भाषाओं की बात की जाए तो इस समय देश में संस्कृत भाषा विलुप्त होती जा रही है। अब इस भाषा को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया जा रहा है। हालांकि, भारत की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की वजह से इस भाषा का अभी भी अपना महत्व बना हुआ है। शायद यही वजह है कि इस समय भाषा से भी अभ्यर्थियों का चयन हो रहा है। यूपी में अभी हाल ही में आए परिणाम में संस्कृत भाषा विषय से अलका वर्मा का चयन हुआ है।
उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के निदेशक पवन कुमार ने बताया कि असिस्टेन्ट कमिश्नर उद्योग के पद पर चयनित हाथरस निवासी अलका वर्मा ने इस बार मुख्य परीक्षा के तौर पर ऐच्छिक विषय के रूप में संस्कृत साहित्य को लिया था। हाथरस के गंथरी शाहपुर निवासी रेलवे कर्मी किशनवीर सिंह की बेटी अलका वर्मा को पीसीएस-19 में सफलता मिली है। अलका वर्मा ने इस परीक्षा में 60वां स्थान हासिल किया है। निदेशक पवन कुमार ने बताया कि संस्कृत साहित्य लेकर सिविल सेवा निःशुल्क प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षणरत विद्यार्थियों को न सिर्फ प्रारम्भिक परीक्षा, बल्कि मुख्य परीक्षा के साथ-साथ साक्षात्कार की तैयारी करायी जाती है।
उन्होंने बताया कि अलका वर्मा की सफलता से संस्कृत साहित्य लेकर सिविल सेवा निःशुल्क प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षणरत विद्यार्थियों को प्रोत्साहन मिलेगा। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा प्रशासनिक सेवाओं में संस्कृत साहित्य की सहभागिता को बढ़ाने और संस्कृत विषय को रोजगार उन्मुख बनाने के उद्देश्य से साल 2019 में कार्यक्रम का प्रारम्भ किया गया। उन्होंने बताया कि संस्कृत साहित्य विषय लेकर निःशुल्क सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के अन्तर्गत 10 माह के प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रारम्भिक एवं मुख्य परीक्षा सहित साक्षात्कार की तैयारी करायी जाती है।
संस्थान के अध्यक्ष डॉ. वाचस्पति मिश्रा ने बताया कि संस्थान सिविल सेवा परीक्षा में संस्कृत साहित्य की सहभागिता को बढ़ाने के उद्देश्य से डिजिटल प्लेटफॉर्म की तैयारी कर रहा है, जिसके अन्तर्गत वर्तमान अध्ययनरत् विद्यार्थी और प्रदेश के अन्य जिलों के विद्यार्थियों को ‘‘एप्स’’ के माध्यम से जोड़ा जा सकेगा, इसके साथ ही संस्कृत साहित्य की पाठ्य सामग्री डिजिटल उपलब्ध करायी जायेगी और सामान्य अध्ययन तथा संस्कृत साहित्य के वीडियो लेक्चर की श्रृंखला तैयार की जा रही है ताकि दूरस्थ बैठे लोग भी आज के डिजिटल युग में उसका लाभ ले सकें एवं संस्कृत का प्रचार-प्रसार व्यापक स्तर पर हो सकें।