इस खेती से बदल रही महिलाओं की ज़िंदगी, बन रहीं आर्थिक रुप से सशक्त

लगभग 50 साल की रामेश्वरी रंग बिरंगी कॉटन की साड़ी पहने हुए अपने खेतों में बीज की बुवाई व खरपतवार निकालने में व्यस्त है। बिहार के सरण जिले के गड़खा गाँव में ज्यादातर महिलाएं सब्जियों की खेती करती हैं।
गड़खा गाँव मोहम्मदपुर पंचायत में आता है, दूसरी जगहों की अपेक्षा आप ज्यादातर महिलाओं को यहां खेतों में काम करते देखेगें, पुरूषों की अपेक्षा यहां महिलाएं किसानी में ज्यादा आगे दिखती हैं। रामेश्वरी देवी, शांति देवी, राजपति देवी इनके जैसी ही लगभग 60 महिलाओं में एक बात कॉमन है। इन्होंने सब्जियों की खेती करके अपनी जिंदगियां बदली हैं।
इनमें से ज्यादातर महिलाएं पिछड़ी जाति की हैं, जिनके पास बहुत थोड़ी जमीने हैं। वहां वो अपनी मेहनत से बिना किसी बाहरी मदद के सब्जियां उगा रही हैं। ये घंटों काम करती हैं, बिना मौसम की परवाह किए कड़ी धूप में, सर्दियों में और भारी बारिश में भी, जिससे वो सब्जियों को बड़े पैमाने पर उगा सकें। ये सब्जियां ही इनके पिछड़े हुए गाँव की पहचान हैं। करीब डेढ़ दशक पहले सब्जियों की खेती की शुरुआत धनवा देवी, तारा देवी व मुनदेव देवी ने की। फिर एक के बाद एक गांव की अन्य महिलाएं उनसे जुड़ती चली गई। शुरू-शुरू में महिलाओं पर गांव के कुछ लोगों ने तंज भी कसा लेकिन आज लालवती, गीता, बिंदी, चिंता, राजकुमारी जैसी कई महिलाएं उन्हीं की प्रेरणा का स्त्रोत बन गई हैं।
कम जमीन में कर रहे सब्जी की खेती
कृषि इस क्षेत्र में एकमात्र आजीविका का साधन है, खरीफ के मौसम में चावल यहां की मुख्य फसल है वहीं रबी या सर्दी के मौसम में गेहूं, दालें और मक्का उगाई जाती हैं। कृषि पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर है, उत्पादन का भी सीधा संबंध इसी से है कि कितनी वर्षा हुई है। ज्यादातर ग्रामीण जो खेती करते हैं वो सीमांत किसान है, उनके पास मुश्किल से आधा या एक एकड़ खेत हैं जिनमें वो परंपरागत फसलों की खेती करते हैं।
इस गाँव की आर्थिक स्थिति तब सुधरी जब महिलाओं ने सब्जी की खेती करना शुरू किया। सब्जियां उगाना इनके लिए गरीबी से लड़ने का हथियार बन गया, यहां के ब्लॉक कृषि अधिकारी नवीन प्रताप सिंह ने बताया। पांच दर्जन महिलाओं समेत गांव के 80 से 90 किसानों ने बैंगन, फूलगोभी, बंदगोभी, पालक, चना, टमाटर और अन्य सब्जियों की खेती करते हैं। गड़खा बाजार में बिकने वाली 40 फीसदी सब्जियां इसी गांव से आती हैं। पूरा गोपुर गांव सब्जी की खेती करता है। यहां की सब्जियों के लिए कई व्यापारी सीधा खेतों में गाड़ी से पहुंचते हैं। जो सब्जियां बच जाती हैं उन्हें एक जगह इकट्ठा कर लिया जाता है और यहां से 17 किमी दूर छपरा जंक्शन ले जाया जाता है, फिर ट्रेन से सियालदह और कोलकाता भेजा जाता है।
स्त्रोत- योरस्टाेरी
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