अलविदा मिल्खा सिंह: अधूरी रह गई 'फ्लाइंग सिख' यह ख्वाहिश, जानें क्यों नहीं हुई पूरी

'फ्लाइंग सिख' नाम से मशहूर भारत का परचम लहराने वाले महान धावक मिल्खा सिंह का शुक्रवार की रात को कोरोना से निधन हो गया। उन्होंने चंडीगढ़ के पीजीआई में 91 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत का नाम देश और दुनिया में ऊंचा करने वाले मिल्खा सिंह की एक ख्वाहिश अधूरी रह गई है। वे हमेशा चाहते थे कि मैं दुनिया छोड़ने से पहले भारत को एथलेटिक्स में ओलंपिक मेडल जीतते हुए देखना चाहता हूं। भारत के एथलीट ओलपिंक में रजत पदक तक है, लेकिन ओलपिंक में अभी तक यह सपना साकार नहीं हो पाया है।
अलविदा मिल्खा सिंह : आसान नहीं रहा 'फ्लाइंग सिख' सफर, बंटवारे का झेला था दर्द
वैसे, मिल्खा सिंह ने भारत का नाम देश और दुनिया में बहुत ऊंचा किया है। कामनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले वे पहले भारतीय थे। यही नहीं, व्यक्तिगत स्पर्धा में उन्होंने पहली बार गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था। अविभाजित पाकिस्तान में जन्मे 'फ्लाइंग सिख' ने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था। इसके साथ ही उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलो में भी स्वर्ण पदक जीता था। 1960 के रोम ओलंपिक खेलों में उन्होंने पूर्व ओलंपिक का कीर्तिमान भी तोड़ा था, लेकिन वे पदक नहीं जीत सकें थे। इस स्पर्धा में वे चौथे स्थापन रहे थे। इस दौरान उन्होंने ऐसा नेशनल कीर्तिमान बनाया, जो लगभग 40 साल बाद जाकर टूटा था।
अलविदा मिल्खा सिंह: पाकिस्तान से मिला था 'फ्लाइंग सिख' का खिताब

अपने करियर के दौरान 80 इंटरनेशनल स्पर्धाओं में भाग लिया था, जिसमें से उन्होंने करीब 75 रेस जीती। वह 1960 ओलंपिक में 400 मीटर की रेस में चौथे नंबर पर रहे। उन्हें 45.73 सेकंड का वक्त लगा, जो 40 साल तक नेशनल रिकॉर्ड रहा। मिल्खा सिंह की कामयाबी पर 1959 में भारत सरकार ने पद्म अवार्ड से सम्मानित किया था। इसके अलावा 2001 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड देने की घोषणा की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया था। इस महान धावक को अभी तक भारत रत्न जैसा सम्मान नहीं दिया गया।
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