ताकि जानवरों को वक्त पर मिले इलाज, 26 साल के यश ने बना दी एक ऐप

यश ने तुरंत पास के पशु चिकित्सक को फोन किया लेकिन वो नहीं मिला। यहां तक कि उन्होंने परेल एंबुलेंस सर्विस पर भी फोन किया लेकिन वहां से जवाब मिला कि हम इस बात को लेकर श्योर नहीं हैं कि यहां से वहां तक पहुंचने में कितना समय लगेगा इसलिए आप कोई रास्ता खोज लें। इसके बाद उनके एक दोस्त ने पैसे देकर एंबुलेंस को बुलाया और 800 रुपये का जो बिल आया था उसमें से आधे रुपये उसने दिया ताकि यश पर अकेले बोझ न पड़े।
इस बीच यश ने सोशल मीडिया पर भी मदद मांगी लेकिन उन्हें कहीं से किसी का साथ नहीं मिला। उस वक्त उन्हें अहसास हुआ कि लोग जानवरों की सुरक्षा को लेकर कितना ज्यादा लापरवाह हैं और कोई ऐसा प्लेटफॉर्म भी नहीं है जो ऐसे मौकों पर जानवरों की मदद करने के लिए तुरंत आगे आए। और इन्हीं सारी बातों ने यश को प्रेरित किया जिससे उन्होंने एक 'लेट इट वैग' नाम की ऐप बनाई।
यश कहते हैं, जब आप सोशल मीडिया पर मदद मांगते हैं तो वहां टैगिंग के छह लेवल होते हैं लेकिन जब टैगिंग पूरी भी कर लो उसके बाद भी ये क्लीयर नहीं होता कि जिन लोगों को आपने टैग किया है वे उसी लोकेशन में हैं जिसमें किसी जानवर के साथ दुर्घटना हुई है। इसलिए मैं एक ऐसी ऐप बनाना चाहता जो पशु प्रेमियों, उनका बचाव करने वालों, पशु चिकित्सकों और एनजीओ को जोड़ सके और जानवरों तक तुरंत मदद पहुंच सके। वह कहते हैं कि लेट इन वैग को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहां हैं, सिर्फ इससे फर्क पड़ता है कि आपकी करेंट लोकेशन क्या है, और आप आसानी से अपने इन फर वाल दोस्तों की तुरंत मदद कर पाते हैं।
भारत में सड़कों पर एक अरब से ज्यादा छुट्टा पशु रहते हैं और इनमें से लगभग 100 पशुओं का रोज दुर्घटना का शिकार होते हैं। इनमें से ज्यादातर की मौत इसलिए हो जाती है क्योंकि दुर्घटनाग्रस्त पशुओं के पास चिकित्सकीय सहायता तुरंत नहीं पहुंच पाती।
कैसे काम करती है लेट इन वैग
अगर आप किसी चोटिल पशु को देखें तो आपको इस ऐप पर उसकी एक फोटो खींचनी है और एक केस क्रिएट करके ये लिखना है कि उसके साथ किस तरह की दुर्घटना हुई है। इसके बाद तुरंत आप पशु चिकित्सकों, एंबुलेंस, एनजीओ के संपर्क में आ जाएंगे। हालांकि कई लोग कहते हैं कि इस तरह के कॉन्टेक्ट्स गूगल सर्च से भी आसानी से मिल जाते हैं, उन्हें ये ध्यान देना चाहिए कि गूगल सर्च में टॉप पर जो भी कॉन्टैक्ट्स आते हैं उनमें से ज्यादातर पेड होते हैं या पुराने होते हैं जबकि ऐप में जो भी लोग जुड़े हैं वे सब नए हैं और मौका पड़ने पर मदद करने वालों में से हैं।

यश बताते हैं कि इस ऐप में पशुओं को अडॉप्ट करने से संबंधित जानकारी, उनके इलाज के लिए दवाओं के रुपये, अस्पताल के बिल, एंबुलेंस का खर्च, उनके खाने का सामान आदि के लिए फंड भी इकट्ठा किया जा सकता है। कई लोग होते हैं जो इन जानवरों तक खाने का सामान पहुंचाना चाहते हैं वे भी इस पर कॉन्टैक्ट कर सकते हैं।
यश बताते हैं कि लेट इट वैग के पास मुंबई के 500 पशु चिकित्सकों का नेटवर्क है, इसके 70 एक्टिव यूजर्स हैं और कुछ डॉग ट्रेनर्स भी हैं। इन लोगों ने अब तक 21 कुत्तों, 2 बिल्लियों और 2 उल्लुओं को बचाया है। क्योंकि इसकी रीच लिमिटेड है और एक दूसरे को बताने के अलावा प्रमोशन का कोई जरिया नहीं है इसलिए अभी ज्यादा लोगों को इसके बारे में पता नहीं है लेकिन यश को उम्मीद है कि जल्द ही क्राउड फंडिंग और सीएसआर के जरिए वे और भी ज्यादा जानवरों की मदद कर पाएंगे और उनसे लोग जुड़ते जाएंगे।
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