ट्रक ड्राइवर के बेटे ने कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत का खोला खाता, जीता सिल्वर मेडल

आर्थिक कमजोरी के बाद भी पूरा किया सपना
वेटलिफटिंग की दुनिया में 2010 में कदम रखने वाले गुरुराजा मूल रूप से कोस्टल कर्नाटक में कुंडूपारा के रहने वाले हैं। उनके पिता ट्रक चलाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर होने के बाद भी उनके परिवार ने उन्हें वो हर चीज दिलाई, जो उनके इस गेम को बेहतर बनाने के लिए जरूरी थी। उन्होंने 2010 में वेटलिफ्टिंग करियर शुरू किया था। जब उन्होंने शुरूआत की थी तो उनके सामने भी डाइट और सप्लीमेंट्स की समस्या आई थी क्योंकि नियमित रूप से शुरू में डायट लेने के पैसे नहीं थे। लेकिन उनके पिता ने उन्हें हिम्मत नहीं हारने दी। उनके परिवार में आठ लोग हैं। इन लोगों का जीवन चलाना ही बड़ी मुश्किल की बात थी। गुरुराजा बताते हैं कि हालांकि बाद में धीरे-धीरे चीजें बेहतर होती गईं। गुरुराजा एयरफोर्स में काम करते हैं। आज जब उनके दो प्रयास खाली चले गए थे तो मेरे लिए यह झटका था। गुरुराजा ने बताया, 'क्लीन एंड जर्क में जब मेरे दो प्रयास खाली चले गए, तो मेरे कोच ने याद दिलाया कि मेरी जिंदगी इस पदक पर कितनी निर्भर है। मैंने अपने परिवार और देश को याद किया। उन्होंने कहा कि मेरा लक्ष्य पहले कॉमनवेल्थ गेम्स था अब यहां से सफलता मिल गई और अब मेरा अगला लक्ष्य 2020 है। मैं टोक्यो ओलिंपिक की तैयारी अब जुट जाउंगा। उन्होंने कहा कि अब मैं पूरी तरह से इसी खेल में ढल चुका हूं। जीतने के बाद उन्होंने कहा कि मैं नेशनल फेडरेशन और हर उस शख्स से जो मेरी जिंदगी का हिस्सा रहा, उससे मुझे बहुत सहयोग मिला है। सभी कोच मेरे प्रदर्शन में निखार लाए हैं।'
पहलवान बनाना चाहते थे गुरूराजा

2010 में जब पहलवान सुशील कुमार ने गोल्ड मेडल जीता था उसके बाद उनके खेल से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने भी कुश्ती में दांव लगाना शुरू कर दिया। लेकिन बनना था उनको वेटलिफ्टर तो कुश्ती में उनके दांव कहा चलते। हालांकि उन्होंने अभ्यास शुरू से ही वेटलिफ्टर बनने का ही किया था। उन्होंने एक समाचार एजेंसी को बताया कि जब मैंने 2010 में शुरू किया तो मुझे प्रशिक्षण के पहले महीने में बहुत दिक्कत हुई। मुझे यह भी नहीं पता था कि इसको कैसे करके उठाना क्योंकि ये बहुत ही भारी था। गुरूराजा की यह शिकायत बिल्कुल ही नहीं जायज थी क्योंकि वे वेटलिफ्टर बनने आए थे और कोई भी वेटलिफ्टर ये नहीं कहेगा। उन्होंने बताया कि मैंने अपने कोच राजेंद्र कुमार से मुलाकात की और उन्हें पूरी बता बताई और मैंने 42 किलो वर्ग में अभ्यास भी शुरू कर दिया क्योंकि मुझे वेटलिफटिंग के क्षेत्र में अपना करियर अंसभव लग रहा था। लेकिन मेरी किश्मत में वेटलिफ्टर बनाना ही था और मेरी किश्मत में ये पदक भी था जो कि मेरा इंतजार कर था। क्या अब भी उन्हें रेसलिंग में रुचि है के सवाल पर उन्होंने हंसते हुए कहा, 'मैं अब भी रेसलिंग इंज्वाय करता हूं। मुझे खेल से बहुत ज्यादा प्यार है।' गुरूराजा ने 2016 में पेनांग में हुई कॉमनवेल्थ सीनियर वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में वह स्वर्ण पदक भी जीत चुके हैं। इसके अलावा साल की शुरुआत में उन्होंने साउथ एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था।
कुछ इस तरह से गुरुराजा ने जीता पदक
25 साल के गुरुराजा पुजारी ने 56 किलोग्राम (मेंस) कैटेगरी में कुल 249 किग्रा (स्नैच में 111 किग्रा और क्लीन एंड जर्क में 138 किग्रा) वजन उठाया। गुरुराजा ने स्नैच की पहली कोशिश में 107 किग्रा भार उठाया। फिर उन्होंने 111 किग्रा भार उठाने की कोशिश की, लेकिन फाउल कर गए। तीसरी कोशिश में उन्होंने 111 किग्रा भार उठाया। इसी तरह, क्लीन एंड जर्क की पहली कोशिश में 138 किग्रा भार ऑप्ट किया, लेकिन फाउल कर गए। दूसरी कोशिश में भी 138 किग्रा भार ऑप्ट किया, लेकिन इस बार भी वह फाउल कर गए। हालांकि, तीसरी और आखिरी कोशिश में उन्होंने 138 किग्रा का वजन उठाकर सिल्वर पक्का कर लिया। इस कैटेगरी में 12 देशों ने हिस्सा लिया था। इस कैटेगरी में 261 किलोग्राम वजन उठाकर स्वर्ण पदक जीतने वाले इजहार ने कॉमनवेल्थ गेम्स में नया रिकॉर्ड भी कायम किया है। वहीं श्री लंका के चतुरंगा लकमल ने 248 किलोग्राम भार उठाकर कांस्य पदक जीता है।
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