लड़कों को फुटबाल खेलना सिखा रही है यह कश्मीरी लड़की

कश्मीर के हालात किसी से छिपे नहीं हैं, कुछ दिनों पहले लड़कियों द्वारा पत्थरबाजी की खबरें सोशल मीडिया पर देखने को मिलीं। इसके बाद कहा जाने लगा इस काम में अब वहां के भ्रमित युवाओं के साथ युवतियां भी शामिल हो चुकी हैं। लेकिन ये कहानी आपको सुकून देगी, क्योंकि कश्मीर की केवल वही तस्वीर नहीं है जो हम और आप सोशल मीडिया पर देख रहे हैं।
यह कहानी है, एक ऐसी लड़की की जो अपने शौक और जुनून की बदौलत आज कश्मीर की पहली महिला फुटबाल कोच बन चुकी है। यही नहीं वो लड़की बतौर कोच लड़कों को ट्रेनिंग दे रही है।
क्या है इस लड़की की कहानी
इस कश्मीरी लड़की नादिया निगहत को बचपन से फुटबॉल खेलने का शौक था इसलिये वह अक्सर लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थी। दूसरी ओर लड़कों को उसका साथ पसंद नहीं था क्योंकि लड़कों के साथी दोस्त उनको चिढ़ाते थे कि वे लड़की के साथ फुटबॉल खेलते हैं। लिहाजा उस लड़की ने लड़कों जैसा दिखने के लिये अपने बाल काट लिये लेकिन फुटबॉल खेलना जारी रखा।
कश्मीर के श्रीनगर इलाके में रहने वाली यह लड़की उसी इलाके में रहती है जहां एक ओर कुछ भटके हुए युवा सेना पर पत्थर बरसाते हैं तो दूसरी ओर यही लड़की अपने जैसे दूसरे लड़के-लड़कियों को फुटबॉल की कोचिंग देती है। घर वाले इस लड़की को प्यार से जिया जान कहते हैं लेकिन उस लड़की की पहचान कश्मीर की पहली फुटबाल महिला कोच के तौर पर है। नादिया निघात से प्रशिक्षण हासिल कर चुके दो युवाओं का चयन राष्ट्रीय स्तर पर अंडर 12 फुटबाल टीम के लिये हो चुका है। नादिया कहती है कि यह तो अभी शुरुआत है, मैं कश्मीरी फुटबाल की जब तक रंगत नहीं बदल देती तब कर उसे संतोष नहीं है।
नादिया का परिवार
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक तीन भाई बहनों में सबसे छोटी नादिया 11 साल की उम्र से प्रोफेशनल स्तर पर फुटबॉल खेल रही है। श्रीनगर के एक सरकारी स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई करने वाली नादिया को बचपन से ही फुटबाल खेलने का शौक था। अक्सर वह अपने घर के आंगन और सड़क पर लड़कों के साथ फुटबाल खेला करती थी। एक बार उसे अपने फुटबाल के साथी लड़कों के साथ श्रीनगर के अमर सिंह कॉलेज के कोच मोहम्मद अब्दुल्ला के साथ फुटबाल खेलने का मौका मिला। नादिया ने अपने पिता के सपोर्ट से अमर सिंह कॉलेज एकेडमी में फुटबॉल खेलना तो शुरू कर दिया लेकिन असली परेशानी उसके साथ तब शुरू हुई जब स्थानीय स्तर पर लोग उसके कपड़ों और लड़कों के साथ फुटबाल खेलने पर छींटाकशी करने लगे। तब लोग कहते कि ये खेल लड़कियों के लिए नहीं है। अगर कुछ करना ही है तो पढ़ाई करो।
माता-पिता का मिला पूरा सपोर्ट
हालांकि नादिया ने कभी ऐसी बातों की परवाह नहीं की क्योंकि उसको अपने माता-पिता का पूरा सपोर्ट था। फुटबाल से नादिया को इतना लगाव था कि वह कर्फ्यू के दौरान भी प्रैक्टिस के लिए जाया करती थी। जब कभी हालात ज्यादा ही खराब हो जाते तो वो घर के आंगन और कमरे में फुटबाल की प्रैक्टिस किया करती थी। अमर सिंह कॉलेज एकेडमी में 45 लड़कों के बीच नादिया अकेली लड़की थी, जो फुटबाल खेलती थी। नादिया बताती है कि एक के बाद एक मिल रही सामाजिक चुनौतियों का सामना करने के बाद भी इसका असर मैंने अपने खेल पर नहीं पड़ने दिया और मैं तेजी से अपने खेल में निखार लाती गई। यही वजह रही कि मैं 2010 और 2011 में जम्मू-कश्मीर के लिए राष्ट्रीय स्तर पर फुटबाल खेलने में सफल रही। वह कहती है कि तब टीम में ज्यादातर लड़कियां कश्मीर घाटी से हुआ करती थीं और टीम की कुछ ही खिलाड़ी जम्मू से थीं।
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...
