स्ट्रॉबेरी की खेती कर बंगाल के किसानों ने बदली अपनी तकदीर

पांरपरिक खेती का मोह छोड़कर नगदी खेती शुरू करने वाले बंगाल के किसानों की जमीन सोना उगलने लगी है। विदेशी फसलों की खेती करके यहां के किसानों की किस्मत बदल गई है। कभी सिर्फ धान की फसल करने वाले किसान अब यहां पर संयुक्त राज्य अमेरिका के पैराग्वे का 'ईस्टीविया' (मीठी तुलसी), अमेरिकी मूल की ही 'रेड रैस्पबेरी', फ्रांस मूल की 'स्ट्रॉबेरी', दक्षिण-पूर्व एशिया का 'ड्रैगन फ्रूट' व ताइवान मूल का 'रेड लेडी पपाया' आदि फल व सब्जियां अब यहां के खेतों में उगती है। किसानों की अगर किश्मत बदली है तो यह सिर्फ संभव हुआ है उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय (एनबीयू) के बायो टेक्नोलोजी विभाग अधीनस्थ सेंटर फॉर फ्लोरिकल्चर एंड एग्री-बिजनेस मैनेजमेंट (कोफाम) के शोध व मेहनत की वजह है। जहां के वैज्ञानिकों ने यहां के जमीन की ताकत पहचानी और किसानों की तकदीर बदल गई।
किसानों की बदली तकदीर
दार्जिलिंग जिला के सिलीगुड़ी महकमा के फांसीदेवा विकासखंड के निजबाड़ी गांव के किसान शांतिमय राय कभी चाय का काफी कम स्तर पर उत्पादन करते थे, लेकिन उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती करना शुरू किया और इस समय वह अच्छे स्ट्रॉबेरी उत्पादक बन गए है। यह खेती करके उन्होंने अपनी जमीन बढ़ा ली और अब धीरे—धीरे अपनी तकदीर भी बदलने लगे है। वह हर वर्ष सितंबर—अक्टूबर में लगभग 1400 पौधे लगाते हैं और अप्रैल में फसल तैयार हो जाती है। इसके अलावा उन्होंने सिलीगुड़ी के स्थानीय बाजार में थोक में आकार व रंग के अनुरूप स्ट्रॉबेरी को 350 से 450 रुपये किलो बेचते हैं। उनकी इससे लाख-डेढ़ लाख रुपये की कमाई हो जाती है। बता दें कि स्ट्रॉबेरी बाजार में खुदरा 750 से 1000 रुपये किलो बिकती है। ऐसे ही जलपाईगुड़ी के मयनागुड़ी के गोपाल विश्वास पहले दवा दुकानों में दवाएं सप्लाई करने का काम करते थे। वह भी स्ट्रॉबेरी की खेती करने लगे और अब वह पूरी तरह से इसी पर ध्यान दे रहे हैं और अच्छा रुपया कमा रहे हैं। अब सिर्फ गोपाल विश्वास ही नहीं बल्कि उनके साथ के लगभग 50 किसान स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं और अब उनके हालात बदलने में लगे हैं।
शिक्षकों ने भी अपनाई यह खेती
ऐसे ही जलपाईगुड़ी जिला के बेलाकोबा निवासी विनय दास जोकि पेशे से प्राथमिक शिक्षक है। अब वह भी नई खेती की ओर आकर्षित हो गए है। उन्होंने स्ट्रॉबेरी के साथ ही कलर्ड कैप्सिकम (रंगीन शिमला मिर्च), केला, पपीता व मौसमी सब्जियों की ऑर्गेनिक (जैविक) खेती का उत्पादन शुरू किया है। आज विनय दास सिर्फ अकेले नहीं हैं बल्कि 50-60 किसानों का एकसमूह उनके साथ काम कर रहा है और अपनी किस्मत को बदल रहा है। ऐसे ही अनेक किसान हैं जिनके हालात बदले हैं। पारंपरिक खेती को छोड़कर नगदी फसल का उत्पादन शुरू करने वाले किसानों में उत्तर दिनाजपुर के किसान भी शामिल है। इस जिले के इस्लामपुर के कनकी गांव के पवित्र राय का अब पूरी तरह से पारंपरिक खेती से मोह छूट चुका है। अब वह 'रेड लेडी पपाया' (लाल मादा पपीता) के अच्छे उत्पादक बन गए हैं।
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