समाज में बदलाव ला रही है 'HOPE' की उम्मीदों से जुड़े प्रयास
कभी-कभी एक घटना आपके जीवन पर ऐसा प्रभाव डालती है कि उससे पूरी जिंदगी बदल जाती है। ऐसे ही कुछ दोस्तों की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं जो आज समाज में बदलाव की बयार बहा रहे हैं। उनकी बदौलत समाज से बुराइयां कम हो रही हैं।
बात साल 2015 की है, कुछ बीएचयू के कुछ छात्र बनारस के घाट पर जन्मदिन मना रहे थे। जनवरी का महीना था, छात्रों दोस्तों का यह ग्रुप लौट रहा था तो उन लोगों ने देखा कि एक कूड़े के ढेर में कुछ बच्चे और महिलाएं खाना ढूंढ रही हैं और उसी कूड़े में जानवर भी अपना खाना ढूंढ रहे थे। ये देखकर उन्हें बहुत धक्का लगा और उन लोगों ने सोचा कि उन्हें कुछ करना है।
'HOPE' नाम की संस्था बनाई
उस घटना से एक विचार जन्मा और छात्रों ने एक समूह बनाकर सोचना शुरू किया कि समाज के किस वर्ग को हमारी ज्यादा जरूरत है। जहां हम अपने सीमित संसाधनों से सकारात्मक बदलाव कर सकते हैं। इसी सोच में होप संस्था की स्थापना हो गयी और काम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र चुना गया। संस्था के उपाध्यक्ष दिव्यांशु उपाध्याय गांवों की ओर लौटने के पीछे समूह के विजन को बताते हुए कहते हैं कि शहरों में कई संस्थाएं काम कर रही हैं लेकिन गांवों की ओर कोई संस्था रुख नहीं करती। देश की सत्तर फीसदी जनता जहां रहती है, जहां असल में हमारी जरूरत है, वहां काम करने के लिए हमने अपना अभियान शुरू किया। हम गांवों को बेहतर बनाकर समाज में अपना योगदान चाहते हैं।
आने वाली पीढ़ी को और बेहतर बनाने की जिम्मेदारी
इस संस्था का प्रयास विश्वविद्यालयों में शिक्षा के साथ-साथ छात्रों के सामाजिक सक्रिय भागीदारी निभाने की है। ये कहानी है ऐसे छात्रों की जिन्होंने शिक्षा के साथ न सिर्फ़ अपनी सामाजिक भागीदारी सुनिश्चित की, बल्कि गांवों की ओर लौट कर एक नई मिशाल पेश की है।
इस संस्था में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र के साथ काशी विद्यापीठ, दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र और प्रोफेसर जुडकर सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। ये छात्र गांवों में जाकर वहां की समस्याओं को अपने बेहतर आइडिया से समाधान में बदल रहे हैं।
ग्रीन ग्रुप है इनका मुख्य प्रोजेक्ट
इस संस्था का मुख्य का है ग्रीन ग्रुप का गठन। इसमें महिलाएं एक समूह में गांव में निकलती हैं और जुए और शराब जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान छेड़ती हैं। अपने अभियान की शुरुआत करते हुए इन छात्रों ने गांवों में जाकर लोगों से बात की और वहां की समस्याएं सुलझाना शुरू कर दिया। गांवों में बिजली पहुंचाने से लेकर प्रधान की सहायता से तमाम संसाधन मुहैया कराने शुरू कर दिए। कैम्प लगाकर महिलाओं को अक्षर ज्ञान कराने के साथ हस्ताक्षर करवाना सिखाते हैं, इनमें से 25 महिलाएं चुनकर ग्रीन ग्रुप का गठन होता है।
क्या है ग्रीन ग्रुप का काम?
ग्रीन ग्रुप इन दिनों बनारस का खुशियारी गांव में है। यह उन 25 महिलाओं का समूह है, जिन्हें पुलिस मित्र का दर्जा दिया गया है। जिस गांव की महिलाओं ने घर की दहलीज नहीं लांघी, घूंघट के बाहर की दुनिया नहीं देखी और जो बोलना नहीं जानती थीं। आज उन्हें हर उस जगह पाया जाता है, जहां कुछ गलत हो रहा होता है। फिर चाहे किसी महिला से घरेलू हिंसा हो, अनाज वितरण में कोटेदार बेइमानी कर रहा हो या फिर बात गांव में शौचालय बनवाने से लेकर सड़क बनवाने की हो। हाल ही में ‘ग्रीन वारियर्स की सदस्यों ने बनारस के उन आठों ब्लॉकों में जहां-जहां महिलाओं का मतदान प्रतिशत कम था, वहां मोर्चा संभाला था। वे एक-एक घर से महिलाओं को निकालकर पोलिंग बूथ तक लेकर आईं, नतीजा महिलाओं का मतदान प्रतिशत आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गया। अमेरिका के चेज क्रैंजे ग्रीन वारियर्स ग्रुप पर डाक्युमेंट्री बनाने जा रहे हैं।
होप समूह देशभर में गांव दिवस मानाने को लेकर भी अभियान चला रहा है, ताकि गांवों की ओर सबका ध्यान आकर्षित हो और अपनी मिटटी को संवारा जाए। होप समूह से विश्वविद्यालयों के प्रोफ़ेसर भी जुड़े हैं, जो समय समय पर गावों में सभाएं आयोजित करते हैं और जरूरत पड़ने पर छात्रों की मदद करते हैं। समूह के कामों का खर्च छात्रों के जेब खर्च से ही चलता है इसलिए इनका अभियान अभी कुछ गांवों तक सीमित है।
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