बजरंग ने कई मुश्किलों का सामना करके सीखी थी पहलवानी, अब गोल्ड कोस्ट में जीता गोल्ड

कभी एक लड़का पढ़ाई से बचने के लिए अक्सर स्कूल जाने के बजाय अखाड़ों में पहुंच जाता था। ताकि स्कूल न जाना पड़े और गुरूजी की मार न खानी पड़े। पढ़ाई की जगह बेटे की रुचि कुश्ती में देखकर एक पहलवान पिता घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद भी बेटे को पहलवान बनाने का निर्णय लेता है और महज 7 साल की उम्र से ही कुश्ती की एबीसीडी सिखाना शुरू कर देता और वह बेटा 13 साल की उम्र में से पिता की उम्मीदों पर खरा उतरने लगता है।
यह और कोई नहीं बल्कि गोल्ड कोस्ट में भारत के लिए 65 किलोग्राम कुश्ती स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले बजरंग पुनिया हैं। बजरंग पुनिया को पहलवान बनाने की जिद उनके पिता में इतनी थी कि वे हरियाणा के झज्जर जिले के खुड्डन गांव से साइकिल चलाकर बेटे को घी देने के लिए दिल्ली स्थित छत्रसाल स्टेडियम आते थे। उस समय उनकी आर्थिक स्थिति सही नहीं थे, बस का किराया देने के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए साइकिल ही आने जाने का एक साधन था।
पिता की मेहनत को आखिरकार बेटे ने 2014 में सफल कर दिया जब बजरंग ने कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीता था। इसके बाद फिर बजरंग ने अपना बेहतर प्रदर्शन जारी रखा। वैसे बजरंग ने 2006 में पहली बार कांस्य पदक जीता था फिर इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
गरीबी के चलते पिता ने छोड़ी थी पहलवानी

झज्जर जिले के खुड्डन गांव में जन्में बजरंग के पिता बलवान पुनिया भी पहलवान थे। बजरंग के पिता बलवान पूनिया भी अपने समय के प्रसिद्ध पहलवानों की गिनती में शुमार हो सकते थे, लेकिन परिवार में छाई गरीबी और घर की जिम्मेदारी कंधों पर होने के कारण उन्हें अपना यह शौक बीच में छोड़ देना पड़ा। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे बजरंग का मन शुरू से ही अखाड़े के प्रति था। जिसके चलते उनके पहलवान पिता ने 10 वर्ष की आयु में परिजनों ने उसे छारा स्थित लाला दीवानचंद अखाड़े में छोड़ दिया। यहां गुरु आर्य वीरेंद्र के मार्गदर्शन में उनके खेल में निखार आया।
महज 13 वर्ष की आयु में ही बजरंग ने सब जूनियर में ब्रांज और सिलवर मेडल जीते। इसके उपरांत बजरंग दिल्ली के छत्रसाल अखाड़े में चला गया। यहां गुरु महाबली सतपाल की देखरेख में ओलंपियन योगेश्वर के सहयोग से बजरंगी इंटरनेशनल चैंपियन बनकर उभरा।
2006 से पहलवानी में नाम करने लगा रोशन

गरीबी में पले बजरंग ने 2006 में महाराष्ट्र के लातूर में हुई स्कूल नेशनल चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था। उसके बाद लगातार सात साल तक स्कूल नेशनल चैंपियनशिप का स्वर्ण पदक उन्होंने जीता। 2009 में उन्होंने दिल्ली में बाल केसरी का खिताब जीता। इस उपलब्धि के बाद ही बजरंग का चयन भारतीय कुश्ती फेडरेशन ने 2010 में थाईलैंड में हुई जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप के लिए किया। बजरंग ने पहली बार विदेशी धरती पर धाक जमाकर सोने पर कब्जा किया। 2011 की विश्व जूनियर चैंपियनशिप में भी बजरंग ने फिर सोना जीता।
2014 में हंगरी में हुए विश्व कप मुकाबले में बजरंग ने कांस्य जीतकर अपने चयन को सही ठहराया। और इसके बाद ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में बजरंग ने रजत पदक जीतकर धाक जमा दी। महज 20 साल की उम्र में ग्लास्गो कॉमनवेल्थ में चांदी जीतने वाले बजरंग ने इंचियोन में हुए एशियन गेम्स में भी भारत को चांदी दिलाई थी। अभी पिछले साल सीनियर एशियन कुश्ती चैंपियनशिप में कोरिया के ली शुंग चुल को 6-2 से हराकर भारत को पहला स्वर्ण दिला दिया।
बजरंग की खातिर योगेश्वर ने छोड़ कैटेगरी

बजरंग पुनिया अब अपना गुरू ओलंपियन योगेश्वर दत्त को मानते है। हालांकि उन्होंने अपना बेहतरीन प्रदर्शन छत्रसाल अखाड़े से शुरू किया था लेकिन अब वे योगेश्वर को अपना गुरू मानते थे। वे वर्ष 2008 से योगेश्वर के साथ है। छत्रसाल अखाड़े को छोड़ने के बाद बजरंग बीते दो साल से योगेश्वर से ही ट्रेनिंग ले रहा है। योगेश्वर ने बजरंग के लिए ही 61 किलोग्राम की कैटेगिरी छोड़ी थी। अब 65 किलोग्राम कैटेगिरी भी छोड़ दी ताकि बजरंग आगे बढ़ सके। बजरंग का कहना है कि योगी भाई के सहयोग से ही आज वह इस मुकाम पर है। अर्जुन अवार्ड से नवाजे जा चुके बजरंग अब लगातार बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं और अगली चुनौती उनके सामने एशियन गेम्स व फिर ओलंपिक की है।
बजरंग ने ओलंपियन पहलवान को हराकर जीता गोल्ड
भारतीय पहलवान बजरंग पुनिया ने गोल्ड कोस्ट में ओलंपियन पहलवान चारिग को हराकर भारत की झोली में 17वां गोल्ड मेडल डाला। बजरंग ने पुरुषों की 65 किलोग्राम वर्ग स्पर्धा के फाइनल में वेल्स के केन चारिग को 10-1 से मात देकर पहले ही दौर में जीत हासिल कर ली। भारतीय पहलवान ने शुरुआत से ही अपने प्रतिद्वंद्वी चारिग पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया. उन्होंने चारिग को हाथों से जकड़कर पटका और दो अंक लिए। इसी अवस्था में उन्होंने वेल्स के पहलवान को रोल कर दो अंक और लेते हुए 4-0 की बढ़त बना ली. इसी शैली और तरीके से बजरंग ने चार अंक और लिए। अंत में बजरंग ने चारिग को चित करते हुए 10 अंक हासिल कर सोना जीता।
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