मिलिए भारत के नए 'मिल्खा सिंह' से, कॉमनवेल्थ गेम्स में तोड़ा 60 साल पुराना रिकॉर्ड

भारत में अगर सफल एथलीटों की चर्चा होती है तो उसमें सबसे पहले फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह का नाम आता है। मिल्खा सिंह की चर्चा इसलिए होती है क्योंकि उन्होंने भारत के लिए जिस रिकॉर्ड के साथ गोल्ड मेडल जीता था उसे अभी तक कोई भी नहीं तोड़ पाया था, लेकिन 60 साल पुराने उनके इस रिकाॅर्ड को केरल के नौजवान धावक ने 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड कोस्ट की धरती पर तोड़ दिया।
यानी भारत को एक नया 'मिल्खा सिंह' मिल गया। भारत के नए 'मिल्खा सिंह' यानि मोहम्मद अनस ने 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में 46.6 सेकेंड में 400 मीटर की दौड़ लगाकर भारत के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाले मिल्खा सिंह का रिकार्ड तोड़ दिया और उन्होंने महज 45.31 सेकेंड में रेस निकालकर फाइनल में प्रवेश किया था। हालांकि फाइनल में प्रवेश करने के बाद भी वह कांस्य पदक से महज 0.20 सेकेंड से चूक गए। लेकिन मिल्खा सिंह के बाद ऐसा करने वाले वह दूसरे भारतीय धावक बन गए और उन्होंने मिल्खा सिंह का रिकार्ड तोड़कर अपने नाम कर लिया।
मिल्का सिंह ने 1958 में बनाया था रिकार्ड

मिल्खा सिंह की कहानी हर भारतीय को मालूम है कि कैसे करके उन्होंने रिकार्ड बनाया था तथा भारत की तरफ से 1960 व 1964 के ओलंपिक में प्रतिभाग किया था। उन्होंने 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में मिल्खा सिंह ने 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स के फाइनल में 46.6 सेकेंड के साथ गोल्ड मेडल जीता था। उसके बाद से कोई भी भारतीय धावक फाइनल में पहुंचने में कामयाब नहीं रहा था, लेकिन अनस ने यह कर दिखाया। अनस ने एक अखबार के इंटरव्यू में बताया कि उनके पिता नहीं चाहते थे कि वे एथलीट बने, लेकिन मां ने हौसला दिया और गांव से शुरू हुआ सफर गोल्ड कोस्ट के ट्रैक तक पहुंचा और फिर यहां पर ऐसा दौड़ा कि मिल्खा सिंह का 60 साल पुराना 'रिकॉर्ड' टूट गया।

पदक के बीच में बीच में 0.20 सेकेंड बनी दूरी
भारतीय धावक मोहम्मद अनस 400 मीटर स्पर्धा के फाइनल में राष्ट्रीय रिकार्ड बनाकर भी पदक से चूक गए। वह फाइनल में चौथे स्थान पर रहे। अगर वे दो सेकेण्ड पहले तय दूरी पर पहुंच जाते तो उनके खाते में पदक आ जाता। उन्होंने फाइनल स्पर्धा को 45.31 सेकेंड का समय निकाला।। स्पर्धा का स्वर्ण जीतने वाले बोट्सवाना के इसाक माकवाला ने 44.35 सेंकेंड का समय निकाला। वहीं जमैका के जेवान फ्रांसिस सीजन का अपना सर्वश्रेष्ठ समय निकालते हुए कांसा जीतने में सफल रहे। उन्होंने 45.11 सेकेंड का समय निकाला। इस तरह अनस केवल 0.20 सेकेंड से चूक गए।
मां के हौसले ने अनस को बढ़ाया आगे
भारत की तरफ से ओलंपिक में प्रतिभाग कर चुके मोहम्मद अनस का जन्म केरल के कोल्लम जिले के निलामेल में हुआ था। तिरूवनंतपुरूम से इनके गांव का सफर महज एक किलोमीटर का है। अनस जब 10वीं क्लास में थे तब ही उनके पिता याहिया का हार्ट अटैक से निधन हो गया जो सेल्समैन थे। अनस के पिता भी एथलीट रह चुके थे। हालांकि पिता नहीं चाहते थे कि वे एथलीट बने लेकिन उनकी मां शीना ने हमेशा उनकी हौसला अफजाई की। उनकी मां ने इंडियन एक्सप्रेस को 2016 में साक्षात्कार देकर बताया था कि एक धावक होने के नाते मैं जानती थी कि अनस के खून में दौड़ना है। उन्होंने बताया कि मैं बचपन से उसके खेल के लिए प्रोत्साहन देती रहती थी। यहां तक कि जब उसे दूर किया गया था तब भी मुझे लगा कि बेटे के भविष्य के लिए अच्छा था।
लॉन्ग जम्पर बनना चाहते थे अनस

अनस की रूचि शुरू ही लॉन्ग जम्पर में थी वे यही बनना चाहते थे, लेकिन आज वे सबसे तेजी से शुरुआत करने वाले धावकों में शुमार माने जाते हैं। अनस की तेज शुरुआत के पीछे उनके पिता याहिया की एक कहानी है। कोच्चि में एक दौड़ में याहिया पहली बार दौड़ में हिस्सा ले रहे थे। जूते न होने के बावजूद याहिया ने दौड़ में हिस्सा तो ले लिया लेकिन उन्हें मालूम ही नहीं था कि बंदूक की आवाज का मतलब था कि दौड़ शुरू हो गई है। गोली चली और तेज आवाज भी हुई लेकिन अनस के पिता को छोड़ कर सारे धावकदौड़ पड़े थे। इस कहानी का अनस पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे दौड़ शुरू करने की घोषणा करने वाली आवाज के प्रति काफी संवेदनशील हो गए। अनस के अनुसार मुझे सिब्बी सर ने सलाह दी थी वे 400 मीटर की रेस में कोशिश करें। उनकी सलाह के बाद मैंने इस क्षेत्र में प्रयास शुरू किया था।
कोठमंगलम के स्कूल में निखरे अनस
कोच्चि के निकट स्थित कोठमंगलम के द मर बेसिल स्कूल में उसका दाखिला कराया दिया गया था। उनकी मां शीना के अनुसार यह स्कूल एथलेटिक्स खेलों के लिए पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध था। यही से अनस के कौशल को स्वीकारा गया और उसके सपनों को पूरा करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि जब हमने अपने बच्चे को स्कूल में छोड़ा था यह दौर हमारे बहुत ही मुश्किल था। उसके कोच अंसार जी ने उसके बहुत अच्छी ट्रेनिंग देने के लिए कोठमंगलगम स्कूल की सलाह दी थी।
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