जानिए कैसे ईंट-भट्ठे पर रहने वाले बच्चों की जिंदगियां संवार रही है ये संस्था

सरकार ने 6 से 14 साल के बच्चों के लिए शिक्षा मुफ्त कर रखी है। पढ़ाई के साथ उन्हें मुफ्त किताबें, ड्रेस, बैग और खाने की भी सुविधा मुहैया कराई जा रही है। इन सबके बावजूद बहुत से बच्चे ऐसे हैं जो शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
ईंट-भट्टे पर काम करने वाले बच्चों का कोई एक ठिकाना नहीं होता है इसलिए वो इन योजनाओं का फायदा नहीं उठा पाते। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में कुछ युवाओं ने मिलकर एक ऐसा ग्रुप बनाया है जो ईंट भट्टों पर काम करने वाले बच्चों को पढ़ाते हैं। मानव संसाधन एवं महिला विकास संगठन नाम की ये संस्था मजदूरों के बच्चों की जिंदगियां संवारने में लगा है।
दो हजार बच्चों को कर चुके हैं शिक्षित
इस संगठन में आज के समय में 100 से ज्यादा युवा जुड़े हैं। इस संगठन की नींव रखी थी प्रोफेसर राजा राम शास्त्री ने और इसे बाद में आगे बढ़ाया डॉ. भानुजा शरण लाल ने।
पिछले चार सालों से ये सभी युवा हर दिन शाम को इन बच्चों को तीन-चार घंटे तक पढ़ाते हैं। इन बच्चों को बेसिक शिक्षा देने के बाद सरकारी स्कूलों में स्पेशल परिमशन पर नाम लिखवाया जाता है। सभी युवा मिल कर अब तक करीब दो हजार से भी ज्यादा बच्चों को शिक्षित कर चुके हैं, इनमें से आधे से ज्यादा बच्चों को स्कूलों में अब एडमिशन भी मिल चुका है।

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बनारस में 24 जगहों पर चलती हैं क्लासेस
डॉ. भानुजा बताते हैं आज से लगभग चार साल पहले वे वाराणसी के बड़ागांव गए थे। गांव के किनारे ईंट के भट्ठे थे और वहीं मजदूरों ने अपनी बस्ती बना रखी थी, ये सभी भट्ठों पर ही काम करते थे। इनमें लगभग 20 बच्चे भी थे, वो भी भट्ठों में छोटा मोटा काम करते थे। सरकार की इतनी सारी योजनाओं के बाद भी इन बच्चों का किसी स्कूल में एडमिशन नहीं था। मुझे लगा कि इन बच्चों को भी पढ़ने का पूरा अधिकार है। मैंने भट्टे के पास ही क्लास शुरू कर दी। पहले तो भट्ठे के मालिकों ने इस चीज पर ऐतराज जताया लेकिन बाद में वो भी इस बात से खुश दिखे। संगठन अलग-अलग भट्ठों पर जाकर ऐसे बच्चों को पढ़ाने लगा और जब उन्हें बेसिक चीजें पता हो जाती थीं तो हम RTE के तहत पास के स्कूलों में उनका एडमिशन करा देते थे। बच्चों को पढ़ाई से संबंधित सारी चीजें ये संगठन ही दिलाता है। अभी बनारस में लगभग 24 जगहों पर ये क्लासेस चलाई जा रही हैं।
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महिलाओं को भी बनाया जा रहा है हुनरमंद
डॉ. भानुजा की इस पहल से धीरे-धीरे काशी विद्यापीठ के बाकी कई प्रोफेसर जुड़ गए। इसके अलावा संगठन में विश्वविद्यालय के कई स्टूडेंट और नौकरी करने वाले लोग भी शामिल हैं। डॉ. भानुजा बताते हैं कि जब इस मिशन से लोग जुड़ने लगे तो मुझे बहुत खुशी हुई और अब ये संगठन एक सामाजिक संस्था बन गई है, जिसका मकसद हर बच्चे तक शिक्षा पहुंचाना है।
इस संगठन में बच्चों के साथ रोजी-रोटी के लिए मजदूरी करने वाली महिलाओं को भी हुनर के काम सिखाये जाते हैं। इन महिलाओं को रोजगार के लिए बतख और बकरी पालन, कालीन की बुनाई और डिटर्जेंट बनाना सिखाया जाता है जिससे ये अपनी जीविका अच्छी तरह से चला सकें।
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