धनुर्विद्या का एकलव्य है झारखंड का आदिवासी लड़का, आर्चरी एशिया कप में जीता गोल्ड

झारखंड के जनजातीय परिवार में जन्मे गोरा हो ने बैंकॉक में आयोजित एशिया कप स्टेज आई आर्चरी में गोल्ड मेडल अपने नाम किया है। राजनगर टाउन के बालीजुडी नाम के जनजातीय गांव में रहने वाले गोरा की कहानी एकलव्य से कम नहीं है। उन्होंने भले ही द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर उसके सामने धनुर्विद्या न सीखी हो लेकिन तीर चलाना उन्होंने बिना किसी गुरू के अकेले ही सीखा।
गोरा ने ने बैंकॉक में आयोजित एशिया कप स्टेज आई आर्चरी मीट में गोल्ड मेडल अपने नाम किया है। इस मेडल को पाने में गोरा तीन सदस्यीय टीम का हिस्सा थे। गोरा ने अपने पार्टनर आकाश और गौरव के साथ मिलकर यह उपलब्धि हासिल की। इन तीनों खिलाड़ियों ने मंगोलिया को हराकर प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया।
गोरा ने जूनियर और सब जूनियर स्तर पर प्रादेशिक और नैशनल लेवल पर 100 से ज्यादा मेडल अपने नाम किए हैं। 16 साल के छोटे से समय में ही वह बहुत तेजी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छा चुके हैं। अब लोग उन्हें गोल्डन बॉय कहकर पुकारते हैं। यह (गोल्डन बॉय) उनका नया उपनाम बन चुका है। आर्चरी के जिन जानकारों ने भी गोरा को लक्ष्य पर निशाना साधते देखा है, वह मानते हैं कि निश्चित रूप से उनका अगला लक्ष्य तोक्यो ओलिंपिक 2020 ही होना चाहिए। धनुष और तीर से लक्ष्य भेदने की उनकी कला अद्भुत है।
गोरा की उपलब्धियों को देखते हुए राज्य सरकार ने उन्हें स्पेशल टैलंट माना और पिछले साल राज्य सरकार ने 2.70 लाख की कीमत का विशेष धनुष उपहार में दिया। लेकिन इसके बावजूद गोरा की चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। गोरा की इन उपलब्धियों से अब उसके परिवार को आस है कि गोरा की प्रतिभा उसके परिवार को गरीबी और दुर्भाग्य से बाहर निकालने का सहारा बनेगी।
गरीब किसान परिवार से संबंध रखने वाले गोरा 4 भाइयों में सबसे छोटे हैं। उनके 50 वर्षीय पिता खेरू हो पिछले 2 साल से लकवा का अटैक आने के बाद से खाट पर पड़े हैं। दो साल पहले 2016 में गोरा की मां का निधन हो गया था। अभी उसके तीनों बड़े भाई उसकी देखरेख करते हैं।
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...
