आखिरी मौके में मैरी कॉम ने कर दिया कमाल, लोगों की आलोचना का दिया जवाब

इस तरह बॉक्सिंग के हर फार्मेट पर भारत के लिए पदक जीतने वाली मैरीकॉम के ताज में एक और नगीना लग गया। पांच बार वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब, ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल और एशियाड में गोल्ड मेडल पहले ही अपने नाम चुकी मैरीकॉम ने कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर यह साबित कर दिया कि अगर जुनून हो तो फिर उम्र बाधा नहीं बनती है।
खराब प्रदर्शन पर उठने लगे थे मैरीकॉम पर सवाल

महिला मुक्केबाजी को 2014 के ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में पहली बार शामिल किया गया था तब मैरीकॉम उन खेलों में हिस्सा नहीं ले पाई थीं। वह 2014 ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए क्वालिफाइ करने से चूक गई थी। वे महिला मुक्केबाजी के क्वालिफिकेशन टूर्नामेंट में पिंकी रानी से हार गई थी, हालांकि उन्होंने बाद में इंचियोन एशियाड में भी गोल्ड जीतकर खुद को साबित किया। ओलिंपिक में मेडल जीत चुकी मैरीकॉम के इस खराब प्रदर्शन पर सवाल उठने लगे थे कि अब उनकी उम्र हो गई है और उन्हें अब संन्यास ले लेना चाहिए। सिर्फ यही नहीं जब वे रियो ओलिंपिक के लिए भी क्वालिफाई नहीं कर पाई तो उनके ऊपर भी सवाल उठे। हालांकि इसके बाद उन्होंने वापसी की। 35 साल की उम्र में कुछ महीने पहले ही मेरी कॉम ने पाँचवा एशियन चैंपियनशिप गोल्ड मेडल जीता है और अब राष्ट्रमंडल खेलों में भी पदक अपने नाम किया है। लेकिन मैरी ने उसके चार साल बाद गोल्ड मेडल के साथ अपने जुनून, अपनी फिटनेस को साबित कर दिया। नॉर्थन आयरलैंड की क्रिस्टिना ओ हारा को मैरी ने जैसे ही हराया, कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज बन गई।
एशियाई खेलों में जीत चुकी है स्वर्ण पदक
राष्ट्रमंडल खेल में इसलिए उनसे स्वर्ण पदक की उम्मीद थी क्योंकि उनका पिछला रिकार्ड काफी बेहतर रहा है। मैरीकॉम 2014 के इंचियोन एशियाई खेलों और 2010 के ग्वांगझू एशियाई खेलों में क्रमश: स्वर्ण और कांस्य पदक जीत चुकी हैं। ‘मैग्निफिसेंट मैरी’ के नाम से मशहूर मैरीकॉम ने गत वर्ष एशियाई चैंपियनशिप में जबरदस्त वापसी करते हुए स्वर्ण पदक जीता था जो एशियाई चैंपियनशिप में उनका पांच साल बाद हासिल किया गया स्वर्ण था। राज्यसभा सांसद मैरीकॉम के लिए यह संभवत: आखिरी राष्ट्रमंडल खेल हो सकते हैं क्योंकि अगले राष्ट्रमंडल खेलों तक वह 39 वर्ष की हो जाएंगी। तीन बच्चों की मां मैरीकॉम भारतीय मुक्केबाजी में लीजेंड का दर्जा रखती हैं।
मैरीकॉम ने जीता करियर का 19वां मेडल
मैरी का यह 19वां मेडल है। जिसमें 14 मेडल तो गोल्ड ही है, इसके अलावा दो सिल्वर और दो ब्रॉन्ज मेडल शामिल है। पांच गोल्ड मैरीकॉम ने वर्ल्ड चैंपियनशिप और एशियन वीमन बॉक्सिंग चैंपियनशिप, 2014 इंचियोन एशियाड, एशियन इंडोर गेम्स, एशियन कप वीमन बॉक्सिंग और विच कप में मैरी के नाम गोल्ड है। वहीं 2001 में वर्ल्ड चैंपियनशिप , 2008 में एशियन वीमन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल और 2012 लंदन ओलिंपिक और 2010 एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल मैरी ने गले में पहना। उन्होंने 2010 ब्रिजटाउन (48 किग्रा), 2008 निन्गबो सिटी (46 किग्रा), 2006 नई दिल्ली (46 किग्रा), 2005 पोडोलोस्क (46 किग्रा) और 2002 अंतालया (45 किग्रा) में गोल्ड मेडल जीता था। मैरीकॉम 2012 लंदन ओलिंपिक में वुमेन्स 51 किग्रा कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल भी जीत चुकी हैं।
मोहम्मद अली से मैरीकॉम को मिली थी प्रेरणा

1 मार्च 1983 को मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में एक गरीब किसान के परिवार में जन्मीं मैरीकॉम ने 2001 में पहली बार नेशनल वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती थी। मैरी ने 2000 में अपना बॉक्सिंग करियर शुरू किया था। डिंको सिंह ने उन दिनों 1998 में एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीता था। वहीं से मेरी कॉम को भी बॉक्सिंग का चस्का लगा। काफ़ी समय तक तो उनके माँ-बाप को पता ही नहीं था कि मेरी कॉम बॉक्सिंग कर रही है। बहुत से उतार-चढ़ाव के बावजूद खुद को न केवल स्थापित किया बल्कि कई मौकों पर देश को भी गौरवान्वित किया।
उन्होंने रिंग की दुनिया में कदम बढ़ाने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैरी कॉम को बचपन में टीवी पर मोहम्मद अली को मुक्केबाजी करते देख बॉक्सर बनने की प्रेरणा मिली। परिवार ने शुरू में विरोध किया। इसके बावजूद ने मैरी कॉम ने बॉक्सिंग की ट्रेनिंग शुरू की थी। गोल्ड मेडलों की चमक हासिल करने के लिए मैरीकॉम जी तोड़ कड़ी मेहनत करती हैं। मैरीकॉम को 'सुपरमॉम' के नाम से भी जाना जाता है। 2008 में इस महिला मुक्केबाज को 'मैग्निफिसेंट मैरीकॉम' की उपाधि दी गई। वह इस इवेंट में पांच गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली बॉक्सर बन गईं। उन्होंने ने अब तक विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में 13 स्वर्ण पदक अपने नाम किए है।
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