कमाल की लाइब्रेरी चलाती है ये महिला, फ्री में पढ़ने के साथ और भी सहूलियतें
किताबें पढ़ने के शौकीन लोग अब कम होते जा रहे हैं। जिन्हें पढ़ने का थोड़ा बहुत शौक भी है वे भी अब ऑनलाइन पढ़ना ही ज्यादा पसंद करते हैँ, लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जो चाहते हैं कि लोगों में किताबें पढ़ने की आदत हमेशा बनी रहे। पश्चिम बंगाल के दीर्जिलिंग से 36 किलोमीटर दूर नागरी फार्म चाय एस्टेट के एक घर के गेराज में आपको किसी बाइक या कार के बजाय ढेर सारी किताबें मिलेंगी।
ये गेराज एक ओपन लाइब्रेरी है। एक ऐसी लाइब्रेरी जहां न कोई आपको शांत रह कर पढ़ने के लिए कहेगा और न यहां से किताबें अपने घर ले जाने के लिए आपको लाइब्रेरियन से किसी कार्ड पर साइन करवाने होंगे। आप यहां बैठ कर किताबें पढ़ें या यहां से घर ले जाएं और पढ़कर वापस कर दें, आप चाहें तो उन्हें कभी वापस न भी करें, कोई फर्क नहीं पड़ता।
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ये जगह ‘द बुक थीफ ओपन लाइब्रेरी’ के नाम से जानी जाती है। ऑस्ट्रेलियाई लेखक मार्क्स जुसाक की किताब ‘द बुक थीफ’ के नाम पर इस लाइब्रेरी का नाम रखा गया। सृजना सुब्बा ने इस लाइब्रेरी को 2016 में शुरू किया था। हमेशा से किताबें पढ़ने की शौक़ीन रहीं सृजना सुब्बा दार्जीलिंग जिले के पोखरीबोंग गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल में एक टीचर हैं और साथ ही साथ, वे कवितायेँ भी लिखती हैं। बेटर इंडिया से बात करते हुए सुब्बा कहती हैं कि मार्क्स जुकास की इस किताब में मुख्य किरदार एक लड़की का है, जिसे पढ़ने का शौक है और वो जानती है कि लिखने और पढ़ने की ताकत दुनिया में बहुत कुछ बदल सकती है। पढ़ने के लिए वह किताबें चुराती है और पढ़ती है। वह कहती हैं कि इस किताब की कहानी द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसे पढ़कर मैंने सोचा कि अगर युवा पीढ़ी पढ़ने किताबों को अपना दोस्त बना ले तो दुनिया कितनी खूबसूरत हो सकती है।
सुब्बा बताती हैं कि बचपन से ही मेरा सपना था कि मैं एक लाइब्रेरी खोलूं ताकि बच्चों में पढ़ने की आदत बने। बच्चों को चीजों की सही जानकारी देना बहुत जरूरी है क्योंकि बचपन में सीखी गई बात हमेशा याद रहती है। वह कहती हैं कि इंटरनेट पर वैसे तो सारी जानकारी एक क्लिक पर मिल जाती है। पर यह जानकारी कितना सही है, इसका कोई तथ्य नहीं होता। बच्चों को अगर कोई प्रोजेक्ट भी बनाना होता है तो वे किसी किताब से उसका मैटर ढूंढने के बजाय गूगल करते हैं और मैं चाहती हूं कि ये आदत बदले।
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नागरी फार्म चाय एस्टेट में लगभग 20 गांव हैं और हर गांव में लगभग 40 परिवार रहते हैं। सुब्बा बताती हैं कि यहां कोई अच्छी लाइब्रेरी नहीं है। प्रशासन की तरफ से कई बार कोशिश भी हुई लेकिन कोई कोशिश कामयाब नहीं हुई। मैं नहीं चाहती थी हमारी आने वाली पीढ़ी लाइब्रेरी की कमी महसूस करे, इसलिए जब तक मैँ हूं मैं इस कोशिश में लगी रहूंगी।
सुब्बा ने लाइब्रेरी बनाने के लिए अपने गैराज का ही इस्तेमाल किया। इसे सजाने के लिए उन्होंने पुरानी जीप और बाइक के पार्ट्स यूज किए। पुराने टायरों को चमकीले रंगों से रंग कर उनमें बांस के टुकड़े लगाकर बैठने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उनके पुराने और खराब फ्रिज में किताबें स्टॉक की जाती हैं। सुब्बा बताती हैं कि इस पूरी लाइब्रेरी को वेस्ट मैटेरियल से बनाया गया है।
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इस लाइब्रेरी में कुछ तो सुब्बा की अपनी निजी किताबें हैं, तो कुछ दोस्तों और शुभ-चिंतकों की दान की हुई हैं। इंग्लिश और नेपाली में यहां 500 से भी ज्यादा किताबें हैं। यहां कोई भी आकर किताबें पढ़ सकता है। कुछ नेपाली लेखक भी हैं जो इस लाइब्रेरी में अपनी किताबों की एक कॉपी रखकर जाते हैं।
सुब्बा कहती हैं कि बच्चों को बहुत ही ध्यान से संभाला जाना चाहिए। मैंने बच्चों के लिए लाइब्रेरी में कोई नियम-कानून नहीं बनाए जैसे बाकी जगह होते हैं। शुरू में, बच्चे बहुत बार सभी किताबें फैला देते थे और शोर करते थे। पर उन्हें डांटने की जगह धीरे-धीरे सही और गलत का अहसास करवाया गया। आज यही बच्चे लाइब्रेरी का रजिस्टर खुद सम्भालने लगे हैं क्योंकि उनके लिए अब यह उनकी जगह है।
सुब्बा के परिवार ने भी उनका पूरा सहयोग किया है। वे बताती हैं कि उनके पति और पिता, दोनों ही उनका हर कदम पर साथ देते हैं। इस लाइब्रेरी को सम्भालने में सुब्बा के पिता भी उनकी मदद करते हैं।
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