अपने पुराने कॉलेज पहुंचकर गूगल के CEO सुंदर पिचाई ने खोले दिल के राज

गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई गुरुवार को आईआईटी-खड़गपुर में थे, इस दौरान छात्रों से अपनी बातचीत के दौरान पिचाई ने कॉलेज की यादों को ताजा किया। पिचाई ने इस दौरान अपने कॉलेज जीवन की ढेर सारी बातें कीं। इसमें कक्षाएं छोड़ने से लेकर, महिला मित्र की रैगिंग और मेस आदि की बातें शामिल रहीं। पिचाई अपने खगड़पुर के परिसर में 23 सालों के बाद आए थे। उन्होंने खचाखच भीड़ भरे हाल में छात्रों को संबोधित किया।
पिचाई के संबोधन की खास बातें
1- यहां लौटना बेहद शानदार रहा, जब मैं यहां था तब कैमरा और फोन नहीं हुआ करते थे।
2- मैंने क्लास बंक की? हां, यह कॉलेज में सही लगता है, लेकिन मैंने काफी मेहनत भी की।
3- मैंने अपने जीवन में पहला कंप्यूटर यहीं देखा।
4- मैंने स्कूल में हिंदी सीखी लेकिन मैं ज्यादा बोल नहीं पाता था। मैं चेन्नई से आया था, मैंने लोगों को बोलते हुए सुनता था। एक बार मैंने किसी को मेस में देखा जिसे बुलाने के लिए मैंने कहा, 'अबे साले..' तब मैं समझ रहा था कि ऐसे ही बोला जाता है।
5- मेस में खाने को लेकर जो मजेदार सवाल जवाब किए जाते थे, उनमें से मेरा यह एक फेवरिट था। लोग पूछते थे कि बताओ यह दाल है या सांभर, मैं यहीं पर अपनी पत्नी से मिला। तब किसी के पास यूं चले जाना और बात करना आसान नहीं था, घर पर कंप्यूटर नहीं था।
6- मुझे याद है कि जब आप (कॉलेज में) नए नए होते हैं, (रूम का) ताला लगाकर चले जाते हैं लेकिन जब आप रूम में वापस आते हैं तो ताला खुले बिना ही आपका कमरा पूरी तरह से री-अरेंज हो चुका होता है।
7- कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं लेकिन मैं यहां कैंपस में काफी ज्यादा बदलाव देखता हूं।
8- मुझे पूरा विश्वास है कि आपके आज के अनुभव मेरे अनुभवों से ज्यादा अलग नहीं होंगे। मेरी यहां से जुड़ी कई अच्छी यादें हैं, आप पूरे जीवन के लिए दोस्त बनाते हैं।
9- भारत में डिजिटल मार्केट फल फूल रहा है, भारतीय कंपनियों को बड़ी चीजों पर फोकस करने की जरूरत है। निश्चित तौर पर भारत से जल्द ही कई ग्लोबल इनोवेशन देखने को मिलेंगी।
10- ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को एजुकेशन के मामले में ऊंचा लक्ष्य रखते हुए देखना चाहते हैं और यह जो आदत है, वह बेहद शानदार है। एजुकेशन पर फोकस, एक बड़ी ताकत है। मैं युवाओं को रचनात्मकता पर फोकस करते हुए देखना चाहता हूं और चाहता हूं कि वे जोखिम लें।
गर्लफ्रेंड अंजलि के बारे में
अंजलि मेरी पत्नी है और वह मेरी सहपाठी भी थी। आज जो एस.एन. हॉल है वह उस समय वह अकेला गर्ल्स हॉस्टल था। मैं समझता हूं कि कुछ और बन गए होंगे। यह बहुत आसान नहीं था। यदि आपको गर्ल्स हॉस्टल में किसी से मिलना है तो आपको सामने से जाकर किसी से बुलाने के लिए कहना होता था और वह जाता था और तेज आवाज में कहता अंजलि सुंदर आपसे मिलने आया है। इस वजह से यह एक बहुत खुशनुमा अनुभव नहीं होता था।
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