादू हुआ कैसे! रातोरात कोई यूं इतना बड़ा आंत्रप्रेन्योर बनता है क्या! आम युवा से लेकर बिजनेस टाइकून्स तक यही सवाल पूछते हैं। इसका जवाब कुछ दिनों पहले एक इंटरव्यू में राहुल ने खुद दे दिया। राहुल ने बताया, 'बात दरअसल 1999 की है। हम तीन दोस्त कॉलेज से पढ़कर निकले थे और कुछ नया करना चाहते थे। यही वक्त था जब डॉट कॉम बूम हो रहा था और उस वक्त मुझे बस एक ही चीज समझ आई...सॉफ्टवेयर।' आपको शायद यह जानकर हैरानी होगी कि राहुल ने कंपनी का नाम भी पहले माइक्रोमैक्स सॉफ्टवेयर रखा था।
कैसे शुरू हुआ माइक्रोमैक्स
राहुल उसी दौरान एक बिजनेस ट्रिप पर अमेरिका के न्यू ऑर्लियंस शहर गए थे। उसे याद करते हुए राहुल ने दिल्ली में आयोजित एक टेक इवेंट में बताया, 'एक एयरलाइन स्टाफ ने मुझझे पूछा कि मैं विंडो सीट लेना पसंद करूंगा या आयल। उसका एक्सेंट काफी अलग था तो मुझे इतना समझ आया कि उसने विंडो जैसा कुछ कहा है और मैंने जवाब दिया...हां, विंडोज 2000।' इससे पहले कि लोग और कन्फ्यूज होते, राहुल ने बताया कि उन दिनों उनके दिमाग में सिर्फ एक धुन थी...सॉफ्टवेयर।
नोकिया के साथ किया था पार्टनर
नोकिया अब पुरानी बात हो चुकी है, लेकिन जब राहुल ने काम शुरू किया तो नोकिया मोबाइल मार्केट में अकेला शहंशाह थी। राहुल ने नोकिया के साथ सॉफ्टवेयर के काम के लिए टाई-अप किया और पॉवर पेफोन्स मार्केट में ले आए। पॉवर पेफोन्स सिम कार्ड्स से चलते थे और ऐसे इलाकों में काम करते थे, जहां लैंडलाइन कनेक्टिविटी एकदम नहीं थी।

पेफोन्स से ही 100 करोड़ का रेवेन्यू
नोकिया के बुरे दिन की शुरुआत हुई लेकिन राहुल के अच्छे दिन आ रहे थे। उन्होंने पेफोन्स पर काम जारी रखा। माइक्रोमैक्स ब्रांडेड टर्मिनल्स बनाने शुरू किए वैष्णो देवी में लगे पेफोन्स में लगाने शुरू कर दिया। राहुल ने बताया, 'हमें भरोसा था कि अगर पेफोन्स वैष्णो देवी में काम कर गए तो दुनिया में कहीं भी कर जाएंगे।' कुछ ऐसा ही हुआ। शानदार रेस्पॉन्स मिला और कंपनी का 10 करोड़ का एनुअल रेवेन्यू 100 करोड़ के पार पहुंच गया।
न वो पीसीओ होता, न माइक्रोमैक्स फोन आते
100 करोड़ की सॉफ्टवेयर कंपनी के बाद मोबाइल इंडस्ट्री में उतरने का फैसला यूं ही नहीं लिया गया। इसके पीछे भी एक कहानी है। कहानी बांग्लादेश बॉर्डर पर पं. बंगाल के एक पीसीओ की। राहुल एक बिजनेस ट्रिप से लौटते रहे थे कि उनकी निगाह पीसीओ के पास लगी लंबी कतार पर पड़ी। पता चला कि पीसीओ के ऊपर बड़ा सा एंटीना है और उसे ट्रक की बैटरी से पीसीओ चल रहा है। लोग वहां पर अपने मोबाइल चार्ज करने के लिए खड़े थे। राहुल बताते हैं, 'मैंने लोगों से बात की तो पता चला कि एक आदमी सिर्फ बैटरी वाला ट्रक लगाकर रात भर में 3000 रुपये कमा रहा था। मैं वापस आया और अपने को-फाउंडर्स से बात की।'
और आ गया 'किलर' माइक्रोमैक्स
जी हां, राहुल के दोस्त तैयार हो गए और कंपनी मोबाइल मार्केट में कूद गई। आइडिया सिर्फ एक था, जो माइक्रोमैक्स को सैमसंग, नोकिया और बाकी बड़ी कंपनियों से अलग एक नई रेस में खड़ा कर रहा था। वह था, लंबी बैटरी वाला फोन। फोन लॉन्च हुआ और 10 दिन में बगैर किसी प्रचार के ही 10 हजार फोन बिक गए।
माइक्रोमैक्स ने भर दी अमीर-गरीब की खाई
राहुल बताते हैं कि उन्होंने एक बार देखा कि उनके कुक के पास तीन सिम थे। उन्होंने उससे पूछा तो जवाब मिला कि एक लोकल कॉल के लिए है, दूसरा गांव में बात करने के लिए और तीसरे पर इनकमिंग फ्री थी। उस समय कहा जाता था कि केवल बड़े और अमीर लोगों के पास ही दो सिम वाले फोन होते हैं। माइक्रोमैक्स ने दो सिम वाला फोन मार्केट में उतार दिया। इसके बाद क्या था। कंपनी बस नए प्रयोग कर रही थी। लड़कियों के लिए स्मार्टफोन की नई रेंज लाई गई। नए ब्लूटूथ इनेबल्ड फोन उतारे गए और आगे की कहानी आपको पता है।
ये था माइक्रोमैक्स बिजनेस का मंत्र
राहुल की कहानी में सबसे अहम है उनके बिजनेस का मंत्र। उन्होंने और उनके साथियों ने न सिर्फ लोगों की जरूरतों और देश की भौगोलिक परिस्थितियों को समझा बल्कि यह भी ध्यान रखा कि आर्थिक रूप से किस मॉडल से उनकी ग्रोथ सबसे तेज होगी। माइक्रोमैक्स ने हमेशा बजट फोन्स पर ज्यादा मेहनत की। मार्केटिंग पर भी जबर्दस्त फोकस किया गया। क्रिकेट सिरीज से लेकर ह्यू जैकमैन तक, सब माइक्रोमैक्स के ब्रैंड एम्बैसडर बने और आज की तारीख में भले ही माइक्रोमैक्स के फोन मार्केट में नजर न आएं लेकिन कंपनी 21,000 करोड़ की है और नए एवेन्यूज पर काम कर रही है।
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