देश के सबसे भारी रॉकेट GSLV मार्क-3 की खासियत जानते हैं आप?

जीएसएलवी (GSLV) मार्क-3 की लॉन्चिंग के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई है। श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केन्द्र से सोमवार शाम 5.28 बजे इसका प्रक्षेपण होगा। यह रॉकेट संचार उपग्रह जीसैट-19 को लेकर जाएगा। आपको बता दें, जीएसएलवी एमके थ्री भारत का सबसे भारी रॉकेट है।
पूरी तरह देश में बना है
ये पहला ऐसा रॉकेट है जो पूरी तरह देश में ही बना है। इसमें देश में ही विकसित क्रायोजेनिक इंजन लगा है। ये रॉकेट एक बड़े सैटेलाइट सिस्टम को अंतरिक्ष में स्थापित करेगा। इस रॉकेट की कामयाबी से भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने में भारत का रास्ता साफ़ हो जाएगा। बता दें कि करीब 30 साल की रिसर्च के बाद इसरो ने यह इंजन बनाया था।
अब तक 2300 किलोग्राम से अधिक वजन के संचार उपग्रहों के लिए इसरो को विदेशी लॉन्चरों पर निर्भर रहना पड़ता था। जीएसएलवी मार्क-3 4000 किलोग्राम तक के पेलोड को उठाकर भूतुल्यकालिक अंतरण कक्षा (जीटीओ) और 10 हजार किलोग्राम तक के पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाने में सक्षम है।
भारत का सबसे भारी रॉकेट
इसरो अध्यक्ष एस एस किरण कुमार ने बताया कि ये मिशन बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अब तक का सबसे भारी रॉकेट और उपग्रह है जिसे देश से छोड़ा जाना है। किरण कुमार ने बताया कि अब तक 2300 किलोग्राम से अधिक वजन के संचार उपग्रहों के लिए इसरो को विदेशी लॉन्चरों पर निर्भर रहना पड़ता था। उन्होंने बताया कि जीएसएलवी एमके थ्री-डी 4000 किलो तक के पेलोड को उठाकर जीटीओ और 10 हजार किलो तक के पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाने में सक्षम है।
क्या होगा फायदा
इनके प्रक्षेपण के साथ ही डिजिटल भारत को मजबूती मिलेगी। केंद्र के निदेशक तपन मिश्रा ने इसे भारत के लिए संचार के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी उपग्रह बताया है, उन्होंने कहा कि अगर यह प्रक्षेपण सफल रहा तो अकेला जीसैट-19 उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित पुराने किस्म के 6-7 संचार उपग्रहों के समूह के बराबर होगा। फिलहाल अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित 41 भारतीय उपग्रहों में से 13 संचार उपग्रह हैं।
जीएसएलवी एमके-3 का वजन पांच पूरी तरह से भरे बोइंग जम्बो विमान या 200 हाथियों के बराबर है। जीएसएलवी एमके-3 देश का पहला ऐसा उपग्रह है जो अंतरिक्ष आधारित प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके तेज स्पीड वाली इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने में सक्षम है। देश ऐसी क्षमता विकसित करने पर जोर दे रहा है जो फाइबर ऑप्टिक इंटरनेट की पहुंच से दूर स्थानों को जोड़ने में महत्वपूर्ण हो।
बढ़ेगी इंटरनेट सेवा
जीसैट-19 को पहली बार भारत में बनी लीथियम आयन बैटरियों से संचालित किया जा रहा है। जीसैट-19 की सबसे नई बात यह है कि पहली बार उपग्रह पर कोई ट्रांसपोन्डर नहीं होगा। मिश्रा ने कहा कि यहां तक कि आसमान के नए पक्षी के साथ ट्रांसपोन्डर शब्द ही नहीं जुड़ा होगा। यहां तक कि पहली बार इसरो पूरी तरह नए तरीके के मल्टीपल फ्रीक्वेंसी बीम का इस्तेमाल कर रहा है जिससे इंटरनेट स्पीड और कनेक्टिविटी बढ़ जाएगी।
एक नजर में जीएसएलवी मार्क 3
1- 640 टन का वजन, भारत का ये सबसे वजनी रॉकेट है
2- करीब 30 साल की रिसर्च के बाद इसरो ने यह इंजन बनाया था।
3- इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 15 साल लगे। इस विशाल रॉकेट की ऊंचाई किसी 13 मंजिली इमारत के बराबर है और ये चार टन तक के उपग्रह लॉन्च कर सकता है।
4- अपनी पहली उड़ान में ये रॉकेट 3136 किलोग्राम के सेटेलाइट को उसकी कक्षा में पहुंचाएगा
5- इस रॉकेट में स्वदेशी तकनीक से तैयार हुआ नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जिसमें लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
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