मां ने बुटीक चलाकर दिलाई ट्रेनिंग, अब CWG में सबसे ज्यादा पदक जीतने का बनाया रिकॉर्ड

मां द्वारा दूसरों को संवारता देख दिल्ली गर्ल यानि मनिका बत्रा का भी ख्वाब हिरोइन बनने का था। मनिका की खूबसूरती को देखकर सभी उन्हें मॉडिलिंग में करियर बनाने की सलाह भी देते थे। वहीं दूसरी तरफ टेबिल टेनिस में संवरते करियर को देख वह कुछ समझ नहीं पा रही थी, लेकिन अंतत: सभी के कहने पर मनिका ने टेबिल टेनिस को छोड़ने का फैसला कर लिया। लेकिन जल्द ही उन्हें बात समझ में आ गई कि माॅडलिंग में उनका भविष्य नहीं और उन्होंने टेबल टेनिस में अपना करियर में संवारना शुरू कर दिया।
मॉडलिंग में बढ़ते दबाव के चलते उन्होंने कॉलेज भी छोड़ दिया और टेबल टेनिस में ही पूरा फोकस किया। उनके इस फैसले की हमराह बनी उनकी मां और उन्होंने बेटी के कैरियर को संवारने के लिए बुटीक से मिलने वाली कमाई को मनिका की ट्रेनिंग में लगा दिया। आखिरकार मां की वर्षों की मेहनत रंग लाई और चार साल से टेबल टेनिस सीख रही मनिका ने इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स में इतिहास रच दिया। मनिका बत्रा ने फाइनल में सिंगापुर की मेंगयू को हराकर महिला एकल खिताब जीतकर इतिहास बनाया। इसके अलावा मौमा दास के साथ मिलकर महिला युगल और मिश्रित युगल में कांस्य पदक के अलावा महिला टीम का स्वर्ण पदक जीता।

चार साल की उम्र से सीख रही थी टेबल टेनिस
दिल्ली के नारायणा विहार की रहने वाली मनिका की मां सुषमा बत्रा बुटी चलाती है और वे बचपन से ही अपनी बेटी को स्टार खिलाड़ी बनाना चाहती थी, इसके लिए उन्होंने मनिका को महज चार साल की उम्र से ट्रेनिंग दिलाना शुरू कर दिया था। मनिका की के पिता गिरीश और मां सुषमा बत्रा ने बेटी की ट्रेनिंग को देखते हुए कई स्कूल बदल दिए थे, जीएस एंड मैरी कॉलेज में पढ़ते वक्त मॉडलिंग का ऑफर मिला था। लोगों ने उन्हें कहा भी था कि वे इस ओर अपना कॅरियर बना सकती है, लेकिन उन्होंने टेबल टेनिस में ही अपनी मेहनत जारी रखी। मनिका ने कहा, "खुदकिस्मत हूं कि मेरे खेल की वजह से ही मुझे कॉमनवेल्थ गेम्स में लीड करने का मौका मिला और लीडर होने का रोल मैं अच्छे से निभा सकी। सिंगापुर की दोनो टॉप रैंक की प्लेयर को हराना सुखद अनुभव रहा। लेकिन, डबल्स में उनसे ही मिली हार से जरूर थोड़ी निराशा हुई।" वही उनकी मां सुषमा बत्रा ने कहा कि मुझे खुशी है कि उसने देश का नाम ऊंचा करने के लिए सही रास्ता चुना।
डीयू से हटने का फैसला रहा सही
महज चार साल की उम्र से ही टेबल टेनिस खेलने वाली मणिका ने 12वीं के बाद दिल्ली विश्वद्यालय में एडमिशन लिया, लेकिन पढ़ाई के चलते वो अपने खेल पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रही थी। आखिर में मणिका ने डीयू से हटने का फैसला किया और पूरी तरह से अपने खेल पर फोकस हो गई हैं। मणिका ने बताया कि मैंने टेबल-टेनिस को हमेशा से ही पसंद किया है। मैंने अपने अच्छे प्रशिक्षण के लिए कई बार स्कूल भी बदले और इसी वजह से मैंने दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों में से एक को छोड़ने का फैसला लिया। फिर मैं हंसराज मॉडल स्कूल चली गई क्योंकि मेरे कोच वहीं थे। बाद में मैं जीशस-मेरी कॉलेज में गई, लेकिन वहां मैं केवल उतना ही कॉलेज जाती थी कि मैं परीक्षाओं में बैठ सकूं, क्योंकि मैं ज्यादातर यात्रा और ट्रेनिंग में व्यस्त रहती थी।
जर्मन में ली ट्रेनिंग और सफल रही मनिका
गोल्ड कोस्ट में मेडल जीतने की भूख में उन्होंने सब कुछ दांव पर लगा दिया था। रियो ओलिंपिक में मिली हार के बाद से ही उन्होंने गोल्ड कोस्ट की ट्रेनिंग शुरू कर दी थी। मणिका ने बताया कि गोल्ड कोस्ट में मेडल जीतने के लिए जर्मनी में एक महीना स्पेशल ट्रेनिंग हासिल की। वहां पर गेम में तेज सर्विस, स्मैश और गेंद कंट्रोल को बेहतर करने का अभ्यास किया। इस ट्रेनिंग का फायदा ही उन्हें इस कॉमनवेल्थ गेम्स में मिला है। उनके खेल में निखार लाने में अहम भूमिका राष्ट्रीय कोच मेसिमो कांस्टेनटाइन की भी रही। मेसिमो जानते हैं कि सिंगापुर की खिलाड़ी विश्व स्तरीय हैं और उनकी स्पीड और स्पिन से पार पाना आसान नहीं है। इसलिए उन्होंने बत्रा को लंबे दानों वाली रबड़ लगे रैकेट से खिलाना शुरू किया।
कोच संदीप गुप्ता ने मनिका को निखारा
मनिका के कैरियर में निखार उनके कोच संदीप गुप्ता के पास ट्रेनिंग करने के बाद आया। उन्होंने मनिका को स्टार खिलाड़ी बनाया। 2011 में चिली ओपन के अंडर-21 वर्ग में रजत पदक जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलताएं पाने का शुरू हुआ सिलसिला कॉमनवेल्थ गेम्स में दो स्वर्ण सहित चार पदक जीतने तक पहुंचा है। मणिका ने 2011 में चिली ओपन में अंडर-21 आयु वर्ग में सिल्वर मेडल हासिल किया। 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स क्वार्टरफाइनल तक पहुंची। कॉमनवेल्थ टेबल टेनिस चैंपियनशिप में 3 मेडल जीते। 2016 साउथ एशियन गेम्स में 3 गोल्ड देश को दिलाए। वुमेन्स डबल्स, मिक्स्ड डबल्स और टीम में ये गोल्ड हासिल किए। वे रियो ओलिंपिक में पहले ही राउंड में हार गईं थीं। मणिका वर्ल्ड टेबल टेनिस चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल तक पहुंचने वाली भारत की पहली महिला प्लेयर बनीं। वे इस समय भारत की नंबर वन टेबल टेनिस प्लेयर हैं।
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