अपना पेट काटकर बेटी को बढ़ाया आगे, आज राष्ट्रीय पलक पर छाई आंचल ठाकुर

कौन हैं आंचल ठाकुर?
आंचल ठाकुर हिमाचल प्रदेश के मनाली में एक छोटे से गांव बुरुआ की रहने वाली हैं। 21 वर्षीय आंचल चंडीगढ के डीएवी कालेज की छात्रा हैं। जब आंचल सातवीं क्लास में थीं, तभी से वह स्कीइंग कर रही है। खास बात यह है कि उन्होंने अपने शौक को पूरा करने के लिए यूरोप का रूख किया। आंचल की इस शौक को पूरा करने में उनके पिता रोशन ठाकुर का भी बड़ा योगदान रहा है। वह भारतीय शीतकालीन खेल महासंघ के सचिव हैं और स्कीइंग के भी बड़े शौकीन हैं। आंचल का भाई हिमांशु भी बेहतरीन स्कीइंग करता है। आंचल को अपनी शुरुआती ट्रेनिंग अपने पिता से ही मिलीं। हालांकि, बाद में उनकी स्किल्स को देखते हुए पूर्व ओलिम्पियन हीरा लाल ने उन्हें ट्रेन किया। आंचल इससे पहले भारत को ऑस्ट्रिया को इन्सब्रक मेें 2012 विंटर यूथ ओलिम्पिक्स में भी रिप्रेजेंट कर चुकी हैं। इसमें उन्होंने अल्पाइन स्कीइंग में हिस्सा लिया था।

आंचल ठाकुर को उम्मीद आएंगे स्कीइंग के भी अच्छे दिन
स्कीइंग खेल में मेडल प्राप्त करने वालों में भारत का नाम भी 9 जनवरी को चढ़ गया। और यह नाम आंचल ठाकुर की मेहनत की वजह से चढ़ा है। इंटरनैशनल स्कीइंग कॉम्पिटिशन में पदक जीतने वाली आंचल ठाकुर भारत की पहली खिलाड़ी हैं, जिन्होंने एल्पाइन एज्डेर 3200 कप में ब्रॉन्ज अपने नाम किया। एल्पाइन एज्डेर 3200 कप का आयोजन स्की इंटरनेशनल फेडरेशन (एफआईसी) करता है। आंचल ने यह मेडल स्लालम (सर्पिलाकार रास्ते पर स्की दौड़) रेस कैटिगरी में जीता है। इस बार यह टूर्नामेंट तुर्की में आयोजित हुआ था। तुर्की के पैलनडोकेन स्की सेंटर में आंचल ने भारत की ओर से इतिहास रचने के बाद खुशी जताई। आंचल ने कहा, ‘महीनों की कड़ी ट्रेनिंग के बाद आखिरकार मेहनत रंग लाई। मैंने यहां अच्छी शुरुआत की और शुरुआत में ही लीड बना ली, जिसकी बदौलत इस रेस को मैंने तीसरे स्थान पर खत्म किया।’ अपनी इस जीत को आंचल ने माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा, ‘आखिरकार कुछ ऐसा हो गया है, जिसकी उम्मीद नहीं थी। मेरा पहला इंटरनैशलन मेडल। हाल ही में तुर्की में खत्म हुए फेडरेशन इंटरनैशनल स्की रेस (एफआईसी) में मैंने शानदार परफॉर्म किया।’ भारत में शीतकालीन खेलों को कम महत्व दिया जाता है। लेकिन आंचल को उम्मीद है कि अबतक भारत में गुमनाम रहे स्कीइंग खेल के भी अब अच्छे दिन आएंगे। इस खेल के लिए मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। आंचल अब 2018 और 2022 में होने वाले ओलंपिक में खेलना चाहती हैं। वो माउंट एवरेस्ट पर स्कीइंग करने की भी ख्वाहिश रखती हैं।
हुनर तो है पर सरकार नहीं कर रही मदद
भारत में अन्य खेलों के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन स्कीइंग खेल के लिए कोई बजट ही नहीं है। बजट के अलावा भारत में स्कीइंग जैसे खेलों के लिए मूलभूत सुविधाओं की कमी है। इसके चलते आंचल के पिता ने उन्हें ट्रेनिंग के लिए विदेश भेजा। सातवीं क्लास से ही वो यूरोप, अमरीका, न्यूजीलैंड, कोरिया में ट्रेनिंग के लिए जाती रही हैं। टेªनिंग करने के पीछे की वजह यह है कि भारत में महज 2 माह ही बर्फ रहती हैं और सुविधाओं का अभाव भी है। ऐसे में यूरोप का माहौल इसके लिए बेहतर था, जहां साल में 10 महीने बर्फबारी होती है। इस ट्रेनिंग का पूरा खर्च आंचल के परिवार ने ही उठाया। स्कीइंग करते समय सुरक्षा के लिए पहने जाने वाले गियर की कीमत भी काफी ज्यादा होती है। आंचल बताती हैं कि स्कीइंग के पेयर ही 80 से 90 हजार के आते हैं, जबकि गियर समेत पूरा सामान सात से आठ लाख तक का आता है। आंचल ने जब शानदार प्रदर्शन करते हुए स्कीइंग में पदक जीता तब उनके पिता उनके साथ नहीं थे। आंचल ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जब पिता को खुशखबरी दी तो उन्हें पहले भरोसा ही नहीं हुआ। आंचल कहती हैं कि उन्होंने पिता का सपना पूरा कर दिया।
पीएम सहित खेलमंत्री भी दे चुके हैं बधाई
शीतकालीन खेल में पहली बार भारत का नाम ऊंचा करने वाली आंचल ठाकुर को प्रधानमंत्री जी ने बधाई दी। देश का नाम इस खेल में भी ऊंचा करने पर पीएम ने ट्वीट में लिखा ‘स्कीइंग में इंटरनेशनल मेडल जीतने के लिए बधाई! पूरा देश आपकी इस ऐतिहासिक जीत पर उत्साहित है। भविष्य के लिए शुभकामनाएं।’ इसके अलावा खेल राज्यमंत्री ने अपने ट्वीट में लिखा, तुर्की में एफआईएस इंटरनेशनल स्कीइंग कॉम्पटीशन में ब्रॉन्ज जीतने के लिए आंचल को बधाई। इस मेडल से स्कीइंग में भारत का खाता खुला। बहुत बढ़िया!’
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