अलखपुरा गांव जहां हर दूसरे घर में है एक महिला फुटबाल खिलाड़ी

देश में अगर पुरूष और महिलाओं के लिंगानुपात की चर्चा की जाती है। तो सबसे पहले जिस राज्य का नाम आंखों के सामने आता है वो होता है हरियाणा। हरियाणा जैसे राज्य में पुरूषों की तुलना में महिलाओं की संख्या काफी कम है। पर इसके बावजूद हरियाणा के अलखपुरा गांव में कुछ ऐसा हो रहा है जो एक नई रोशनी लेकर आता है।
हरियाणा के इस अलखपुरा गांव में एक नई रोशनी फैल गई है। 2000 की आबादी इस गांव में जहां अधिकतर लोग किसान है तो वहीं करीब-करीब हर घर में एक महिला फुटबॉलर भी है।
अलखपुरा गांव में 300 महिला फुटबॉलर हैं। उनमें से 11 फुटबॉल खिलाड़ी खिलाड़ी देश और राज्य का विभिन्न आयु वर्गों में कई टूर्नामेंट में खेल चुकी हैं और पुरूस्कार भी जीत चुकी हैं।
वो भी लड़कों से कम नहीं हैं
अधिकतर सभी महिला खिलाड़ी यहां पर सफल फुटबॉल खिलाड़ी बनना चाहती हैं। साथ ही सभी अपनी आजीविका को भी सुधारना चाहती हैं। यह सभी खिलाड़ी चली आ रही परंपराओं को तोड़कर आगे बढ़कर दिखाना चाहती हैं कि वो भी लड़कों से कम नहीं हैं और अपने कंधों पर अपने परिवार की जिम्मेदारी को बाकायदा उठा सकती हैं।
यहां कि महिला फुटबॉलर खिलाड़ियों का हौसला इस कदर बुलंद है कि बातचीत में 18 वर्षीय पूनम शर्मा बताती है कि हम हर दिन प्रैक्टिस करते हैं और आंधी-बारिश हमें नहीं रोक सकते हैं।
सात साल की उम्र से ही फुटबॉल खेलने वाली पूनम शर्मा ने पिछले साल वियतनाम में हुए एशियन फुटबॉलर्स कंफेडरेशन अंडर 19 क्वालीफायर्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
अलखपुर गांव की महिला फुटबॉल खिलाड़ियों ने अंडर-14, अंडर-19 और राष्ट्रीय टीम में हरियाणा का प्रतिनिधित्व किया है। पिछले 10 सालों से इस खिलाड़ियों की मेहनत फुटबॉल मैदान में खेल के दौरान खूब निखरकर सामने आती है।
कैसे हुई अलखपुर गांव में इस फुटबॉल क्रांति की शुरुआत
साल 2002 की बात है, अलखपुर गांव में हर रोज की तरह एक साधरण दिन था। स्कूल के फिजिकल एजुकेशन के टीचर गोर्धन दास स्कूल में लड़कों को कबड्डी की प्रैक्टिस करवा रहे थे, तभी कुछ लड़कियां टहलती हुई उने पास आईं और बोली, हमभी खेलना चाहते हैं।
उन्होंने उन लड़कियों को खेलने के लिए फुटबाल दे दी और फिर उन लड़कियों की नई उड़ान आसमान की तरफ भर उठी।
लड़कियों के लिए खेलने का मैदान नहीं था। ऐसे में एक फुटबॉल मैदान के लिए गांव वालों ने सरकार से मदद मांगी। पर सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। गांव वालों में ऐसे में निर्णय किया कि वो इस मामले को खुद ही सुलझाएंगे और उन्होंने ऐसा कर दिखाया। उन्होंने सूखे हुए एक तालाब को एक नया रूप देते हुए लड़कियों के खेलने के लिए फुटबाल का मैदान तैयार कर दिया।
2000 गांव वालों ने 1.5 लाख रुपये का चंदा इकट्ठा किया
साल 2016 में अलखपुरा फुटबॉल क्लब के हिस्से एक और सफलता हाथ लगी। जब उसने पहली भारतीय महिला लीग आईडब्लूएल में खेला। इस टूर्नामेंट को आॅल इंडिया फुटबाल फेडरेशन ने करवाया था। लड़कियोंं का इस लीग में खेलना एक चुनौती थी क्योंकि उनके पास स्पांसर्स की कमी थी तो ऐसे में 2000 गांव वालों ने 1.5 लाख रुपये का चंदा इकट्ठा किया और इस क्लब को आईडब्लूएल में खेलने में मदद की।
इस टूर्नामेंट में उन्होंने क्षेत्रीय स्तर पर हुई क्वालीफॉयर्स में जीत हासिल की। पर मणिपुर की ईस्टर्न स्पोर्टिंग यूनियन के सामने वो सेमीफाइनल में चित्त हो गए। पर उनकी आइजॉल फुटबॉल क्लब के खिलाफ 6-2 से दर्ज की गई जीत ने अलखपुरा फुटबाल क्लब को लोगों के सामने एक नई पहचान दी।
अलखपुरा फुटबॉल क्लब की हेड कोच सोनिका बिजारानिया ने बताया कि अलखपुरा गांव में हर घर से कम से कम एक लड़की फुटबाल खेलती है। सोनिका खुद राष्ट्रीय स्तर पर हरियाणा का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
बच्चों का खेलना सिर्फ पैसों की कमी के चलते रूके नहीं
सोनिका बताती हैं कि यहां पर लड़कियों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अभी हमारे पास ट्रेनिंग की पूरी व्यवस्था नहीं है। पर इसके बावजूद लड़कियां काफी मेहनत करती हैं और वो सभी टैलेंटेड हैं। उनके माता—पिता जितना भी हो सकता है, उनकी मदद करते हैं और आगे बढ़ने में मदद करते हैं। कुछ माता-पिता 100 रुपये देते हैं तो कुछ 5000 रुपये तक देते हैं। पर वो चाहते हैं कि उनकी बच्चों का खेलना सिर्फ पैसों की कमी के चलते रूके नहीं।
हाल में ही हरियाणा सरकार ने वादा किया है कि वो 2 करोड़ रुपये गांव में खेल की सुविधाओं को और बेहतर बनाने के लिए देगी। साथ ही इस अलखपुरा गांव में एक नई रोशनी की उम्मीद इसलिए भी जगी है क्योंकि लड़कियों ने 50-60 लाख रुपये पहले ही स्कॉलरशिप में जीत लिए हैं।
अलखपुरा गांव में आई इस फुटबाल क्रांति ने गांव के लोगों के सोचने का नजरिया ही बदल दिया है। अब लोग नहीं चाहते हैं कि उनकी लड़कियां फुटबॉल खेलना छोड़कर शादी करें। अब देश के नक्शे में अलखपुरा गांव की एक नई पहचान है।
सुब्रतो कप और आईडब्लूएल खेल चुकीं अलखपुरा फुटबॉल क्लब की 19 वर्षीय ज्योति यादव कहती हैं कि अब लोग इस गांव को फुटबाल की वजह से जानते हैं। यह खेल ही अब हमारा जीवन है।
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