भारत के प्रवीण कुमार ने पेरिस पैरालंपिक में ऊंची कूद टी64 में गोल्ड मेडल जीता। प्रवीण ने डेढ़ महीने पहले संकल्प लिया था कि पेरिस में वह गोल्ड जीतकर ही लौटेंगे। उन्होंने अपना संकल्प पूरा किया। वह भारत के दूसरे खिलाड़ी बन गए जो पैरालंपिक में ऊंची कूद स्पर्धा में स्वर्ण पदक लेकर आए हैं। उन्होंने पेरिस में 2.08 मीटर ऊंची कूद लगाकर पेरिस में रिकॉर्ड छठा स्वर्ण पदक देश की झोली में डाला।
स्कूल स्तर पर सामान्य बच्चों के साथ स्पर्धा में प्रथम स्थान लाकर सबको चौंकाया
ग्रेटर नोएडा के गौतमबुद्धनगर जिले में गोविंदगढ़ गांव के किसान परिवार में जन्में प्रवीण कुमार के पैरा एथलीट बनने का सफर चुनौतियों से भरा रहा। प्रवीण का एक पैर जन्म से ही छोटा है। उनके पिता अमरपाल सिंह ने बचपन में चिकित्सकों को दिखाया तो पता चला कि प्रवीण के कूल्हे की हड्डी में दिक्कत है जिसके कारण वह जीवन भर सामान्य तरीके से नहीं चल पाएंगे। यह बात सुनकर नलकूप विभाग में कार्यरत उनके पिता अमरपाल और माता निर्दोष देवी के ऊपर मानो बज्रपात हो गया हो। प्रवीण जब बड़े हुए तो उन्हें उंची कूद से विशेष लगाव हो गया। पिता अमरपाल अपने बेटे के अंदर खेल के प्रति इस जुनून को भांप गए। उन्होंने प्रवीण के स्कूल शिक्षक से बात की तो पहले तो प्रवीण की दिव्यांगता को नकारात्मक अर्थों में लेते हुए स्कूल ने मना कर दिया। मगर अमरपाल ने हार नहीं मानी और उसे खिलाने के लिए लगातार प्रयासरत रहे। आखिर प्रवीण को एक बार स्कूल स्तर पर खेलने का मौका मिल ही गया। तब उन्होंने सामान्य बच्चों के साथ खेलते हुए पहला स्थान हासिल कर सभी को स्तब्ध कर दिया। इस तरह प्रवीण के लिए खेल की सुनहरी यात्रा का आरंभ हुआ।
सफलता की सीढ़ी
स्कूल ने 2016 में प्रवीण को स्कूल और जिला स्तर पर खिलाया। इन प्रतियोगिताओं में लगातार जीत हासिल करने के बाद प्रवीण ने 2017 में छत्तीसगढ़ के रायपुर में आयोजित 22वें सीबीएसई क्लस्टर और उसके बाद नेशनल एथलेटिक्स मीट में स्वर्ण पदक हासिल किया। इसमें प्रवीण ने 1.84 मीटर की छलांग लगाई।
पहले टेस्ट में ही प्रवीण ने जीता कोच का दिल
पिता अमरपाल ने बताया कि आठ साल पहले प्रवीण स्कूल की तरफ से गाजियाबाद में एक प्रतियोगिता में हिस्सा लेने गए थे। वहां उनकी खेल प्रतिभा को देखते हुए किसी ने दिल्ली में रहने वाले कोच डॉ. सतपाल से मिलने को कहा। कोच डॉ. सतपाल के पहले टेस्ट में ही 1.80 मीटर ऊंची रस्सी कूद प्रवीण ने उनका दिल जीत लिया था। इसके बाद से वह लगातार दिल्ली में रहकर प्रशिक्षण ले रहे हैं।
खेलो इंडिया से मिला और निखरने का मौका
2018 में प्रवीण को स्कूल की तरफ से ‘खेलो इंडिया’ के तहत विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए भेजा गया जहां उन्होंने बेहतरीन प्रदर्शन किया। वर्ष 2019 में दुबई में हुई ‘वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप’ में जीत के साथ ही प्रवीण का चयन टोक्यो पैरालंपिक के लिए हुआ था। पैरालंपिक में रजत जीतने के बाद वह स्टार बन गए।
जीत के बाद सबसे पहले मां-पिता से की बात
पेरिस पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद सबसे पहले प्रवीण ने गांव अपने माता-पिता से बात की। बेटे की स्वर्णिम सफलता ने माता पिता को गौरवान्वित कर दिया, दोनों की खुशी की कोई सीमा नहीं थी। टोक्यो पैरालंपिक से पहले करीब डेढ़ महीने तक प्रवीण कोरोना से संक्रमित रहने के कारण बिस्तर पर थे। कोरोना से ठीक होने के बाद उन्होंने खूब मेहनत की और टोक्यो पैरालंपिक में रजत पदक जीता।
विभिन्न चुनौतियों को पार कर बदला पदक का रंग
पेरिस पैरालंपिक खेलों से ठीक तीन महीने पहले प्रवीण विश्व चैंपियनशिप के दौरान ‘ग्रोइन’ की चोट से जूझ रहे थे जिसके कारण वह तीसरे स्थान पर रहे लेकिन पेरिस का टिकट कटाने में सफल रहे। कोच डॉ. सत्यपाल सिंह ने चोट की समस्या का पता लगाने के लिए तुरंत एमआरआई कराने को कहा था। कोच के प्रयासों और हार नहीं मानने के जज्बे के कारण प्रवीण 15 दिनों के अंदर पैरालंपिक के लिए तैयारी करने लगे। उनकी कड़ी मेहनत ने पैरालंपिक खेलों में उनके पदक का रंग का बदल दिया।
2019 विश्व चैंपियनशिप में अपनी हार से लिया सीख
प्रवीण कुमार 2019 विश्व चैंपियनशिप में चौथे स्थान पर रहकर चूक गए थे। तब उनकी उम्र 16 साल थी। मगर इस हार ने उनका हौसला और बढ़ा दिया और उन्होंने तभी तय कर लिया था कि पैरालंपिक में पदक लाकर ही दम लेंगे।
पैरालंपिक इतिहास में भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
पेरिस में एशियाई रिकॉर्ड बनाने वाले प्रवीण ने 2021 के टोक्यो पैरालंपिक में भी तीसरे प्रयास में 2.06 मीटर की छलांग लगाकर एशियाई रिकॉर्ड अपने नाम किया था। तब वह 18 साल के थे एवं इस उम्र के इकलौते भारतीय पदक विजेता थे।प्रवीण के स्वर्ण पदक जीतते ही भारत ने टोक्यो पैरालंपिक का अपना स्वर्ण पदकों का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया। पेरिस में भारत को अब तक छह स्वर्ण पदक मिल चुके हैं जबकि टोक्यो में यह संख्या पांच थी। इसके अलावा प्रवीण ने भारत के पदकों की कुल संख्या 26 पहुंचा दी जो टोक्यो के पदकों के मुकाबले सात ज्यादा हैं। भारत फिलहाल 14वीं रैंक पर है। यह भारत का पैरालंपिक इतिहास में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।