स्टेडियम में सोकर और जंगलों में प्रैक्टिस कर रेमंड बने MMA चैम्पियन
स्टेडियम में रहते हुए और जंगलों में प्रैक्टिस करते हुए फाइटर रेमंड जॉनी कुर्बाह ने राष्ट्रीय MMA चैम्पियनशिप 2014 में देश का नाम रोशन किया था। भारत में क्रिकेट में अलावा किसी और खेल में करियर बनाना सबसे मुश्कित काम माना जाता है। मगर शिलांग के फाइटर रेमंड जॉनी कुर्बाह ने अपनी इच्छाशक्ति के बलबूते देश का नाम रोशन करते हुए नेशनल एमएमए चैम्पियनशिप में जगह बना ली है।
वर्ष 1992 में शिलांग के मल्की में जन्मे रेमंड हमेशा ही फाइटिंग के खेलों में दिलचस्पी रखते थे। मार्शल आर्ट में उनकी दिलचस्पी उम्र के साथ ही परवान चढ़ने लगी। इस क्रम में उन्हें साल 2002 में कराटे की बारीकियां सीखनी शुरू कीं। वर्ष 2010 में उन्होंने मुआई थाई की फाइटिंग कला और साल 2014 में बॉक्सिंग व जीऊ-जित्सू का प्रशिक्षण प्राप्त किया। हालांकि, अभी भी उनका संघर्ष जारी है।
होटल जाने तक के नहीं थे रुपये
अपने संघर्ष के बारे में मीडिया को बताते हुए रेमंड कहते हैं कि वर्ष 2014 में वे बंगलुरू में आयोजित राष्ट्रीय एमएमए चैम्पियनशिप में भाग लेने पहुंचे थे। इसके लिए वह 48 घंटे पहले ही टूर्नामेंट के आयोजन स्थल पहुंच गए। मगर उनके पास वहां कहीं होटल लेकर रहने के लिए रुपये नहीं थे। ऐसे में उन्होंने स्टेडियम में ही रहना तय किया और इस तरह उन्होंने उस चैम्पियनशिप में भाग लिया।
अपनी कहानी बताते हुए रेमंड कहते हैं कि उन्होंने उस टूर्नामेंट में जीत हासिल की। उसके बाद उन्हें रुपये की कमी के चलते स्टेडियम में ही रात गुजारने के साथ ही टूर्नामेंट खत्म होने के साथ बगैर टिकट ही ट्रेन में सवार होकर लौटना पड़ा था। हालांकि, कोलकाता जासते समय उन्हें टीसी के हाथों काफी बेइज्जत होना पड़ा था। यहां तक की उन्हें ट्रेन से जबरन उतार तक दिया गया था। काफी मिन्नतें करने के बाद उन्हें ट्रेन में बैठने का मौका मिला।
दो बार मिला लॉस वेगास जाने का मौका मगर...
एमएमए चैम्पियनशिप जीतने के बाद धीरे-धीरे रेमंड की जिंदगी बदलने लगी। उन्हें लास वेगास में इंटरनेशनल मिक्स्ड मार्शल आर्ट फेडरेशन प्रतियोगिता में शामिल होने का न्योता मिला। भारत में छह फाइटर्स में से रेमंड भी एक थे। मगर कई विषमताओं को मात देने के बाद इस मकाम को पाने वाले वे इकलौते थे। मगर उनके पास इस टूर्नामेंट में शामिल होने के लिए 2.5 लाख रुपयों की जरूरत थी। फिर उन्होंने खेल मंत्रालय से मदद की गुहार लगाई। मगर उन्हें निराशा हाथ आई क्योंकि एमएमए भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन से सम्बद्ध नहीं है। वहीं, दूसरी बार जब उन्हें लास वेगास आने का न्योता मिला तो वे वीजा की समस्या के चलते एक बार फिर शरीक नहीं हो सके।
चंदा जमा करके पूरा किया सपना
अपनी खेल प्रतिभा को राह दिखाने के लिए इस खिलाड़ी ने शिलांग में चंदा जमा करके लोगों के दरवाजे-दरवाजे पर जाकर मदद की अपील की। इस बीच कइयों ने मदद का हाथ बढ़ाया तो कइयों ने ताने कसे। हालांकि, उनका सफर अब भी जारी है वे अपना फाइटिंग प्रशिक्षण केंद्र बनाने के साथ ही युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। उन्होंने अपनी प्रैक्टिस भले ही शिलांग के जंगलों में भटक कर की है मगर वह कभी भी दूसरे युवाओं को इतना संघर्ष करते नहीं देखना चाहते।
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