मछली पकड़कर चलता था परिवार का खर्च, अब शूटिंग में जीत रहीं भारत के लिए पदक

गुदड़ी के लाल तूने कर दिया कमाल वाली कहावत मध्यप्रदेश की उस बेटी पर बिल्कुल सटीक बैठती है जो कभी मछली पकड़ा करती थी, लेकिन जब हाथों में बंदूक आई तो इतिहास रच दिया।
हम बात कर रहे हैं मनीषा कीर की। मनीषा कीर के पिता झीलों में मछली पकड़ने का काम करते हैं और उनका हाथ मनीषा भी बंटाती थी। लेकिन जब उसके हाथों में बूंदक आई तो फिर उसने वह साबित कर दिखाया कि अगर हौसला हो तो अभावों में रहने के बाद भी मुकाम को पाया जा सकता है। मनीषा कीर जिस जगह से आती है वहां पर शूटिंग जैसे मंहगे खेल के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है, लेकिन इसके बाद भी मनीषा अपनी जिद पर अड़ी रही और अकादमी में चयनित होकर अपने सपने को साकार कर दिखाया।
आज वे भारत के लिए अन्तरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में पदक जीतकर मध्यप्रदेश का नाम ऊंचा कर रही है। मनीषा ने यह साबित कर दिखा कि गरीबी और मुफलिसी के बावजूद कुछ करने की चाहत रखने वाले अपनी मंजिल ढूंढ ही लेते हैं। मनीषा बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं। भोपाल से सटे गोरागांव में मनीषा का घर है। उनके पिता कैलाश कीर बड़ी झील के गोरेगांव वाले हिस्से में मछली पकड़ने का काम करते हैं। साथ-साथ सिंगाड़े की खेती भी करते हैं। मनीषा अकादमी में प्रवेश से पहले अपनी चार बहनों और तीन भाईयों के साथ गोरेगांव में अपने पिता के काम में हाथ बंटाती रही हैं।
16 साल की उम्र में जीता था अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में गोल्ड

16 साल की उम्र में देश के लिए सोना जीतने वाली मप्र राज्य अकादमी भोपाल की मनीषा कीर तीन साल पहले बड़ी झील में पिता के साथ मछली पकड़ने का काम करती थीं और अब हैं अंतरराष्ट्रीय शूटर। मनीषा ने 2016 में फिनलैंड में आयोजित हुई अंतरराष्ट्रीय शूटिंग में स्वर्ण पदक जीता था। यह उनके करियर का पहला स्वर्ण पदक है। इससे पहले वह राष्ट्रीय शूटिंग में नौ स्वर्ण जीत चुकी हैं। अभी मार्च माह में सिडनी में हुए आईएसएसएफ जूनियर शूटिंग वर्ल्ड कप में इस युवा शूटर ने रजत पदक जीता था। ट्रेप शूटिंग विधा में निशाना साधने वाली मनीषा ने बताती हैं कि मछली का मूवमेंट जानने के लिए शांत मन से अंदाजा लगाना होता है कि मछली किर है। मनीषा ने यह महारत अपने पिता से सीखी है, जो करियर में काफी मददगार साबित हो रही है. मनीषा कहती हैं, 'पिता के इस अनुभव का फायदा यह रहा कि शांत चित से निशाना लगाती हूं।'
2013 तक नहीं जानती थी कैसी होती है बंदूक
2013 से पहले मैं यह नहीं जानती थीं कि बंदूक कैसी होती है। इसके बाद जुलाई 2013 में मप्र राज्य शूटिंग अकादमी में प्रवेश मिलने के बाद पहली बार मैंने बंदूक हाथों में ली। इन ढाई-तीन साल में ही मेरा खेल अंतरराष्ट्रीय स्तर तक का हो गया है। मनीषा फिलहाल मध्य प्रदेश खेल विभाग की शूटिंग एकेडमी में ट्रेनिंग ले रही है। ट्रेप शूटिंग में क्ले बर्ड पर निशाना लगाना होता है, जो थोड़ा कठिन काम है। इसी मुश्किल को चार बार के ओलंपियन और कोचिंग कर रहे मनशेर सिंह ने इस मुश्किल को आसान कर दिया। मनशेर सिंह ने उसे 'उड़ती चिड़िया' पर निशाने साधने में माहिर कर दिया है।
बहन चाहती थी कि मनीषा बने रोइंग खिलाड़ी
मनीषा की दूसरे नंबर की बहन रोइंग की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी है और वे चाहती थी कि उनकी बहन भी रोइंग की खिलाड़ी बने क्योंकि दोनों ही नाव चलाते-चलाते हुए आगे बड़ी थी। सोना बताती हैं कि मनीषा हम पांच बहनों में सबसे छोटी है। चूंकि पानी से जुड़ा हुआ हमारा व्यवसाय है, इसलिए तैरना सभी अच्छे से जानते हैं। सो वाटर स्पोर्ट्स में रूचि होना स्वाभाविक था।मुझे जैसे ही रोइंग अकादमी में प्रवेश मिला, मैंने मनीषा भी इस खेल में लाने की कोशिश की। उसे सलाह भी दी। लेकिन वह नहीं मानी और शूटिंग में जाने की जिद पर अड़ गई। चयन ट्रायल का जब वक्त आया तो उसने शूटिंग का ही फार्म भरा और पहली ही बार में वह अकादमी के लिए चयनित हो गई। महज दो-तीन साल में ही अंतरराष्ट्रीय शूटर बनने के साथ-साथ देश के लिए सोना जीतना भी शुरू कर दिया।
अब भी बंटाती है परिवार का हाथ

शूटिंग में भारत के लिए कीर्तिमान स्थापित करने वाली मनीषा के पास अब बहुत ही कम समय होता है, लेकिन इसके बाद भी अपने परिवार का हाथ बटांती है। वह छुट्टी में अभी भी पिता के साथ मछली पकड़ने पहुंच जाती हैं। मनीषा पुराने दिनों को याद करते हुए विस्तार से बताती हैं कि मछली फांसने के लिए कैसे जाल डालती थीं। वह कहती हैं इस काम में रोज-रोज सफलता भी नहीं मिलती थी, कइयो दिन तक खाली हाथ भी लौटना पड़ता था। उन्हें सिंगाडे़ की खेती की भी अच्छी जानकारी है। मनीषा अकादमी में प्रवेश के बाद अब टीटी नगर स्टेडियम में ही रहती हैं। वह कैंप के चलते तीन-तीन महीने भोपाल से बाहर भी रहती हैं, लेकिन अपने घर जाने का मौका छोड़ती भी नहीं हैं।
2020 में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने का है सपना
अभावों के बीच में अपने मुकाम को पाने के लिए संघर्ष करते हुए भारत के लिए मेडल जीतने वाले मनीषा कीर का सपना अब ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतने का है। मप्र राज्य शूटिंग अकादमी की इस खिलाड़ी ने कहा कि उनका लक्ष्य 2020 ओलिंपिक में स्वर्ण जीतना है। वह इसके लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं और अगले दो वर्षों तक उसी लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ती रहेंगी। अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में स्वर्ण जीतने से उन्हें काफी हौसला मिला। उन्होंने कहा कि मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं अपने 2020 टारगेट में सफल हो जाउंगी।
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