72 की उम्र में युवाओं को मात दे रही ये 'सुपर वूमन', वीरेंद्र सहवाग भी कर चुके हैं तारीफ

जिस उम्र में घर में बैठकर खाने का वक्त होता है, उस उम्र में सिहोर की 'सुपर वूमन' टाइपिंग करके अपने परिवार का पेट पाल रही है। वह रोज सुबह सिहोर कलेक्ट्रेट दफ्तर के सामने आ जाती है और पूरे दिन टाईपिंग करती है। उनकी टाइपिंग स्पीड देखकर अच्छे-अच्छे हैरान हो जाते हैं। यही नहीं उन्होंने अपनी टाइपिंग स्पीड व 72 की उम्र में भी इतनी फुर्ती से काम करने की वजह से क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग का दिल जीत लिया है।
उनके काम की वीरेंद्र सहवाग अब तारीफ करते हुए नहीं थक रहे हैं। सिहोर की लक्ष्मीबाई ने अपनी मेहनत से यह साबित कर दिया है कि अगर व्यक्ति किसी चीज का निश्चय ले ले तो फिर वह हर मुसीबत को मात से सकता है। बता दें कि भारतीय क्रिकेट के विस्फोटक बल्लेबाजों में शुमार वीरेंद्र सहवाग ने मंगलवार को लक्ष्मीबाई का एक वीडियो ट्वीट कर उन्हें 'सुपर वूमन' का दर्जा दिया था।
वीरेंद्र सहवाग ने ये लिखा
बेटी की दिव्यांगता की वजह से टाइपिंग का काम रही लक्ष्मीबाई की तारीफ वीरेंद्र सहवाग ने कुछ इस तरह की है। उन्होंने लिखा था कि 'ये मेरे लिए एक सुपर वूमन हैं। ये मध्य प्रदेश के सीहोर में रहती है और युवाओं को उनसे सीखना चाहिए। इनके पास जज्बे से भरी स्पीड तो है ही, साथ में लोगों के लिए एक सबक भी है कि कोई काम छोटा नहीं होता और कोई भी उम्र काम करने और सीखने के लिए रोड़ा नही बन सकती है।' लक्ष्मीबाई कहती है कि मैंने अपनी दिव्यांग बेटी को देखकर कभी हार नहीं मानी।
परिस्थितियों ने लक्ष्मीबाई को को किया मजबूर
वैसे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन सिहोर की लक्ष्मीबाई भी अपनी जिंदगी से लड़ रही है। उन्हें परिस्थितियों ने मजबूर कर दिया है कि तभी वे 72 साल की उम्र में भी टाइपिंग कर रही है। 2008 से सीहोर कलेक्ट्रेट के सामने लोगों के आवेदन, शिकायत और दस्तावेज टाइप का काम करने वाली पहले कभी मजदूरी किया करती है। 72 वर्षीय लम्बीबाई ने जी न्यूज को बताया कि संघर्ष हमेशा से ही उनकी जिंदगी का हिस्सा रहा है।
करीब पांच दशक पहले वैवाहिक जीवन में दरार आने के बाद मेरे सामने सबसे बड़ी यह समस्या आ गई थी आखिरकार क्या किया जाए। इसके बाद मैंने अपने पैरों पर खड़े होने का निश्चय लिया। उन्होंने बताया कि अपंग बेटी के कारण वैवाहिक जीवन में तनाव बढ़ गया था। पति ने मुझे और अपंग बेटी को छोड़ दिया था। मैं बेटी को लेकर अकेले ही रहने लगी थी। जब अपने सामने पैसे की समस्या आई तो फिर परिवार पालने के लिए मैंने इंदौर के सहकारी बाजार में पैकिंग का शुरू कर दिया।
इसी दौरान मुझे मेरे परिवार ने टाइपिंग सीखने की बात कही और मैंने पैकिंग के काम के साथ ही टाइपिंग सीख ली। इसके बाद जब सहकारी बाजार बंद हो गया तो फिर मुझे तत्कालीन कलेक्टर राघवेंद्र सिंह मेरी टाइपिंग स्पीड को देखते हुए उन्हें कलेक्टर दफ्तर में बैठने की जगह उपलब्ध कराई थी। इसके बाद ये यही पर टाइपिंग कर रही हूं।
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