मिलिए उस महिला से, जिसने बदल दी गोल्ड मेडलिस्ट मीराबाई व संजीता चानू की ज़िंदगी

दिल्ली की नजरों से भले ही इंफाल की घाटी दूर रही हो, लेकिन इस घाटी में रहने वाले लोग अपने क्षेत्र को पूरे भारत में छा जाने के लिए हमेशा ही आगे बढ़ाते रहे हैं। इसका माध्यम बना है खेल। जी हां पूर्वोत्तर की इस घाटी से इस समय एक से बढ़कर एक खिलाड़ी नई नई उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं। चाहे वह बॉक्सिंग में मैरीकॉम हो, जिमनास्टिक में दीपा कर्माकर या फिर अब वेटलिफ्टर मीराबाई चानू व संजीता चानू।
इन बेटियों ने पूर्वोत्तर भारत को एकल खेलों में खास पहचान दी है। इससे भी बड़ी बात यह है कि बेटियों को प्रेरणा अपने ही यहां के लोगों से मिली। यह बात ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में चल रहे 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली मीराबाई चानू और संजीता चानू ने भी कहीं। जब उनसे पूछा गया कि आपको खेल की प्रेरणा कहा से मिली, तो उन्होंने कहा कि हमारी आइकन 2006 के कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली कुंजरानी देवी है। जी हां वही कुंजारानी देवी जिन्होंने भारत की वेटलिफ्टिंग को नई पहचान दिलाई। 38 की उम्र में उन्होंने मेडल जीतकर ऐसा कर दिखाया शायद ही ऐसा आज के समय में संभव नहीं है। पीटी ऊषा को आदर्श मानने वाली पलोडियम पर पहुंचकर भारत के लिए 50 से अधिक पदक जीते। उन्होंने खेल में मणिपुर को एक नई पहचान दिलाई।
राष्ट्रमंडल खेल में है पहली पदक विजेता
बचपन से ही खिलाड़ी बनने का सपना देखने वाली कुंजारानी का जन्म 1 मार्च 1968 को हुआ था। मणिपुर में जन्मी कुंजरानी देवी का पूरा नाम नामीराक्पम कुंजारानी देवी है, कुंजारानी की खेलों के प्रति रुचि बचपन में ही जागृत हो गई थी जब वह इम्फाल के सिंदम सिंशांग रेजीडेंट हाईस्कूल में 1978 में पढ़ती थीं। उन्होंने, इम्फाल के महाराजा बोधचन्द्र कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया। कुंजारानी देवी ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर 50 से अधिक पदक जीत चुकी हैं। 1995 में नौरू में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में वह भारत की प्रथम स्वर्ण पदक विजेता बनी थीं और उन्हें उस वर्ष विश्व रैंकिंग में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था । यद्यपि बाद में वह फिसल कर तीसरे स्थान पर चली गई थीं। कुंजारानी अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर लगभग 60 से अधिक पदक प्राप्त कर चुकी हैं। वह सेन्ट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स में असिस्टेंट कमांडेंट जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं। उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें 1990 में ‘अर्जुन पुरस्कार’, 1995 में ‘राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड’ तथा 1996 में ‘के.के. बिरला खेल अवार्ड’ प्रदान किया जा चुका है ।
कुंजारानी पर भी लोग मारते थे ताने
आज भले ही कुंजारानी सबके लिए आदर्श बनी हो लेकिन कभी उन्हें अपने ही समय में खेल की सुविधाओं में अभाव से कहीं ज्यादा अपने ही समाज के लोगों से मुकाबला करना पड़ा था। वह अपने पुराने दिनों की याद ताजा करते हुए अक्सर बताती हैं- “जब मैंने भारोत्तोलन शुरू किया तब मणिपुर में लोग मुझ पर ताने कसते थे। मेरा मजाक उड़ाते थे। लेकिन मेरा इरादा पक्का था कि मुझे अपना अलग मुकाम बनाना है और देश के लिए अन्तरराष्ट्रीय खेल मंच पर गौरव अर्जित करना है।” आज कुंजारानी उसी घाटी की बेटियों की आदर्श बनी हुई है। कुंजारानी की खेलों के प्रति रुचि बचपन में ही जागृत हो गई थी जब वह इम्फाल के सिंदम सिंशांग रेजीडेंट हाईस्कूल में 1978 में पढ़ती थीं।
कुंजारानी यदि भारोत्तोलक न होती तो हॉकी या फुटबाल की खिलाड़ी अवश्य होतीं। वह बचपन में इन दोनों ही खेलों को खेलती थीं। लेकिन जब थोड़ी बड़ी हुई तो उन्हें अहसास हुआ कि ये दोनों तो टीम खेल है और यदि इनके बजाय वह व्यक्तिगत स्पर्धा वाले खेल खेले तो ज्यादा अच्छा रहेगा क्योंकि व्यक्तिगत स्पर्धा में आप अपनी मेहनत और लगन से सफलता का मुकाम हासिल कर सकते हैं। अत: उन्होंने वेटलिफ्टिंग को अपना क्षेत्र चुना। लेकिन जब वेटलिफ्टिंग से उन्होंने नाता जोड़ा तो उन्हें अपने रिश्तेदारों और इम्फाल के अड़ोसी पड़ोसियों से कटु टिप्पणियां सुनने को मिलीं। लोग कहते- ”लड़की है और लड़कों का खेल खेलती है, ये तो मर जाएगी।” ऐसी टिप्पणी सुनकर कुंजारानी का मन और अधिक कड़ी मेहनत करने के लिए उत्साहित हो उठता था। उनके अंदर अपने देश को विश्व स्तर पर ख्याति दिलाने की प्रेरणा और भी जीवंत हो उठती थी।
भारत की पहली अंतर्राष्ट्रीय महिला वेटलिफ्टर
भारत में साल 1935 में वेटलिफ्टिंग खेल के तौर पर शुरू हुआ। मगर महिलाओं को पहली बार वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेने का मौका 1989 में मिला था। मणिपुर की एक छोटी सी लड़की थी। कुल 21 साल की उम्र और 4 फुट 8 इंच के कद के साथ देश को नई ऊंचाई पर लेकर जा रही थी । कुंजरानी ने इस चैंपियनशिप में कुल 3 सिल्वर मैडल जीते, इसके बाद लगातार 7 सात साल तक वो वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेती रहीं और कोई न कोई मैडल लाती रहीं। खिलाडियों की लिस्ट में कुंजरानी को चौथी पोज़ीशन मिली इस लिस्ट में मिल्खा सिंह, पीटी ऊषा जैसे सर्वश्रेष्ठ नाम शामिल थे। ओलंपिक में मैडल न मिलने का सपना तो टूट गया मगर इस एथलीट ने अपने लड़ने का जज़्बा नहीं छोड़ा। 2006 के मेलबर्न कॉमनवेल्थ में हिंदुस्तान के लिए टूर्नामेंट का पहला गोल्ड मैडल जीता और 2006 की इस जीत के लिए भारत सरकार ने उन्हें 2011 में पद्मश्री से सम्मानित किया।
कुंजारानी की उपलब्धियां
1987 में उन्होंने नए राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किए ।
1989 में शंघाई में हुए खेलों में उन्होंने एक रजत व दो कांस्य पदक जीते |
1990 में बीजिंग में हुए एशियाई खेलों में कांस्य पदक प्राप्त किया |
1990 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया |
1991 में 44 किलो वर्ग में उन्होंने 3 रजत पदक प्राप्त किए |
1992 में थाईलैंड में तथा 1993 में चीन में वह दूसरे स्थान पर रहीं |
1994 में हिरोशिमा में उन्होने कांस्य पदक जीता |
1994 में पुणे में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण प्राप्त किया |
दक्षिण कोरिया में 1994 में कुंजारानी दो स्वर्ण व एक कांस्य पदक जीतने में सफल रहीं |
1995 में नौरु में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में प्रथम भारतीय स्वर्ण पदक विजेता होने का गौरव प्राप्त किया |
1995 में वह विश्व रैंकिंग में प्रथम स्थान पर पहुंची |
1995 में उन्हें ‘राजीव गांधी खेल रत्न’ पुरस्कार प्रदान किया गया |
1996 में वह जापान में कांस्य पदक जीतने में सफल रही |
1996 में कुंजारानी को के.के. बिरला पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया |
2002 में मानचेस्टर में उन्होंने तीन स्वर्ण पदक जीते |
2006 में मेलबर्न राष्ट्रमंडल खेलों में शानदार प्रदर्शन करके 48 किलो वर्ग का ‘क्लीन एंड जर्क’ में नए रिकार्ड के साथ स्वर्ण पदक प्राप्त किया |
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