भारत में पहली बार सरोगेसी तकनीक से गाय ने दिया बछड़े को जन्म

इंसानों के बाद अब गायों में भी सरोगेसी तकनीक से गर्भाधान शुरू हो गया है। बीते रविवार को पुणे से करीब 140 किलोमीटर दूर पठान परिवार के रचना फार्म में देश में पहली बार मोबाइल लैब के जरिये पूरी की गई सरोगेसी तकनीक के बाद बछड़े 'विजय' ने जन्म लिया है। प्रयोग के सफल होने से फार्म के मालिक रज्जाक जब्बार पठान काफी प्रसन्न हैं।
बेहतर नस्लों को बचाने की कवायद
मवेशियों की नस्लों में सुधार के लिए काम करने वाली संस्था जेके ट्रस्ट के सीईओ डॉ. श्याम जवर बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में क्रॉस ब्रीडिंग की वजह से स्वदेशी गायों की नस्ल बर्बाद हो रही है। इंसानों में विट्रो फर्टीलाइजेशन (IVF) टेक्नोलॉजी का उपयोग नि:संतान दंपती को संतान सुख देने के लिए होता है जबकि हम गायों के मामले में इस तकनीक के इस्तेमाल का उद्देश्य उनकी वास्तविक नस्ल को बचाना है। डॉ. जवर के मुताबिक, एक गाय अपने पूरे जीवन (औसतन 15 वर्ष) में अधिकतम 10 बछड़ों को जन्म देती है। वहीं, आईवीएफ तकनीक की मदद से प्राप्तकर्ता गायों में सरोगेसी के माध्यम से एक साल में ही 20 बछड़ों को जन्म दे सकती है और पूरी आयु में यह आंकड़ा 200 हो जाता है। डोनर गाय में एक साल में लगभग 50 भ्रूण का निर्माण होता है।
पशु पालकों को जोड़ रहे
डॉ. श्याम बताते हैं कि पांच वर्ष पहले नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इसी प्रक्रिया को प्रयोगशाला के स्तर पर किया था, लेकिन यह पहली बार है कि इस प्रकिया को मोबाइल लैब के जरिये फार्म में सफलतापूर्वक पूरा किया गया। दरअसल, इस प्रक्रिया का उद्देश्य तकनीक को पशु पालक तक ले जाना था, हमने पशु पालक के सामने लैब में प्रक्रिया को पूरा किया।
ऐसे पूरी हुई प्रक्रिया
विजय की डोनर मां रतन गिर नस्ल की है, जिसकी संख्या देश में लगभग एक लाख के आसपास है, यह आमतौर पर गुजरात, राजस्थान व महाराष्ट्र में होती हैं। यह रोजाना 10 से 12 लीटर दूध रोजाना देती हैं। डॉ. जवर ने बताया कि जेके ट्रस्ट की पहल जेके बोवाजेनिक्स के तहत बेहतर स्वदेशी नस्ल को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पठान परिवार के रचना गाय फार्म से 9 नवंबर 2016 को डोनर गाय से अपरिपक्व अंडे लिए गए थे। इन अंडों को 24 घंटे तक कृत्रिम गर्भाशय की तरह काम करने वाले विशेष इंक्यूबेटर में रखा गया।
इस दौरान गिर नस्ल के सांड के वीर्य की भी व्यवस्था की गई। इसके बाद इंक्यूबेटर में 38.5 डिग्री सेंटीग्रेड पर निषेचन शुरू हुआ। सात दिनों के बाद अंडों के भ्रूण बनने के बाद उसे प्राप्तकर्ता गाय में पहुंचा दिया गया। वह बताते हैं कि गायों में आईवीएफ लगभग 40 फीसदी सफल रहता है। रतन के साथ तीन अन्य डोनर गायों से नवंबर मे अपरिपक्व अंडे लिए गए थे, इसमें एक गिर व दो खिल्लर नस्ल की हैं। तीनों की प्राप्तकर्ता गाय भी जल्द ही बछड़ों को जन्म देंगी। वहीं, पुणे के पास ही गाय फार्म के मालिक चंद्रकांत भारेकर की थारपरकर नस्ल की तीन गाय भी इसी प्रक्रिया के तहत जल्द ही बछड़ों को जन्म देंगी। इस प्रोजेक्ट में डॉ. जवर के नेतृत्व में डॉ. विनोद पाटिल, डॉ. प्रदीप तिवारी, डॉ. रमाकांत कौशिक और डॉ. अमोल सहारे शामिल रहे।
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