10 साल से खोए पर्स लौटा रहा है मुंबई का ये शख्स

जेब से अगर 100 रुपये का एक नोट भी गिरकर खो जाए तो पूरे दिन बुरा लगता रहता है लेकिन कई बार तो लोगों का हजारों रुपये से भरा हुआ पूरा वॉलेट ही खो जाता है, इसमें कई बार रुपयों के साथ जरूरी डॉक्यूमेंट्स भी खो जाते हैं।
ऐसा ही एक वाकया मुंबई के डॉक्टर मनोज यादव के साथ हुआ। उनके होश उड़ गए जब उन्हें पता चला कि उनके बैग से वॉलेट गायब है। उन्हें लग रहा था कि अब उन्हें ये वॉलेट वापस नहीं मिलेगा लेकिन अगले दिन उनके पास एक अनजान शख्स का फोन आया। उस शख्स ने उनका 9 हजार रुपयों से भरा पूरा वॉलेट वापस करने के बारे में कहा। पहले तो उन्हें लगा कि कोई उनके साथ मजाक कर रहा है लेकिन जब वो यतिन नाइक से मिले तब उन्हें पता चला कि यतिन पिछले 10 साल से ऐसे लोगों की मदद कर रहे हैं।
क्योंकि सामान से जुड़ी होती हैं भावनाएं
यतिन नाइक स्टेशन परिसर और अंधेरी की पटरियों पर जेबकतरों के फेंके गए वॉलेट्स को खोजते हैं। उनका अपना पूरा नेटवर्क है जिसमें रेलवे के स्वीपर, गैंगमैन, भिखारी आदि शामिल हैं। इनमें से किसी को अगर कोई वॉलेट मिलता है तो ये उसे नाइक को दे देते हैं। जेबकतरे पैसे निकालकर वॉलेट फेंक देते हैं। नाइक उस वॉलेट में रखे डॉक्यूमेंट्स से उसके मालिक के बारे में पता करते हैं उसे वहां तक पहुंचा देते हैं।
सेंट्रल मुंबई में रहने वाले नाइक कहते हैं, 'पर्स वापस मिलने पर लोग बहुत खुश हो जाते हैं। बात सिर्फ पैसों की नहीं है, अपने सामान के साथ लोगों की भावनाएं जुड़ जाती हैं। सरकारी कागजों, आईडी कार्ड और एटीएम कार्ड के अलावा लोग अपने परिवार की तस्वीर और बच्चों की बनाए स्केच तक पर्स में रखते हैं। जेबकतरों को इनसे कोई मतलब नहीं होता।' डॉ. मनोज यादव के पर्स को लेकर नाइक ने बताया कि वह भाग्यशाली थे कि उनके पैसे भी वापस मिल गए, क्योंकि उन्होंने पैसे कागज में लपेटकर रखे थे।
इस तरह हुई शुरुआत
इसकी शुरुआत कैसे हुई यह बताते हुए नाइक याद करते हैं कि करीब 10 साल पहले वह किसी से मिलने अंधेरी उतरे तो उन्हें पानी की टोटियों के पास एक पर्स पड़ा मिला। वह कहते हैं, 'मैंने वो वॉलेट उठाया ही था कि एक दूसरा वॉलेट भी मुझे मिल गया। पहले मैंने सोचा कि मैं पुलिस के पास जाऊं लेकिन फिर लगा कि पुलिस के पास तो वैसे ही इतने मामले होते हैं। ऐसे में मैंने सोचा कि अब वॉलेट लौटाने का काम मैं खुद ही करूंगा। डॉ. यादव के मामले में भी उन्हें पर्स में एक चिट पर उनका नंबर लिखा मिल गया था।
वह बताते हैं कि औसतन उन्हें रोज दो ऐसे वॉलेट मिलते हैं जिन्हें वह उनके मालिकों तक पहुंचा सकें। अपने काम से अलग वह रोज इस काम के लिए तीन से चार घंटे का वक्त निकालते हैं। नाइक बताते हैं कि कई बार वॉलेट वापस लौटाने पर लोग खुशी से रोने लगते हैं और पैर तक छूने लगते हैं। सीमित संसाधनों के चलते वह केवल अंधेरी क्षेत्र तक ही लोगों की मदद कर पा रहे हैं।
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