WC दिलाने वाले मूक बधिर कप्तान ने खोली क्रिकेट एकेडमी, मिलेगी मुफ्त ट्रेनिंग

2005 में उन्होंने भारत के लिए मूक बधिर क्रिकेट का विश्व कप जीता, इस जीत के बाद मीडिया में मूक बधिर क्रिकेटर इमरान शेख की खबर आने के बाद उनके लिए मदद के हाथ उठ खड़े हुए। लेकिन कोई भी हाथ उनका सहारा नहीं बन सके, इसके बाद जिंदगी ने कुछ युं करवट बदली की उनको खाने के लाले पड़ने लगे।
अपने संघर्ष को बनाया हथियार
भारतीय क्रिकेट टीम की नीली जर्सी को हासिल करने में जब इमरान की राह में कई रोड़े आए तो सुनने में अक्षम इमरान ने तय किया कि वह ऐसी मुश्किलों से किसी और को गुजरने नहीं देंगे। इसी जज्बे से तैयार की गई इमरान की क्रिकेट अकादमी शुरू हो गई है। उन्होंने वासना-भायली रोड स्थित न्यू एरा स्कूल के साथ मिलकर डीफ क्रिकेट क्लब ऑफ बड़ौदा की स्कूल में ही अकादमी शुरू की है।
इमरान ने शुरू की अकादमी
इमरान कहते हैं, 'मैं हमेशा से ऐसे बच्चों को कोचिंग देना चाहता था जो अकादमियों की भारी फीस न भर सकते हों। जब मैं एक यंग क्रिकेटर के तौर पर ट्रेनिंग हासिल कर रहा था तब मैंने कई कठिनाइयों का सामना किया था। मुझे सिखाने के लिए कोच को अतिरिक्त मेहनत करने की आवश्यकता थी। लेकिन हर कोई ऐसा नहीं करना चाहता। इसलिए मैंने एक ऐसी अकादमी शुरू करने का फैसला किया जहां बोलने-सुनने में अक्षम बच्चों को क्रिकेट सिखाया जाएगा। उनमें भरपूर टैलंट है, बस मार्गदर्शन की जरूरत है। मैं नॉर्मल बच्चों को भी कोच करूंगा।'
आर्थिक चुनौतियों के सामने खड़े बुलंद हौसले
फंड की कमी होने के बाद भी इमरान इस अकादमी के जरिए मुनाफा कमाने के बारे में नहीं सोच रहे। इमरान खर्च चलाने के लिए सयाजी बाग के सामने स्प्राउट्स का स्टॉल लगाते हैं। वह बताते हैं, 'पहले मैं ओपी रोड पर मूंग की कचौड़ियां बेचता था। वहां वडोदरा नगर निगम की कार्रवाई के बाद मुझे वहां से हटना पड़ा। मैं पैसे कमाकर एक दुकान खोलना चाहता हूं।'
भारत को दिलाया था विश्व कप
इस साल की शुरुआत में 31 वर्षीय इमरान की कप्तानी में भारत की बधिर क्रिकेट टीम ने अपना पहला एशिया कप जीता था। 2005 में बधिर विश्व कप जीतने में इमरान का बड़ा योगदान था। वह अपने लगातार शानदार प्रदर्शन के कारण भारतीय टीम के कप्तान बने थे।
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